Thursday, December 31, 2009
नए साल पर 2010
चाँदनी के सिवा
वीणा से चाहिए क्या
रागिनी के सिवा
फूल से चाहिए क्या
सुगंध के सिवा
हमें कुछ नहीं चाहिए
कामिनी के सिवा
............. ............. ................
गरज कहीं तुम्हारा दीदार हो जाए
दिल दोनों का सरशाद हो जाए
purkhijan चमन में फिर से
बजाये खिजां आलमें बहार हो जाए
नफरतों के धुंधलके हटें दरमियाने इश्क
फिर से तुम से प्यार हो जाए
जीतें हैं इसी हसरत में कभी to
तुम्हे हमारा ख्याल हो जाए
बीती बातें बीत गयीं ,नए साल में
कम से कम तुमसे दुआ सलाम हो जाए
नागवारियाँ भी नहीं इतनी अच्छी
तुमसे रस्मे इकरारे वफ़ा हो जाए
उम्रदराज़ हों तुम्हारी हजारों साल
साल में महीने पचास हो जाएँ
शमा बनी बेवफा जलाना ही काम
तुमसे तो कम से कम इकरार हो जाए
जीतें हैं, इस हसरत में कभी तो 'ताज'
हम rahein tanhan तुम्हारी कायनात हो जाए
'रतन' की गरज गोया इतनी ,कभी
तुमसे कहीं भूले से आदाब हो जाए
..................... ..........................
juhi chameli champakali
हो तुम्हे मुबारक
मुझे to आता है अब भी
murjhaya गुलाब
Wednesday, December 23, 2009
अंजामे-मोहब्बत
सर पे चढ़ जाते तुम और भी
हसीनों में हसीं हो बात हमने कही नहीं
दिल को हर वक्त काबू में रखता 'रतन'
ये बात और है तुम-सा दूसरा कहीं नहीं
....................... ....................... ........
हमसे किसी का दर्पण
संभाला न जाएगा
अपना अक्स भी
धुंधला नज़र आएगा
वक्त बीता कुछ
इस रफ़्तार से
अपना पता भी अब
पाया न जाएगा
कितनों के गुनाह
कितनों के सवाल हैं
अब तो अपने से
जवाब सुनाया न जाएगा
कोई पूछ ले सहसा
दर्द की बाबत
मूंह का ताला अब ' रतन '
खुलवाया न जाएगा
........................ .....................
मुहब्बत दिमाग के खलल
के सिवा कुछ नहीं
ये भी सच है उल्फत के बिना
जन्नत भी कुछ नहीं ॥
---------------- -------------- --
जितना भी भुलाऊँ... .......
बम सा फटा है क्या?
अगर यह किसी का दिल नहीं
तो फ़िर टूटा है क्या ?
.................... ......................... ....................................
जितना भी भुलाऊँ याद आता है वो
दिलजले को और जलाता है वो
उसके करम से आंखों मे आंसू हैं
जाने क्यूँ आज फ़िर से रुलाता है वो
सदियों पहले छोड़ी थी महफ़िल उसकी
मेरे आने की ख़बर से शमा जलाता है वो
फ़िर से छनक उठी उसकी पायल
अपनी मीठी सदा से बुलाता है वो
क़यामत है उसका आना भी अब तो
रहगुजर भले छोड़ी ख्यालों मे आता है वो
कसम खायी है मुब्तिला न होंगे अब
लाख बचें जोहरे-हुस्न दिखाता है वो
मिलने के ख्याल से शरमाते है हम
वक्ते-विसाल पलकों पे बिठाता है वो
गरज उसकी या मेरी नामालूम
अब भी बातों से दिल बहलाता है वो
बरसों उसकी ख़बर मिलती नहीं मुझको
मिलता है तो ' रतन ' गले लगाता है वो
............................. .................................
आओ तुम पास बैठो
कुछ अपनी सुनाओ
कुछ मेरी भी सुनो
भावों को स्वर दो ॥
Monday, November 23, 2009
दहशत.............!!!!!!!
तो क्या हुआ
मुझे उज्र नहीं
सारा शहर हो तेरा दीवाना !!!
...............................................
