Thursday, October 30, 2025

तू आस्मानों से उतरे तो---!!!

शफ्फाक बदन से तेरे शरमा रही थी चाँद की चाँदनी भी
तीरगानी कमरे की विकट हास से परिलक्षित थी देख कौतुक कामिनी की
उन्नत उरोज मेरे सीने में धँसे- दबे से जाते थे, सकुचाते थे
पैर हिरनी के, चक्कर लगा आई थी मेरे सारे मनभावन गलियों की

हमजबीं, नाजनी हमने तेरे प्यार की अजमियत ही नापी थी
तूने मुझे प्यार का एक शातिर शिकारी ही समझा
गुनहगार नथे किसी के, सीना तान के चलते थे
रहती थी तेरी नजर हमेशा ही बस मेरी सधी चाल पे

तोहफा देने को तुझे दिल के सिवाय मेरे पास कुछ और न था
तुझे कुछ और ही चाहिए था, तोहफा तुझे ये नाकुबूल था
समझ गया था तुझे बस पहली ही इक बार की निगाह से
तिनका भी न तोड़ा होगा अपने हाथ से कभी, बादाख्वार बेहाल था

गोशा- ए- दिल के एक कोने में बतौर ताइरे- जज्बात थी तो तू थी
किस हाल में रसभरी से तेरे चूस डाले सारे मीठे-मीठे जहर
मेरे दिल की अरदास थी तू, मेरी बनी और मेरी ही रहे
कहाँ- कहाँ न मन्नत मानी तेरे जौरे- जौहर हमेशा मेरे शाने पे रहे

तकदीर की सिकंदर थी तू, जो तूने चाहा वही मिला
हमको गुजरगाहे- मंजिल समझ लिया, किसका पलड़ा भारी रहा
दिल का सौदा हमसे करते न बना, पकड़ शिकारी को लिया
हम ताइरे- मजरूह होकर जमीं से लगे, तू परी बन आस्मान में उड़ी

रफीकों ने कैफियत बयान की थी तुम जैसों की
बेसबब दुश्मनी तो होती है, बेगरज दोस्ती इनकी नहीं होती
इसीलिए तुमसे दोस्ती का हाथ हमने अपने आप आगे नहीं बढ़ाया
तू आस्मानों से उतरे तो" रतन" धरती की पेश तुझे सौगात करें//

                    राजीव रत्नेश
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