Sunday, June 26, 2011

alag alag tarah

हर एक उठता है लुत्फे-हुस्न अलग अलग तरह 
हसीनों की होती है अदा ए इश्क अलग अलग तरह 

ज़िन्दगी मिसाल बन जाती है औरों के लिए 
हर इक इंसान के लिए अलग अलग तरह ,

जामे-शराब हाथों में लेकर वो बढे आते हैं 
थमाने का अंदाज़ होता है हर बार अलग अलग तरह 

आँखों में उनके बेनाम ग़मों के साए हैं 
ढुलकते हैं अश्क मगर कभी अलग अलग तरह 

गुलाब भी है ,जूही भी,चमेली भी है गुलशन में 
खुशबू मगर वो फैलाते हैं हर बार अलग अलग तरह 

रहजन चलते हैं साथ साथ हमसफ़र के वेश में 
होते हैं इसलिए अन्जामें मंजिल अलग अलग तरह 

नैरंगियाँ ए इश्क से छा जाती हैं फिजा में बहार 
छटा अलग अलग होती हैं ,रंगत अलग अलग तरह 

मंजिले मक़सूद से पहले ख़त्म हो जाती है ज़िन्दगी
होते हैं कुछ लग्जिशे-कदम अलग अलग तरह 

किसी को बरसात भाति है किसी को खटकती है 
मौसम एक होता है ,होती है चाहत अलग अलग तरह 

जितना ही आगे बढ़ो ,दूरी ए मंजिल बढती जाती हैं 
होते हैं कभी कभी फासले अलग अलग तरह 

शायद सफ़र में किसी दरख़्त के पीछे से वो निकलें 'रतन' 
होते हैं ज़िन्दगी में मजे वस्लत के अलग अलग तरह 

Saturday, June 18, 2011

Tathya

कईयों को कहते सुना है 
पापी पेट के वास्ते ही 
कमाना पड़ता है 
पर जहां तक मैं समझता हूँ  
पेट के लिए कोई परेशान नहीं होता 
होता है तो महज ऐय्याशी के लिए 

duniyaan

दुनियाँ बहुत हसीं सही 
मगर कमज़र्फ़ भी कम नहीं 
जितनों को देखा उनमें 
कोई ऐसा नहीं जो खुदगर्ज़ नहीं 

Friday, June 10, 2011

nimantran

बहिश्त से बुलाने 
            क्या फ़रिश्ते आएँगे
या दोजख से कुछ 
             मनचले चले आएँगे 
वक्ते-महशर क्या होगा 
             हमें मालूम नहीं 
क़यामत के बाद तो 
             सनम मिलने आएँगे 

Saturday, April 9, 2011

tere bagair

मैं तो परीशान हूँ तेरे बगैर
तू नहीं क्या परेशान मेरे बगैर 

यह राज़ तो राज़ ही रहेगा 
तेरे मेरे मिले बगैर

और मिलना इतना आसाँ नहीं 
बिना कोई जंग किये बगैर 

कोशिशों से क्या होता है 
 तायर उड़ नहीं सकता परों के बगैर 

जाहिर सबको कोई रिश्ता तेरे मेरे बीच  
रास्ता नहीं कोई दीवार ढहाए बगैर  

आफातो-मसायब सब मोल लूं 
कैसे तेरी मर्ज़ी जाने बगैर

सच तो यह है मजरूह हम दोनों ही 
धुआं उठ नहीं सकता आग लगे बगैर
मोहब्बत में नाकामियों  का रोना ही तो है 
कोई रह नहीं सकता किसी को रुलाये बगैर 

मोहब्बत इतनी सस्ती भी नहीं की
चौराहे पे खड़ी की जाये तुझे बताए बगैर 

महफ़िल है ये गुरोरोफन वालों की 
इसलिए छोड़ी हमने किसी से हाथ मिलाये बगैर 

मोहब्बत नहीं ये अकीदत है परवा क्या 
जेहाद हो नहीं सकता एक दुसरे से मिले बगैर 

रुख से तेरे पर्दा न उठा तो क्या 
चांदनी छिटक सकती क्या चाँद के बगैर 

सच पूछो तो 'रतन' परीशां कुछ ज्यादा ही 
नज़र उठ के झुक क्यूँ गई राज़ जाने बगैर      
  
  

dil pahlu se juda hua

नज़रें मिला के नज़रें चुराना हुआ 
अच्छा है खत्म ये अफसाना हुआ 

दिल लगी दिल्लगी हुई 
उनके हक में जमाना हुआ    

हमसे मोहब्बत हमीं पे इनायत
हमीं से दामन बचाना हुआ 

हसरते उल्फतोकरम न रहा 
जो हुआ वो अच्छा हुआ 

बरबस तो कुछ न था 
पर माहताब क्यूँ छुप गया ?

कुछ समझ न आया
अचानक तुमको क्या हुआ ?

लहरें शांत हो गईं 
ज्वार भाटा न रहा 

कश्ती ए उल्फत डूब गयी 
समंदर को क्या हुआ?