मैं भी दे सकता था
तेरी बात का जवाब
फ़िर दिल में ख्याल आया
औरत के मुंह कौन लगे
एक बार उनकी वफ़ा
आजमाने को
उनको साथ ले जाना
चाहता था
पहले न जानता था ki
वो खानदानी आदमखोर थी
और मैंने सिर्फ़ सत्रह
सिर्फ़ सत्रह ईद देखी थी
नतीजा_
मेरे नाम की सुपारी
अपने भूतपूर्व यार को दी
जो अपने गिरोह का सरगना था
पर वह ख़ुद ही मुझसे
बयान कर चुकी थी
अपने प्राचीन प्रेम का
इतिहास
और मुझसे भी निस्बत
रखती थी
ये जात ही कुछ ऐसी है
जिसका कोई सानी नहीं है
जिसको das ले उसके लिए
कहीं पानी नहीं है ।
इरादे नेक हो भले अपने
दिखायेंगे ये जौहर ही अपने
साफ़ कह दिया मुझसे
मुझे घर से निकलने वाले
कितने आए और चले गए
देख loongee एक_एक को
जो कहते हैं अपने को दिल वाले
हम भी इनसे दूरी बरकरार रखते हैं
पास आ भी जायें तो
चार कदम हम पीछे hatate हैं
याद हैं मुझे मेरे बाप ने
rugdd शैया पर
अन्तिम बार ये अलफ़ाज़ कहे
जिंदगी में बेटा सिर्फ़ चार
सिर्फ़ चार से परहेज रखना
औरत , वकील, पुलिस और नेता
वरना कहीं के न रहोगे .
पर ये नसीहत जब तक मुझे मिली
तब तक मैं chaak गरेबान हो चुका था
उसके बाद फ़िर मैं
अपने बाप से मिल नहीं पाया
शायद वो कुछ और
खुलासे करते
किसी ने उनका गला दबा दिया था ।
और मैं उनकी बात का
गूढ़ अर्थ खोज रहा हूँ
अमल उनकी बात पर
रख रहा हूँ ।
इन चार में सिर्फ़ एक
सिर्फ़ वही पुश्तैनी थी
baaki से मेरी माँ ने रिश्ते बनाये थे
फ़िर भी मेरी चौदह वर्षीया
बिटिया से उन्होंने कहा था
कभी किसी ला grajuyet
से शादी न करना
भले वो ucchha पदस्थ
adhikaari ही क्यो न हो
ऐसे ऐसे रिश्ते सौगात
में मिले
जो उनके गुज़रते
यक_बा_यक टूट गए
ख़ुद ही मेरा दामन छोड़ गए
अब मैं तनहा हूँ
और अपनी आत्मा से
ये सवाल पूछता रहता हूँ
आख़िर मेरे बाप ने
ऐसा क्यों कहा था ???
...........................................
ahale दिल जो चाहे सज़ा दे मुझे
अपने दामन में jhaank के देखे पहले
मेरे नयन ख़ुद बखुद dabdabayenge
गरज के तो वो देखें पहले।
Friday, November 20, 2009
बिन मौसम ही ........!!!!!!
हाथों में खाली गिलास लाये हैं
अभी भर जायेंगे पैमाने
आंखों मे वो शराब लाये हैं ।
........................................
तुमसे मुलाक़ात बरसों बाद हुई
हसरतों के साथ ये वारदात हुई ।
पहले की तरह तुम्हारा हाथ चूमना चाहा
पर तुम अपनी जगह से हट गई
तुम बदल गए हो या मैं ही
गिला होठों में आकर अटक गयी ।
पूछा ऐसे तुमने क्यों होने दिया
मुहब्बत रस्मोरिवाज़ मे भटक गयी ।
महफ़िल में फ़िर हसीं रात हुई
हसरतों के साथ ये वारदात हुई ।
मेरा पैमाना फ़िर भरा तुमने
जाम लबों से लगाया तुमने
नज़र झुका के ही बात की
ख़ुद पीने की बात से किया इनकार तुमने
मैं भी पीने की बात से मुकर गया
ख़ुद पिलाने से हाथ खींच लिया तुमने
बिन मौसम ही चमन दिल मे बरसात हुई
हसरतों के साथ ये वारदात हुई
बरसो रहे तुम गुमशुदा सबसे
अब मिले तो हो के शादीशुदा हमसे
ज़िन्दगी का लुत्फ़ उठाया या बारे गम
ये राज़ भी तुमने छुपाया हमसे
पहले भी क्या हम इतने गैर थे
बिना पूछे ही सब कुछ कहती थी मुझसे
अब तो दुश्मन सारी कायनात हुई
हसरतों के साथ ये वारदात हुई ।
पहले तो साथ मेरे हर कहीं जाती थी
रेस्तराओं में बैठ कर लिम्का पीती थी
मेरे साथ मीठा पान अक्सर खाती थी
मर्ज़ी से अपने सारे प्रोग्राम बताती थी
तुम मेरी अपनी ही हो ................
