और लोग भले जाएँ 
                चार काँधे चढ़ के 
हम अपनी डगर 
                खुद पार करेंगे । 
नहीं चाहिए किसी 
                की मेहरबानी , 
हर सूरत है अपनी, 
                जानी_पहचानी । 
फिर किस पर 
               हम नाज़ करेंगे ,
हम अपनी डगर , 
               खुद पार करेंगे । 
भले बचपन बीता , 
               लाड्ड_ दुलार मे , 
यौवन आया सुकुमार , 
               बन कर के ।  
बुढापे मे नहीं 
                त्रास सहेंगे । 
हम अपनी डगर 
                खुद पार करेंगे । 
बहुत दोस्त हैं कहने 
                 को अपने , 
मौका आने पर 
                 बहाने बनाते । 
हम अविश्वास प्रस्ताव 
                 पास करेंगे 
हम अपनी डगर 
                 खुद पार करेंगे । 
सगा नातेदार रिश्तेदार 
                  काम न देगा ,
अपना बेटा ही 
                दाह कर्म करेगा । 
हम न किसी से 
                फ़रियाद करेंगे , 
हम अपनी डगर 
                खुद पार करेंगे । 
जीवन नैया पर 
                 सवार होकर ,
भले दूर जाओ  
                 साथ छोड़ कर, 
हम तट को , 
                  मंझदार करेंगे । 
जीवन की गुलामी 
                   एक त्रासदी है , 
हम ही नहीं 
                  सभी के साथ यही है । 
फिर भी हम यही 
                  बात कहेंगे 
हम अपनी डगर 
                  खुद पार करेंगे ।  
Friday, July 23, 2010
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