Saturday, April 9, 2011

tere bagair

मैं तो परीशान हूँ तेरे बगैर
तू नहीं क्या परेशान मेरे बगैर 

यह राज़ तो राज़ ही रहेगा 
तेरे मेरे मिले बगैर

और मिलना इतना आसाँ नहीं 
बिना कोई जंग किये बगैर 

कोशिशों से क्या होता है 
 तायर उड़ नहीं सकता परों के बगैर 

जाहिर सबको कोई रिश्ता तेरे मेरे बीच  
रास्ता नहीं कोई दीवार ढहाए बगैर  

आफातो-मसायब सब मोल लूं 
कैसे तेरी मर्ज़ी जाने बगैर

सच तो यह है मजरूह हम दोनों ही 
धुआं उठ नहीं सकता आग लगे बगैर
मोहब्बत में नाकामियों  का रोना ही तो है 
कोई रह नहीं सकता किसी को रुलाये बगैर 

मोहब्बत इतनी सस्ती भी नहीं की
चौराहे पे खड़ी की जाये तुझे बताए बगैर 

महफ़िल है ये गुरोरोफन वालों की 
इसलिए छोड़ी हमने किसी से हाथ मिलाये बगैर 

मोहब्बत नहीं ये अकीदत है परवा क्या 
जेहाद हो नहीं सकता एक दुसरे से मिले बगैर 

रुख से तेरे पर्दा न उठा तो क्या 
चांदनी छिटक सकती क्या चाँद के बगैर 

सच पूछो तो 'रतन' परीशां कुछ ज्यादा ही 
नज़र उठ के झुक क्यूँ गई राज़ जाने बगैर      
  
  

dil pahlu se juda hua

नज़रें मिला के नज़रें चुराना हुआ 
अच्छा है खत्म ये अफसाना हुआ 

दिल लगी दिल्लगी हुई 
उनके हक में जमाना हुआ    

हमसे मोहब्बत हमीं पे इनायत
हमीं से दामन बचाना हुआ 

हसरते उल्फतोकरम न रहा 
जो हुआ वो अच्छा हुआ 

बरबस तो कुछ न था 
पर माहताब क्यूँ छुप गया ?

कुछ समझ न आया
अचानक तुमको क्या हुआ ?

लहरें शांत हो गईं 
ज्वार भाटा न रहा 

कश्ती ए उल्फत डूब गयी 
समंदर को क्या हुआ?

दिलकश अदा जादू ए वफ़ा 
चाँद रोज़ में बुखार उतर गया 

किसी की हालत बिगड़ी 
मगर बीमार तुम्हारा अच्छा हुआ 

जिक्र करते वादा वो वफ़ा का   
पर ख़त्म वो इरादा हुआ 

दिल टूटने की आवाज़ न हुई 
दिल भी अब पहलु से जुदा हुआ 

कुछ गुल थे चमन में जरूर  
हमीं को मगर क्यूँ चुना गया 

काश! तुम्हे वाईज समझाए 
'रतन' क्यूँ कुम्हला गया 

Thursday, April 7, 2011

tumhara hothon pe

तुम्हारा होंठों पे उंगली रख कर मुह फेर लेना  
कुछ न कहने की नसीहत मिल गयी 

मैं तमाम उम्र न दे सकूंगा कोई जवाब
 तेरी एक नज़र की बेज़ुबानी कह गई 

रिश्ता नहीं कोई हमारे तुम्हारे दरमियान 
जिक्रेवक्तेरफ़्तार की बात पुरानी हो गई 

अपनी सोचो  समझ से वाकिफ  कैसे करें
दो रोज़ न मिल सके अपने को पशेमानी हो गयी
   
 तल्खी-ए-दिल से अब बहारों में रौनक न रही 
कभी गुल भी खिले थे बात पुरानी हो गयी 

सिलसिला ए माजी जेहन में नोकेखार सी चुभती है 
अब तो अंगूर की बेटी भी सयानी हो गयी 

किस तरह से पेशे नज़र करें तुम्हे अशआर 
सुबहशाम मिलते थे अक्सर वो बात पुरानी हो गयी 

'रतन' को कोई गिला नहीं तुमसे हरगिज़ 
भले जमाने को किसी तरह बदगुमानी हो गयी     

Monday, April 4, 2011

Navvarsh

सोचता हूँ नववर्ष को 
             क्या यूं ही बह जाने दूं
मैं कुछ लिखूं तुम पर 
              यदि तुम भी कुछ लिख सको 
व्यतीत को भुला आज फिर से 
               तेरा श्रिंगार कर सकूं 
एक बार फिर से जो 
                गले आ के मिल सको       

Kaash!

राह में कई गुलाब मिले 
पर उनकी खुशबू खींच न पाई
मुझे तो तलाश थी गुलशन की 
पर जब गुलशन का नज़ारा हुआ 
तो पतझड़ बीतने को था 
और फूल सूख चुके थे 
सिर्फ हर और कांटे ही कांटे थे 
दिल से एक आह निकली काश!
राह के फूलों की उपेक्षा न की होती 
आज काँटों से दामन तार-तार न होता   

About Me

My photo
ROM ROM SE KARUNAMAY, ADHARO PE MRIDU HAAS LIYE, VAANI SE JISKI BAHTI NIRJHARI, SAMARPIT "RATAN" K PRAAN USEY !!!