बात बात में ये बात जतलाती थी
भड़कते शोलों पर मुहब्बत परवान हुई
हसरतों के साथ ये वारदात हुई ।
फिसलन...... !!!!!!
जो आगाज़ से ही डर जाते हैं ,
मट्ठा भी फूंक_फूंक कर पीते हैं
हैफ ! लोग दूध से भी जल जाते हैं ।
.....................................................
बाहों में आना ज़रूरी था अगर ,
होंठ से होंठ क्यो न मिल गए ।
फिसलना इश्क मे मुनासिब था अगर ,
फिसलते_फिसलते क्यो संभल गए ।
अपना समझ कर क्या भूल हुई
तुम गैरों में फ़िर क्यों भटक गए ।
संगीन तो न था मामला इतना
फ़िर क्यो न लौटे देर रात गए ।
अफलातून हैं आप फ़ोन न उठा सके ,
हम किस से कहें वो वादे से फ़िर गए ॥
कहते रहे वफ़ा की राह लम्बी नहीं ,
फ़िर आप क्यो न पहले ही बिछड़ गए ।
चांकगरेबान ही होना था तुमको 'रतन'
ख़ुद को तुम अपनी लगा नज़र गए
Sunday, October 11, 2009
अपना कोई नही..................!!!!!!!!!1
इतनी बड़ी दुनिया मे ,
अपना कोई नही ।
व्यर्थ में ही मै ढूंढता हूँ
gairon में अपनेपन का अहसास
और उसी मे बसर कर देता हूँ
चन्द अपने कीमती लम्हात ।
कहीं ठोकर सी लगती है ,
निरर्थक हो जाते हैं सारे प्रयास ।
बड़ी चुभन सी होती है
कंटीले तारों की बाढ़
चारों ओर्र होती है
और मेरा रास्ता रूक जाता है
तो मैं सोचता हूँ
क्या यही है संसार ।
व्यर्थ की दुराशा
रूक जाती हैं धड़कने
साँसों का संचार
कभी_कभी ऐसा लगता है
इतनी बड़ी दुनिया मे
अपना कोई नही ।
जन_मानस के मुर्दा खाने मे
दफनाई गई अपनी भी लाश ,
ठहर गया , मंजिल पाने का
धारा रह गया सारा प्रयास ।
मह्त्वाकान्शाओं का महल
धराशायी हो गया ,
हो गया कहाँ से main
स्वयं ही निरुपाय ।
क्या यही था, अनवरत
संघर्ष का एलान
अपने हो जाते हैं पराये
यह सुना था। देखा भी
रह नही गया बाकी
हृदय मे baaki कोई अरमान ।
sankirdtaa के दायरे मे
जीती है दुनिया
hame सोचने पर कुछ
कर देती है लाचार ।
और मैं अपने ही ताने_बाने मे
उलझ कर रह गया
नही कर सका कुछ
कदम बढ़ा कर चलने को
नही रह गया अवकाश ।
इस सिसकती दुनिया मे
अपने मनोभाव
सिमट कर रह गए
आगाह भी नही कर सके
अपने_परायों को
घुट कर रह गए
अपने चाहत के अरमान ।
अच्छी लगती थी कभी
सुबह की पहली किरण
गुनगुनाहट भवरों की
चहचाहट चिडियों की
झरनों का काल_कल निनाद ।
अब तो व्यर्थ सब
सूना_सूना लगता है
कभी_कभी ऐसा लगता है
इतनी बड़ी दुनिया मे
अपना कोई रहा ही नहीं ।
Monday, July 20, 2009
वो चीज़ ही है कुछ और ,..!!
