Thursday, December 31, 2009
नए साल पर 2010
चाँदनी के सिवा
वीणा से चाहिए क्या
रागिनी के सिवा
फूल से चाहिए क्या
सुगंध के सिवा
हमें कुछ नहीं चाहिए
कामिनी के सिवा
............. ............. ................
गरज कहीं तुम्हारा दीदार हो जाए
दिल दोनों का सरशाद हो जाए
purkhijan चमन में फिर से
बजाये खिजां आलमें बहार हो जाए
नफरतों के धुंधलके हटें दरमियाने इश्क
फिर से तुम से प्यार हो जाए
जीतें हैं इसी हसरत में कभी to
तुम्हे हमारा ख्याल हो जाए
बीती बातें बीत गयीं ,नए साल में
कम से कम तुमसे दुआ सलाम हो जाए
नागवारियाँ भी नहीं इतनी अच्छी
तुमसे रस्मे इकरारे वफ़ा हो जाए
उम्रदराज़ हों तुम्हारी हजारों साल
साल में महीने पचास हो जाएँ
शमा बनी बेवफा जलाना ही काम
तुमसे तो कम से कम इकरार हो जाए
जीतें हैं, इस हसरत में कभी तो 'ताज'
हम rahein tanhan तुम्हारी कायनात हो जाए
'रतन' की गरज गोया इतनी ,कभी
तुमसे कहीं भूले से आदाब हो जाए
..................... ..........................
juhi chameli champakali
हो तुम्हे मुबारक
मुझे to आता है अब भी
murjhaya गुलाब
Wednesday, December 23, 2009
अंजामे-मोहब्बत
सर पे चढ़ जाते तुम और भी
हसीनों में हसीं हो बात हमने कही नहीं
दिल को हर वक्त काबू में रखता 'रतन'
ये बात और है तुम-सा दूसरा कहीं नहीं
....................... ....................... ........
हमसे किसी का दर्पण
संभाला न जाएगा
अपना अक्स भी
धुंधला नज़र आएगा
वक्त बीता कुछ
इस रफ़्तार से
अपना पता भी अब
पाया न जाएगा
कितनों के गुनाह
कितनों के सवाल हैं
अब तो अपने से
जवाब सुनाया न जाएगा
कोई पूछ ले सहसा
दर्द की बाबत
मूंह का ताला अब ' रतन '
खुलवाया न जाएगा
........................ .....................
मुहब्बत दिमाग के खलल
के सिवा कुछ नहीं
ये भी सच है उल्फत के बिना
जन्नत भी कुछ नहीं ॥
---------------- -------------- --
जितना भी भुलाऊँ... .......
बम सा फटा है क्या?
अगर यह किसी का दिल नहीं
तो फ़िर टूटा है क्या ?
.................... ......................... ....................................
जितना भी भुलाऊँ याद आता है वो
दिलजले को और जलाता है वो
उसके करम से आंखों मे आंसू हैं
जाने क्यूँ आज फ़िर से रुलाता है वो
सदियों पहले छोड़ी थी महफ़िल उसकी
मेरे आने की ख़बर से शमा जलाता है वो
फ़िर से छनक उठी उसकी पायल
अपनी मीठी सदा से बुलाता है वो
क़यामत है उसका आना भी अब तो
रहगुजर भले छोड़ी ख्यालों मे आता है वो
कसम खायी है मुब्तिला न होंगे अब
लाख बचें जोहरे-हुस्न दिखाता है वो
मिलने के ख्याल से शरमाते है हम
वक्ते-विसाल पलकों पे बिठाता है वो
गरज उसकी या मेरी नामालूम
अब भी बातों से दिल बहलाता है वो
बरसों उसकी ख़बर मिलती नहीं मुझको
मिलता है तो ' रतन ' गले लगाता है वो
............................. .................................
आओ तुम पास बैठो
कुछ अपनी सुनाओ
कुछ मेरी भी सुनो
भावों को स्वर दो ॥