जिंदगी अपने हिसाब से पी,
मेरी महफ़िल से पैमाना उठा के पी.
जिसने छोडी थी बज़्म कहे बगैर,
उसी के दामन मे तू शौक से जी.
अहले_दुनिया समझते भी नहीं,
हमने किस हाल मे किस तरह पी.
बज़्म_ए_शौक वो आते भी हैं तो,
हमने नज़रे झुका के पी.
सर_ए_बज़्म शरमाये_शरमाये थे
पीनी हुई तो आँचल ढलका के पी.
दुनिया समझती ही नहीं क्या करे,
“रतन” ने हमेशा अपनी मर्ज़ी से पी !!!!
Friday, February 8, 2008
फूलों में........
फूलों में खुशबू होती है,
आँचल में आबरू होती है,
किसी की समझ में न आये,
नज़र में गुफ्तगू होती है !!!!!!
आँचल में आबरू होती है,
किसी की समझ में न आये,
नज़र में गुफ्तगू होती है !!!!!!
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