वो चीज़ ही है कुछ और
जहाँ मे दूसरा नहीं
उसके सिवा कोई और ।
बना रहा था खुदा जाने कब से
चाँद सितारों को
भूले से बन गया उससे
वही बस मेरा और ।
हमें भी यकीन था
उसके वादे का
शाम को मिलने का वादा था
पूछा तो बोले वो शाम थी और
तगाफुल न हुआ उससे कभी
हक मार दिया किसी का और
माना वो ज़हीनो से ज़हीन है
उसका भी नहीं कोई और ।
ये बात अजीब लगती है
क्यो नही उसका और
पुछा तो बोली इठला कर
दीवाना तुमसे नहीं और ।
फूलों से नाज़ुक लब हैं
शफ्फाक नहीं कोई और
संग तराश हार गए
नही बन सका उससे और ।
हम ही है की लफ्जों में
पीरों के बनाया बेमिसाल
वरना शायरी का भी
होता है कोई और _छोर ।
शिकवा उससे नहीं
ज़माने से है गिला
जिसे हम चाहते रहे
पर मिला कोई और ।
मिसाल नहीं कहीं
उसके शबाब का और
माहताब शर्मा जाता है
छुओ जाता है चकोर ।
शबनम कहू उसे या
कहू सीप मे पला मोत्ती
और क्या कहें ताज को
'रतन' का भी नही कोई और ॥ !!!!!!!
हम फ़िर से..!!!
फ़िर कभी न मिलने के लिए
आंधी तूफ़ान से भी न डरेंगे
मुहब्बत का चिराग दिल मे जलाएं ।
गिला शिकवा कोई तुमसे नहीं
जमाना ही जब दीवार बने
रूहों राग से तुम आशना
फ़िर भी लाखों ज़ख्म दिए ।
हम पहचान न पाए तुमको
तुम हमें जान न सके
हैफ ! बिना नज़रें उठाये क्यो
तुम बगल से गुज़र गए ।
आसमान सर पे उठाएंगे
जो तुम हमसफ़र न मिले
अब तुमसे क्या मिलेंगे
जब ख़ुद से कभी मिल न सके ।
तमाम जलालत झेली हमने
एक राज़_ऐ_परदा दारी के लिए
क्त्त्त्तार तुमने निकाली दफतन
जान निकली भी तो किसके लिए ।
मयकदे मे लुत्फ़ था बेपनाह
जब तक पिलाया साकी ने
जाम की भी क्या भला क्या औकात
पीते थे पैमाना पैमाने से टकरा के ।
किसी ने प्यार किया किसी के लिए खेल
हुस्न के तेवर रोज़ बदलते नए_नए
इल्तजा है यही तुमसे अब 'रतन'
दो हिम्मत ताज को हादसे से उबरने के लिए .... !!!
क्या करे .......!!!!
बलाएँ तो क्या करें
इक बेवफा को भूल न जायें
तो क्या करें ।
राजे इश्क आशकार करे
झूठ मूठ की तोहमतें
हम भी उस पर इल्जाम न
लगाए तो क्या करें ।
वो रोये बहुत हमसे बिचड कर
गुज़रे हद्द से
हम भी अश्कबार वो नज़रें
मिलाएँ तो क्या करें ।
वादा _ऐ_वफ़ा भूल jaana उसी
के वश की बात है
उनको भूलना इतना आसान
नहीं तो क्या करें ।
अपनी भी दुनिया है
अपना भी ज़माना
उसके लिए सबसे दुश्मनी
मोल ले कर क्या करें ।
वो मुज्जस्सिम बुत _ऐ_जफा
अब उससे क्या कहें
उसे भूल भी जायें 'रतन'
तो उसके अदा_ऐ_राज़ क्या करें ।
Sunday, July 19, 2009
तुम शहर छोड़ गए............!!!!!!
