तुम वो नगमा हो 
           जिसे हम गुनगुना नहीं सकते 
तुम वो साज़ हो 
            जिसे हम बजा नहीं सकते 
तुम मेरे दिल की 
            वो खामोश सदा हो ,जिसे
हम चाह कर भी
            किसी को सुना नहीं सकते 
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जीने की सजा हम पाए हुए हैं  
बिन पाए  तुझे हम पाए हुए हैं 
मर मर कर भी जीने को मजबूर हैं 
ज़ख्म मोहब्बत से बहुत खाए हुए हैं 
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तेरे मिलने की आस में 
सड़कों की ख़ाक छानता रहा 
तू मिल न सका मुझसे        
सिर्फ रहगुजर ताकता रहा   
कितना खुशनुमा मौसम था 
जब तू पहली बार    mila  था 
अबकी मिलते भी तो ऐसे 
जैसे बरसों से बिचड़ा था 
मैं तुझे देखकर कैसे 
अनदेखा करू 
न देखूं तुझे तो 
किसे देखा करून 
तू ही बता ई सनम 
ये दूरियां अब कैसी 
जज्बात मिट गए 
अब सलामियाँ कैसी 
मौसम बहार का था 
शायद वह सावन था 
मेरी डायरी में लिखा 
तेरा पता  मनभावन था 
तेरी याद में आसूं
मिज्गाअन में पिरोता रहा 
अबकी मिलो तो
मौसम भी रोता रहा 
अफसुर्दा मौसम 
ये सुरखाब का नज़ारा 
कैसा होता है 
ये मोहब्बत का tamasha    
तेरा वो तीर 
दिल को पार निकल गया 
मैं सोचता ही रहा 
और तू दूर निकल गया 
 
अपना कौन 
दर्देदिल कहूं किस्से 
दूरियां बढ़ रहीं 
मिलें तुझसे कैसे 
बड़ी बेबाक तेरी बातें 
अपनों से जैसे अपनों की बातें 
दुआ सलाम तक का आलम 
उन गुजरे लम्हात की बातें
 
रौशनी सकुचाती है 
तेरे बगैर ही मुस्कुराती है 
अपना हुआ बेगाना
ये प्यार का दुश्मन जमाना 
दिल बीसमिल जिगर घायल 
अपना ही क्या रहा ठिकाना 
तेरे होठों से वो मौसम की बातें 
बातों ही बातों में 
बातें ही बातें 
पुरशरसआर थी महफ़िल 
सरेबज्म तेरी 
बेबाक बातें 
कहीं से नहीं आते ख़त 
दें जवाब किसका 
इंतज़ार किसी का 
ये ख्याल किसका 
आरजू में तेरी हाल अब किसका 
बिछड़े सनम 
तेरा मासूम चेहरा 
बस्ता है आँखों में
कैसे हते तुम पर से pएहर 
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2 comments:
तेरी याद में आसूं
मिज्गाअन में पिरोता रहा
अबकी मिलो तो
मौसम भी रोता रहा
पंक्तियों का सार अत्यंत मनोहर है
बहुत ही भावपूर्ण निशब्द कर देने वाली रचना . गहरे भाव.
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