दिलकश अदा जादू ए वफ़ा 
चाँद रोज़ में बुखार उतर गया 

किसी की हालत बिगड़ी 
मगर बीमार तुम्हारा अच्छा हुआ 

जिक्र करते वादा वो वफ़ा का   
पर ख़त्म वो इरादा हुआ 

दिल टूटने की आवाज़ न हुई 
दिल भी अब पहलु से जुदा हुआ 

कुछ गुल थे चमन में जरूर  
हमीं को मगर क्यूँ चुना गया 

काश! तुम्हे वाईज समझाए 
'रतन' क्यूँ कुम्हला गया 

Thursday, April 7, 2011

tumhara hothon pe

तुम्हारा होंठों पे उंगली रख कर मुह फेर लेना  
कुछ न कहने की नसीहत मिल गयी 

मैं तमाम उम्र न दे सकूंगा कोई जवाब
 तेरी एक नज़र की बेज़ुबानी कह गई 

रिश्ता नहीं कोई हमारे तुम्हारे दरमियान 
जिक्रेवक्तेरफ़्तार की बात पुरानी हो गई 

अपनी सोचो  समझ से वाकिफ  कैसे करें
दो रोज़ न मिल सके अपने को पशेमानी हो गयी
   
 तल्खी-ए-दिल से अब बहारों में रौनक न रही 
कभी गुल भी खिले थे बात पुरानी हो गयी 

सिलसिला ए माजी जेहन में नोकेखार सी चुभती है 
अब तो अंगूर की बेटी भी सयानी हो गयी 

किस तरह से पेशे नज़र करें तुम्हे अशआर 
सुबहशाम मिलते थे अक्सर वो बात पुरानी हो गयी 

'रतन' को कोई गिला नहीं तुमसे हरगिज़ 
भले जमाने को किसी तरह बदगुमानी हो गयी     

Monday, April 4, 2011

Navvarsh

सोचता हूँ नववर्ष को 
             क्या यूं ही बह जाने दूं
मैं कुछ लिखूं तुम पर 
              यदि तुम भी कुछ लिख सको 
व्यतीत को भुला आज फिर से 
               तेरा श्रिंगार कर सकूं 
एक बार फिर से जो 
                गले आ के मिल सको       

Kaash!

राह में कई गुलाब मिले 
पर उनकी खुशबू खींच न पाई
मुझे तो तलाश थी गुलशन की 
पर जब गुलशन का नज़ारा हुआ 
तो पतझड़ बीतने को था 
और फूल सूख चुके थे 
सिर्फ हर और कांटे ही कांटे थे 
दिल से एक आह निकली काश!
राह के फूलों की उपेक्षा न की होती 
आज काँटों से दामन तार-तार न होता   

Saturday, March 19, 2011

SUNANE MEIN AYA HAI.

सुनने में आया है 
 सभी आजिज़ हैं 
हैरान परेशान हैं 
मुझसे 
क्यूँ?
किसी की नहीं सुनता मैं 
बस अपनी ही धुनता हूँ 
किसी की बात का असर 
               ही नहीं 
खुद ही समझता हूँ 
खुद ही करता हूँ 
संगीत महफ़िल में 
होली की 
एक दोस्त ने पूछा 
सेक्रेटरी से मेरे 
यूँ जो मैं हरदम 
          अनाप-शनाप 
           आयोजन किया 
                करता हूँ 
किसी की आलोचना 
सरेआम किया करता हूँ 
किसी को राजा 
किसी को दुर्भिक्ष  का मारा 
बताया करता हूँ 
 कोई क्या मुझे कुछ 
              नहीं कहना 
मेरा भविष्य होगा क्या 
व्यतीत इन्हीं नाना 
               कार्यक्रमों में 
सोसिएटियों में ,मीटिंगों में 
ज़िन्दगी में मुझे क्या 
               कुछ नहीं कहता 
या फिर चुका हूँ ,जो 
सब कुछ मुझे करना था 
मिला जवाब उनकों 
सेक्रेटरी साहब ने 
                ये बतलाया 
अजी क्या कहें 
सभी तो हैं परेशान 
आजिज़ हैं मुझसे 
खुद वो भी आजिज़ हैं 
मैं किसी की नहीं सुनता
या तो सबकी सुनता हूँ 
उनको फिर धुनता हूँ 
फिर सबको जोड़-जोड़ कर
                बुनता हूँ 
फिर मगर बाद में 
अपनी ही बात पे
अपनी ही राय पे 
अड़ता हूँ 
रहा भविष्य मेरा 
उसके बारे में 
तर्क हैं वितर्क हैं 
ये मीटिंग
मेरे भविष्य नहीं हैं 
इनसे क्या होना 
ये तो पास टाइम है 
              केवल
रहा भविष्य में
कुछ करने का सवाल 
जो कर रहा हूँ 
           वो करना नहीं था 
जो करना था वो तो 
अभी शुरू ही नहीं किया ,
ये सभी तो केवल 
           BACKGROUND  हैं 
भविष्य के कार्यक्रमों के 
बात बस ये सही है 
सभी हैं आजिज़ मुझसे 
कोई कहे क्या 
कह के करेगा भी क्या 
होगा वो बिलकुल 
अरण्यरोदन 
भैंस के आगे बीन बजाना 
या तो  फिर
बन्दर  को अदरक चखाना
इनसे कुछ होने वाला नहीं 
वाकई! 
क्या परेशान हो तुम भी 
            हैरान हो तुम भी 
           पशेमान  हो तुम भी 
                          मुझसे 
ये शक मुझे 
            तुम्हारी अदाओं से 
            होने लगा है 
तभी तो महफ़िल में 
             तुम्हारे 
उम्मीदवारों की संख्या 
              बढ़ने लगी हैं 
प्यालों की शौर्टेज 
               होने लगी है 
लगता है तुम भी आजिज़ 
               हो गई हो मुझसे 
तंग हो तुम भी 
मेरे रोज रोज़ के  
           खुराफातों से 
मेरी उलटी सीधी
            बातों  से 
मेरे इश्क में डूबे
             अशारों से 
तभी तो उसी पुरानी अदा से
अब शेर सुनने को 
              नहीं कहती 
तभी तो बस
              तुम्हारे दरवाज़े पर 
हौसफुल का बोर्ड 
              नज़र आने लगा है
और इस बात का असर 
मुझ पे क्या हुआ है 
दिन में चाँद 
तो रात को सूरज 
               नज़र आने लगा है 
वाकई सब आजिज़ हैं 
                मुझसे 
ये चाँद ,ये सूरज ,ये जमीन भी 
तभी तो वफ़ा कोई नहीं निभाता 
बिलकुल तुम्हारी तरह 
वाकई तुम भी आजिज़ हो मुझसे 
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bura na mano holi hai