दीदार को आखें तरसती रहीं
जो रोज़ मेरा दिल बहलाती थी
वो आवाज़ बरसो से सुनी नहीं ।
तेरी रहगुज़र से गुज़रा किए बारहा
निगाह उठते ही नज़र नीची करनी पड़ी
किस बात से खफा है सनम
हमारी कोई गलती भी बतायी नहीं ।
बीत गया पतझड़ सूना सूना ही
शायद बहार मे आने की मर्ज़ी नही
तीरंदाज़ हो सबसे बड़े कायनात में
तरकश से तीर कोई निकला ही नहीं ।
हम तेरे डर पे मर मिटे तो भी
हौसला अफजाई करने तुम आई नहीं
रुसवाई के डर से परदे मे कब तलक
ये भी नही नकाब कभी तुमने उठायी नही ।
हमारा ही जिगर था झेल गए चोट
मिटाने की कोई कसर तुमने छोड़ी नही
हम मुब्तिला थे इश्क मे बा_हुस्न
फ़िर भी दावा तुमको की हरजाई नहीं ।
सहरा ऐ दिल पे न हो पायी बरसातें
तुम हुए गाफिल बात हमने छुपायी नही
किसी सूरत तू सूरत दिखा जा
हमने कभी पत्थर की मूरत बनायी नही ।
सर पे चढ़ जाते तुम और भी ज्यादा
हसीनो मे हसीं हो बात हमने बताई नही
दिल को हर वक्त काबू मे रखता 'रतन'
दीगर तुमसा दूसरा कहीं नहीं कभी नहीं ।
साल_ओ_साल पहले............!!!!
अब दिल मे उसका अक्स भी बाकी नही है ।
छूट गयीं महफिलें सारी पैमाना खाली
प्यास बुझाने को अब कोई साकी नही है ।
फलसफा_ऐ_मुहब्बत दफन हो गई कब्रगाहों मे
कब्र पे फूल चढाने वाला भी बाकी नहीं hai .
इंतज़ार मे तेरे आखें खुली की खुली रही
अब तेरे आने की कोई गुंजाइश बाकी नहीं है ।
परचम_ऐ_इश्क भी तार_तार हुआ दिल छलनी
दिल कहता है यह कोई नाकामी नही है ।
सूख गए अश्क नयन बोझिल से
अब कोई रात हम पे भारी नहीं है ।
कांटो से दामन तार_तार जिगर भी बाकी नही
ज़ख्म नया देने को कोई बाकी नहीं हैं ।
सूरज की करण खिड़की से छन के आई
जो अहसान तुमने किया उसका सानी नहीं ।
मदमस्त आखें ढलती रात उठती जवानी
तेरी फसल पे हमारी कोई जमींदारी नहीं हैं ।
कितना बचाया मगर दिल बेकाबू रहा
'रतन' इस फ़साने मे उसकी किरदारी नही हैं ।
देखा है रूखे रौशन देखा है
एक बार नही हज़ार बार देखा ही।
तुमने तो नही देखा परवाने को
नूर_ऐ_नज़र से हज़ार बार देखा है ।
तैयार बैठे हैं........!!!!!!!!!
हो के हर सितम से आजाद सरेबाजार बैठे है ।
किसने कहा तुमसे तर्क_ऐ_मुहब्बत हमने किया
हम तो तुझे ही समझ कसूरवार बैठे हें।
ज़माने ने नहीं दर्द दिया गिला तुझी से है
तुम सोचे पार हो गए सरे_ मंझदार बैठे हैं
किनारे से ही जुदा हो गए तुम
हम भी कश्ती मे बिना पतवार बैठे हैं ।
दिल की आतिश तुमसे रिश्ता जोड़े बैठी है
तुम हो दरिया बुझ जाने को सर_ऐ_आम बैठे है ।
सितारे गर्दिश मे मगर हमने भी ठानी है
वार सहने को तेरा लिए उधार बैठे हैं ।
आसमान से उतर जहाँ पे तू छा गई
दिल मे हम लिए तेरा प्यार बैठे है
रूठ जाओ करो जफा हमें ऐतराज़ नहीं
हम किसी और का लिए ऐतबार बैठे हैं
समझना ही होगा आखिरकार उल्फत को तुझे
हम भी बिगाड़ जिंदगी अपनी आखिरकार बैठे हैं
मुक़द्दस प्यार कहीं देखने को नहीं मिलता
हम भी jafaa का सारा किए इंतजाम बैठे हैं
इतनी भोली न बन ताज तुझको हम जानते हैं
कैसे कटती है रातें तेरा लिए फिराक बैठे हैं ।
न तुझसे ख़त_ओ_किताबत न कोई मलाल
रुसवा हुए किस कदर हुए गुमराह बैठे हैं ।
बहुत हुआ तो कब्र पे मेरी आकर रो लोगे
'रतन' अपनी मैय्यत का लिए सामान बैठे हैं ।
Monday, April 6, 2009
तेरी याद !
