प्यार तो एक समंदर है 
जिसकी नहीं कोई थाह 
हम तुम मुसाफिर हैं 
जीवन है एक छोटी नाव !
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पहले इसके दुश्मनी हमसे संसार करे 
मैं तुझे प्यार करूँ तू मुझे प्यार करे । 
कौन आता है मुक़ाबिल वफ़ा के देखें 
मैं तेरा इंतज़ार करूँ तू मेरा इंतज़ार करे । 
बिला वजह तंगदिल है आशियाना सारा 
मैं तेरा दीदार करूँ तू मेरा दीदार करे । 
कहते हैं तो मिलते हैं सनम कहीं भी 
मैं तेरी बात करूँ तू मेरी बात करे । 
कद्र्दाने हुस्न बहुत हैं तेरा ध्यान इधर 
मैं तेरा ख्याल करूँ तू मेरा ख्याल करे । 
राहे वफ़ा में आता है वक़्त कभी नामुनासिब 
मैं तेरा मुन्तशिर हूं तू ख्याले जज़्बात करे । 
तेरे लबों की खामोशी कुछ कहती है 
मैं तुझसे इज़हार करूँ तू मेरा इमदाद करे । 
सनमखाना है तेरा बूते महफिले हरम 
मैं तुझे पेश करूँ तू मुझे पेशे जाम करे । 
जीने का करीना तुम्ही से सीखा है हमने 
आओ बज़्म में हम तेरा इस्तकबाल करें ।
शोहरत तेरी हर महफ़िल हर बुतखाने मे 
मैं तुझे सलामे नज़र करूँ तू मुझे सलाम करे । 
वाइज़ के कहने से कैसे तौबा कर ले हम 
तू जब तक न कहे कैसे तुझे अलविदा कहें । 
दरियाए मुहब्बत में भंवर भी मंझधार भी 
तुम मुझे साहिल बख्शो हम तुझे पार करें ।  
कौन कहता है शम्मे महफ़िल में नूर नहीं 
अपने फलसफे मे फ़साने में तुझे किरदार करें । 
तू कहीं आसमानों से उतर कर आती हो 'ताज '
मैं तुझे माहताब कहूं तू मुझे आफताब कहें । 
अब तो अपना दिल कहीं भी लगता नहीं 
'रतन ' तुझे खुशहाल करे तू मुझे आबाद करे । 
Friday, September 3, 2010
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1 comment:
अब तो अपना दिल कहीं भी लगता नहीं
रत्नेश जी ......... बिलकुल सही बात बोली आपने........
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