मेरी जिंदगी मे ये ख़ुशी ये बहार न होती 
गर कश्तिये जिंदगी के लिए याद पतवार न होती । 
बिखरते_ बिखरते रह गया मेरा चंचल मन 
चूड़ियों की खनखनाहट में उलझ गया ये जीवन 
मस्ती छिटकी, प्यार की हवा अंगनाई अंगनाई चली 
नेह_नाता तुमसे बन गया प्रीत का अनमोल बंधन । 
फिर जिंदगी का रिसता ज़ख्म कैसे भर जाता 
जब मुझे बहलाने को पायल की झंकार न होती । 
तुम्हारे होठों की लाली बन गयी तक़दीर मेरी 
सौगाते जिंदगी बन गयी है ये तस्वीर तुम्हारी 
सुकून बन के जिंदगी मे आई हो ऐ हमकदम 
मेरे ज़ख्मों को सहलाने की अच्छी है तदबीर तुम्हारी । 
शर्मो हया का आँचल जो लगा लेती रुख से अपने 
तो तुम्हारी आब्शारेज़ुल्फ़ की ठंडी फुहार न होती । 
तुम्हारे न होने से आज प्यास फिर बढ़ गयी है 
एक आग सी दिल मे मेरे फिर लग गयी है 
जाने क्या सोच कर तुम पैगामे रुसवाई भेजती हो 
जबकि संवर के ये दुनिया मेरी फिर बदल गयी है । 
पा कर तुम्हारा साथ साजे जिंदगी छेड़ दिया था मैंने 
तुम अदाए जफा छोड़ देती तो जिंदगी अंगार न होती । 
मौसमे बहार में हर कली महकी महकी थी 
शाखे जिंदगी पर हर बुलबुल कुहुकी कुहुकी थी 
वो झरनों की घाटी में देवदारों के साए तले 
हर बात तुम्हारी मीठी हर अदा बहकी बहकी थी 
अब तो हर तमन्ना पर पद गया है मौत का साया 
तुम जो मिल जाती तो जिंदगी ये सोगवार न होती । 
मेरी जिंदगी में ये ख़ुशी ये बहार न होती 
गर कश्तिये जिंदगी के लिए याद पतवार न होती । 
Friday, September 3, 2010
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1 comment:
शर्मो हया का आँचल जो लगा लेती रुख से अपने
तो तुम्हारी आब्शारेज़ुल्फ़ की ठंडी फुहार न होती
खुबसूरत शेर दिल की गहराई से लिखा गया बधाई
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