जैसे जल बिन मछली tadpadaati है
सवेरे का सूरज उगते ही तू याद आती है
और रात ढले तक तू दिल से नहीं जाती है । ।
Thursday, March 19, 2009
होश में तो रहो !!!
माना आज कल परेशानी में हो बहुत
इतनी है गुजारिश मगर होश में तो रहो
खिज़ा को मुहलत है थोडी देर को ही
थामने को दामन_ऐ_बहार जोश में तो रहो
अच्छा नहीं यूँ ख़ुद को भी भुला देना
गुस्ताखी _ऐ_गैर के लिए ख़ुद को सज़ा देना
जिंदगी एक जाम भी हैं ज़हर भी हैं
क्या है ज़रूरत जाम _ऐ_ज़हर होठों से लगा लेना
mastii_ऐ_नज़र अब वो रोनक _ऐ_रूख क्यो नहीं
तड़प और बहाली का आलम ये दिल का सुकून क्यो नहीं
अफसुर्दा_अफसुर्दा सी नज़र आती हो आज कल
अब वो अदाएं जलवायें सितम का जूनून क्यो नहीं
इज़हार_ऐ_दिल की बेपर्दगी के अफ़सोस मे तो रहो
बहारों में घूमो नज्जार_ऐ_शोख मे तो रहो
जिंदगी नही है सिफत टुकडो में जीना
नहीं हैं खुशी जाम_ऐ_गम में ख़ुद को डुबो देना
तुम्हारे जैसे गम_ऐ_मुहब्बत मेरे साथ भी हैं
नफस रूक रूक के भले चले न सदायें कजा देना
न रहो तन्हाँ , हमेशा महफिले शोख में तो रहो
हंसतीरहो सदा, मूड_ऐ_जोक में तो रहो
फ़िर तेरी महफ़िल में रंगों की छत्ता आएगी
जुल्फ तेरी लहराएगी तो फ़िर घटा छायेगी
होठों पे थिरकती है क्यो सदा_ऐ_सहरा
फ़िर तर्रनुम मचलेंगे उल्फत की सदा आएगी
कैसे मिलेंगे हम फ़िर होली इस सोच में तो रहो
बेलने के लिए पापड़ आलम_ऐ_maynosh मे तो रहो !!!
शेर
मिठाई से भी मीठी तेरी बातें
लब_ऐ_गुन्चएं गुलज़ार हैं तेरे
ला रहीं हैं बाद_ऐ_सबा तेरी यादें !!!
Friday, March 13, 2009
होली !!!!!!
गुलशन में बहार आई है
हर कली आज मुस्कुराई है
कुछ न पूछो भौरों के दिल में
आज क्या आई है _
'देखो चन्द कलियाँ खिली हैं
एक दुसरे को सुना रहा है
जिसके जी मे जो आता है
वही वह गुनगुना रहा है
उदास गुलों पर भी
आज तो रौनक आई है
देख कर फिजा को रंगीन
नर्गिस ने भी आँख झपकाई है
जवान दिलो मे देखो
अब प्यार मचलने लगा है
आज सड़क छाप हर दीवाना
शीशे के सामने सवरने लगा है ।
आज तो करीब से बोलो
न दूर से इशारा करो
आज ही तो वक्त है
कहने का बस इरादा करो
जनाबों के गले में पड़ी मालाएं
गुलाब के पहलू मे जूही पड़ी है
ये जो प्लेट लिए आई है
देखो तो पूरी फुलझडी है ।
कहती है देर न करो
अब जल्दी से सफाया करो
कभी कभी तो मिलते है मौके
कभी तो आँख मिलाया करो
हँसने_हँसाने का वक्त है
न तुम शरमाया करो
कभी खाया करो किसी से
तो कभी किसी को खिलाया करो
हर गली में हर सड़क पर
एक ही गीत बज रहा है
हर हिन्दुस्तानी एक दूसरे से
बन के bhaai गले मिल रहा है
कोई सलाम कोई बंदगी
कोई गुलाल मॉल रहा है
कोई होके फाग मे मस्त
बयान_ऐ_ फ़साना सुना रहा है
कितनी भीड़ भरी है sadken
कितनी ज़माते साथ चल रही हैं
दिल में आया तो साथ पकडा
वरना कोई अकेला चल रहा है
हर तरफ़ गौर से देखो
मुकद्दर की सुबह आई है
तमाम खैरात ले के आज
देखो कैसी होली आई है !!!