बुरा न मानो होली है
           चली भले आज गोली है
हम जिस पर लिख रहे हैं 
            वह 'चीज़' तो सरकारी हैं 
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 होली के रंगारंग 
             कार्यक्रम पर 
नृत्य प्रस्तुत 
             करते हुए 

अपना हुनर 
              दिखाते रहे 
लोग 'एक बार फिर'
              का नारा लगाते रहे 

हम और भी 
              उमंग के साथ 
वही नृत्य बार-बार 
              दोहराते रहे 

अगर जजों  ने 
              एक न मानी 
हमको कम से कम 
              नम्बर देते रहे 
 
पुब्लिकली  हम 
              बहुत हाई रहे
मगर जब हमें 
              हूट करते रहे..  






         


   
   
      

Friday, January 14, 2011

kitna tum muskuraye?

बहार के लोग भी क्यों नवाजें 
जब घर के ही लोग बाहर   भगाएं ?


ये तो हमारा ही जिगर था जो जान?
बचा कर तेरी महफ़िल से भाग आयें 


वहां भी काँटों की सेज यहाँ भी वही
दिल लगाया फूल से पर कांटे ही पाए 

ना अब तेरी लगजिश पर तुझे थामेंगे 
एक बार नहीं कई बार की हमने खताएं 


हमें नहीं गरज नाजों-अंदाज़ तेरे सहें 
खुद भी फसें और तुझे भी फसाएं


तू अपनी मंजिल खुद ही तलाश कर 
हम नहीं तेरी आरज़ू तुझे कौन समझाए?


 इश्क ही नहीं मेरा फसाद की जड़ था 
हुए गुमराह हुस्न ने वो मंज़र दिखाए 


समअन्दर से भला किसकी प्यास बुझी 
दूधिया  चांदनी बिखरी शबनम से नहाये 


किस्सा-ए-कोताह अब न मुब्तिला  होंगे 
बार-बार तू पास आये,बार बार दूर जाये 

हमने राजे-पर्दा , राज़ रखने की गुजारिश की 
धर दिए हम ही पर तुमने इलज़ाम सारे 


आज जब तनहा हूं आता याद तेरा फ़साना 
हम मरें नाले और तू बज्मे-जश्ने-बहारां सजाये!


बुझ चुकी शमां मिट चुका तेरा परवाना 
तेरी नवाजिश पर कुर्बान हम बार-बार जायें ,


जलवा तेरी महफ़िल का देखा किये 'रतन'
दागे-रुसवाई लगा कर कितना तुम मुस्कुराये? 
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सांस यूँ ही अटक गयी 
राह आके सामने रुक गयी 
तुम न आ सके 
ज़िन्दगी फिर ठहर गयी 
अनवरत संघर्ष के बाद 
भी मंजिल खिसक गयी 
डरता रहा हर लहर को 
भंवर समझ कर 
कुछ न कर सका 
प्रयत्न फिर सिमट गए 
 समझा तुम एक बार आओगे 
इसी आस में ज़िन्दगी गुज़र गयी


                          -rajeev ratnesh

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