Tuesday, May 25, 2010

मेरी अम्बुलेंस में
तीन लोग थे
बाकी अपनी-अपनी
कार से पहुंचे थे
कंधा देने से भ यूं
कतराए
गोया सभी अपने को
मेरे बाप का
दामाद समझते थे
---------

अपराध बोध

मैं कोई kasaab हूं
जिसे फांसी की सजा
सुना दी जाए
और वह एक खामोश
सन्नाटे से भूल जाये
जो चीत्कार भी न कर सके
उसका गुनाह क्या है
मुझे नहीं मालूम
लोग कह रहे हैं
वह यकीनन सजा का
हकदार है
कोई कह रहा है
फांसी की सजा छोटी है
उसे भीड़ के हवाले
कर दिया जाये अब तो आखिरी
ख्वाहिश पूची जाएगी
पता नहीं ख्वाहिश
वो क्या बतायेगा
जिसे अपने गुनाहों
का अफ़सोस भी नहीं

मेरी सजा फांसी से
भी बड़ी थी
जुर्म था सिर्फ यही ---
की ज़िन्दगी भर मैंने
मक्खी मारी थी
जो कुछ किया था
सिर्फ जुबान से किया था
पर आखिरी दम
मैं प्रायाच्छित भी
न कर सका
अपने गुनाहों का
शायद मैं बेहोश था
और वेंतिलाटर पर
रखकर
चार घंटे बाद
मार दिया गया
हर किसी ने किनारा
कर लिया था
मेरी लाश को
कन्धा देने को
चार लोग भी
पूरे न हुए

एक खामोश सी भीड़ थी
जो मेरी चिता से
फलांग भर दूर कड़ी थी
मैं आँखें मूंदे
सिर्फ जलन महसूस
कर रहा था
फूल पर ख़ाक डालने
वाले सिर्फ तीन थे

और बाकी
जिन्होंने सिर्फ अपनी
इज्ज़त बचने के
लिए मुझ पर
पैसा लगाया था
वो भी मुझको
गालिया दे-देकर
ज़िन्दगी भर मेरे साथ
उन्होंने पोलिटिक्स
के सिवा कुछ न किया

और अभी भी ---
मुझे जलता देखकर
परस्पर पोलिटिक्स कर रहे हैं
अब मेरे लिए उनके
पास पैसा नहीं है
और न ही इज्ज़त
जाने का अपराध बोध
--------

निजात

मुझे इस तरह से
जिन्दगी से निजात मिली
जैसे किसी को
मौत के बाद हयात मिली

हर कोई जाता है खाली हाथ
मुझे मौत के बाद कायनात मिली
जिन्दगी भर चला नंगे पाँव
खिली धुप में

मरने के बाद मुझे सुकून
की ठंडी छाँव मिली
दिन भर लोगों को
'गुरु वचन' सुनाता रहा
ठन्डे दिमाग से सोचने को
'रतन' अँधेरी रात मिली
--------- ----------- -----------

About Me

My photo
ROM ROM SE KARUNAMAY, ADHARO PE MRIDU HAAS LIYE, VAANI SE JISKI BAHTI NIRJHARI, SAMARPIT "RATAN" K PRAAN USEY !!!