आखें तुम्हारी ....!!!!
लगता आज तुमने भी छानी
पिया हमने लज्जिशें तुम्हारी
होश में न आने की ठानी !!!!
लोगों से कहते हो तुम
हमने पिया रंगीन पानी
बीती शब् को भूल गए
साथ में तुमने भी तो छानी !!!!!
होली पर.......
रोज रोज आती रहे
मैं तुझे रंग लगाता रहूँ
तू रंग chudaati रहे.....!!!
Wednesday, March 4, 2009
रंजो गम जमाने के
लब पे ना shikwa ना gila
कदम आगे बढ़ा के हटाया
आख़िर तुम्हे क्या मिला .
Tuesday, February 24, 2009
ताज mahal
किसी ने कहा था मुझसे
ताज महल आगरा मे है
पर मेरा तो बिल्कुल
मेरी निगाह मे है।
वो ईमारत है
ये पैकर है
हुस नो शबाब का
जिस का मोहब्बत से मैंने
रख दिया वही नाम
जिसको शाह जहाँ ने
banwa कर क काटे
कारीगरों के हाथ
वो शाह था जिस को
किसी ने कुछ न कहा
मैं भी ना kahunga
bhale कर दे दिल का काम tamaam
वो ताज महल नही
सिर्फ़ किसी gareeb की
mahobbat का है mazak
पर शाह मे और mujhme
faasla saalon साल का है
उसे मुबारक हिंदुस्तान
मुझे सिर्फ़ adad
सिर्फ़ एक adad
चाहिए वही ताज महल
नही kaatne किसी के बालोंपर
हर एक को aajadi मुबारक
हम तुम aajad hind के
aajad बिल्कुल aajad ibarat
वो sang है but का turbat
तुम sang दिल ही सही
पर मेरे khayalon की तो हो mallika
मुझे mumtaj से नही misbat
न शाह जहाँ से काम
न ही patthar की ईमारत से taaluk
किसी भी सूरत मुझे अपना
अपना ही ताज महल चाहिए
जो की मेरी nigahon मे है.
Friday, February 13, 2009
तेरे दिए ज़ख्म ......!!!
महकते हैं
इसीबहाने तुझे हम हर वक्त
याद करते हैं
चारागर कोई नहीं जहाँ मे
सिवा तुम्हारे
इसीलिए सिर्फ़ तुम्ही से हम
प्यार करते हैं ।
तेरे लबों के ...... !
