हाँ मैंने भी पाप किया
अभिशापित जीवन जीया
देख कर मेरा करून क्रंदन
तुम क्यों करती व्यर्थ रुदन
स्नेह संबल सब छुट गए
गिरि_ चोटी पर खड़ा करता आराधन
बारम्बार तुमको पास बुलाया
खुद भी भरमा तुम्हे भरमाया
मैं क्या जानूं , क्या समझूं
करके तुम्हे शम्मा के रूबरू
अपनी फबन तुम स्वयं हो
बचा लो अपनी आबरू
मैं नहीं गया तुम्हारे द्वार
पथ ही अवरोध बना .
स्वर्ग_ नरक सब यहीं हैं
चुड़ैल यहीं अप्सरा यहीं है
मैं रखता विश्वास इसमें
और मेरा यकीन यही है .
जीवन स्वयं बर्बाद किया
पर तुमको आबाद किया .
यक्ष बना फिरता मंडराता
अखिल ब्रम्हांड मेरा बसेरा
सत्यव्रती कोई मिलता नहीं
प्रश्नोत्तर का ही भरोसा
कुछ सही कुछ गलत हुआ
ऐसा मेरे जीवन के साथ हुआ
ममतामयी छांव मे न बैठा
झूठी अकड़ के धुप में बैठा
किसने किसके साथ क्या किया
शायद मैं कुछ का कुछ समझा
भूल गया वादा , पिछला
इस जनम मे गया छला
हाँ मैंने भी पाप किया
अभिशापित जीवन जिया .
Wednesday, October 13, 2010
janam janam ka main bairaagi.......!!!!!!!!
क्यों तुझ पर दिल डोल गया ?
जनम जनम का मैं बैरागी .
आज तक समझ न पाया
स्नेह्सिंचित तेरे बैन
मैं किकर्त्व्यविमुद्ध हो गया
देख तेरे सजल नैन .
मन मंदिर का मैं पुजारी
क्या जानू थाल आरती
यह जग तो सपना है
देखा जाने कितनी बार
स्वप्न टूटा बिखर गया
तुम मिले कितनी बार ?
दिखाए ये दिन मुझे
हूं मैं तेरा हृदय से आभारी .
मृदुल कलिकाओ की किलकार
मुझे लुभाती बार_ बार
छोड़ अब व्यर्थ आडम्बर
आ जा सजनी मेरे पास
क्यों नाचे टेढ़े _आँगन ?
मीरा तो थी मतवाली
संचित पुण्य काम न आया
बोया आम गुठली न पाया
जीवन सर्द कुहरे मे ठिठुरा
स्वयं टूट टूट कर बिखरा
कर के भय व्याप्त मन मे
उपहास का मेरे कारण बनी .
नीरस इस जीवन में
ठहरने का नहीं अवकाश
अब तो जाना ही है
छोड़ सकल अहसास .
अपना दिल खोल गया
छूटी, अपनी धरती_माटी.
क्यों तुझ पर दिल डोल गया ?
जनम जनम का मैं बैरागी .
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