अपने गम छुपा कर भी 
मुस्कुराता रहता हूं मैं 
फिर भी लोग कहते हैं 
क्यों गूम्सूम रहता हूं मैं । 
शान मे किसी की 
कमी न हो जाये , 
इसलिए सबसे 
बा_अदब रहता हूं मैं । 
कोई गालियाँ भी दे 
तो खामोश रहता हूं मैं 
बेगाने को भी अपना 
जान के गले लगता हूं मैं । 
मतलब निकालने को लोग 
मतलब रखते हैं , 
गोया की किसी काम 
का मुझको समझते हैं । 
मुकद्दर भी कोई चीज़ है 
यह तो हर बशर जानता है 
असलियत मुकद्दर की 
अच्छी तरह समझता हूं मैं । 
उसकी गली मे भूले से 
कदम क्या रख दिया 
अभी भी अपना दीवाना 
समझते हैं वो । 
मुहब्बत भी देखी और 
देखी तगाफुल भी 
दोनों से बाखबर 
बा_ होशियार रहता हूं मैं । 
चले गए दीन_ओ_ईमान भी , 
उनकी मुहब्बत मे 
पर अभी भी मुरव्वत से 
काम लेता हूं मैं । 
ये झूठे रिश्ते_नाते 
कब तक फरेब देंगे 
असलियत इनकी 
अच्छी तरह समझता हूं मैं । 
Wednesday, July 7, 2010
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खूबसूरत पोस्ट
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