तेरे लबों के मुकाबिल भला गुलाब क्या होगा
तू ख़ुद लाजवाब है तेरा जवाब क्या होगा
खुदा ने ख़ुद तराशा है तुझे करामत है
हम परवानों का क़यामत मे हिसाब क्या होगा
परदा नशीं अब तो नकाब_ऐ_रूख हटा कर देख
ख्त्तो खाल से वाकिफ हम अब हिजाब क्या होगा
तेरे हुस्न की तारीफ़ मे chnd अशाअर कहे
हर कहीं ढूंढते हैं तुझे इससे बढ़कर फिराक क्या होगा
गली कूचा ओ बाज़ार की तू हसीं मल्लिका
वादा वफ़ा तुम करो खूलूसो एहसास क्या होगा
कमज़र्फ़ ज़माने ने बदनामी ऐ जिंदगी अता की
भला इससे बड़ा मुझ पर इल्जाम क्या होगा
गर एक बार नज़र मिला के तो देख हमें
हम पशेमान हुए फ़िर आख़िर शराफात क्या होगा
charaagaa किया किसी ने मुद्दतों बाद शम्मे महफ़िल
परवानो ने फेर लिया रूख इससे ज्यादा इन्कलाब क्या होगा
मुफलिसी me काट दिए दिन गम ज़माने के सहे
संग दिल भी चाक गिरेबान हुआ अब तेरा सवाल क्या होगा
मैंने माना तू हुस्न की मल्लिका रातरानी है
नज़रे मय पिला इससे बढ़िया शराब क्या होगा
नूरे नज़र लखते जिगर जाने जहाँ दर्दे दिल तू है
इससे बढ़कर मेरे जीने का असबाब क्या होगा
तू जिसकी नवाजिश करे वो खिदमत के लिए मरे
इससे भी बढ़कर गर्दिशे haalaaat क्या होगा
हम समंदर से निकाल कर लाये है moti
तू ना समझे फ़िर मेरे अहतियात का क्या होगा
अगर तू समझे तो तुझे रूबरू ऐ गुल करे
दिल पहले से जुदा है अब जान निसार क्या होगा
जो तू चाह ले हर कोई तेरा है महफ़िल मे
तेरे से जुदा अब खुदा का निजाम क्या होगा
हव्वा ने जो गुल खिलाये हैं कायनात भर में
जो हुआ सो हुआ अब ज़िक्र ऐ आदम क्या होगा
जो निकाला गया है बज्म से सरे aaam
आवारा घूमता है उसके लिए maniye खबरदार क्या होगा
lab से लगा जाम अब न तू थर्रा साकी
पहलू मे तुम , लबों पे मुस्कान आखिरकार क्या होगा
पेश तुझे हम भी मंज़र सुहाना ही करेंगे
फासला ऐ मंजिल बढ़ा कर salaamaat क्या होगा
ये महफ़िल है शेरो सुखन baadaa औ' पैमानों की
मेरी ग़ज़ल से ज्यादा "रतन " और असरदार क्या होगा ।
Saturday, January 17, 2009
मेरे दिल में अनेको घाव हैं
का तरीका निकालो.
बहुत चोट खाई है
तुम तो संभालो..
मेरे दिल में अनेको घाव हैं
जहाँ से भी भाव उठता है
नासूर,सा टभकता है
इसीलिए तो ...........
सोचना भी बंद कर दिया है
की कोई भाव ही न उठे
और दिल में कोई दर्द भी न उठे
एक घाव तो तुमने दिया था
और एक से यूँ हज़ार हो गए
तुम्हारे दिए घाव मे दर्द होता है
तो बाकि सब भूल जाता है
और किसी में दर्द होता है
तो तुम्हारी याद आ जाती है
वोह ज़ख्म मेरी मौत का
सामान बन गया था
तुम्हारा जान लेने का षडयंत्र
मुझपर एहसान बन गया था
मैं किस तरह से इस घाव से
छुटकारा पाऊँ
मैं बेगाना तुम्हारी बदौलत
सरेआम हो गया था
फिजाओं को जब देखता हूँ
और हरियाली में मन
डूबने उतराने लगता है
तो फ़िर कांटो की चुभन
भी याद आती है
और फ़िर उसी घाव में
एंठन होती है
एक खून का कतरा सा
उभर आता है
बिल्कुल लाल
मेरे nakardan gunahon ki tarah
क्यूंकि.........
मेरे दिल में अनेको घाव हैं
जहाँ से भी भाव उठता है
नासूर सा tabhakta hai
सभा-सोसाइटी हो या
दोस्तों की महफ़िल हो
और जब चलता है
दौरे-शराब
जामों का दौर पर दौर
शम्पैन,रस्तोसत और blacknight
की गुलाबी मादकता में
तुम्हारे diye ghaav ke
वहशियाना tharre ki
याद आ जाती है
क्यूंकि-
मेरे दिल में अनेकों घाव हैं
जहाँ से भी भाव उठता है
नासूर sa tabhakta है
na ab कोई iltaza
न कोई hasrat baki है
aadhi guzar चुकी
aadhi रात baki है
चाहत
की कोई शराबी तो कहे .
इसी नाते मेरी और अंगूर की
बेटी की रिश्तेदारी तो रहे..