ईश्वर
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कोई तो है ,जो हम सब का नियमन करता है
मै और तुम नहीं हो सकते ,पर वो तो है ,
चाँद -तारों को ,अपनी चाल में चलाता है।
पृथ्वी को एक धुरी पर घुमाता है ,
कोई तो है ,इस सृष्टि का संस्थापक ,
वो भले हमें नज़र नहीं आता है।
परिवर्तन के चक्र में घूमते हुए ,वो हर कहीं है ,
ऋतुएँ बदल -बदल जाती हैं ,वो नज़र नहीं आता
कुछ तो है ,जो हमें नजर नहीं आता है।
हममें तुममें व्यापक ,सब में संस्थित कौन है वो ,
उसको मैं आज तक जान नहीं पाया ,
गाँधी ,बुद्ध ,ईसा सब उसी के कारनामे हैं।
आकृति उसने दी है ,समर्पण भाव से सबने ,
नाम कमाया है ,उसी का ध्यान लगाते हैं।
जिसको सब माथे से लगाते ,तिलक ,रोरी ,चंदन ,
वही राम ,कृष्ण के रूप में नज़र आता है ,
आकृति धारण करता है .
स्वयं कहा है ,संभवामि युगे -युगे ,
मैं इस तथ्य से अनभिज्ञ नहीं हूँ कि ,
ओमस्वरूप वो ध्यान में आया।
और मुझे उद्बुद्ध किया।
तर्क से कोई उसको नहीं पाया।
कभी मर्यादा -पुरुषोत्तम ,तो कभी कन्हैया बन के आया।
मैंने उसको पाने के लिए ,कोई परिश्रम भी नहीं किया ,
फिर भी वो मेरे ध्यान में आया।
अनायास ही मैंने उसको पाया ,
भक्ति -भाव से बस ,दो फूल ही रखे होंगे ,
प्रेम की बगिया में बहार बन के आया।
मैंने उसका कोई नामकरण न किया ,
ईश्वर समझ के ही उसे पूजा।
कठिन वक्त में भी ,उसने मेरा साथ नहीं छोड़ा ,
अनगिनत बार ,उसके दर्शन से वंचित भी नहीं रहा।
और उसे स्वीकारा ,
क्योंकि वह मेरे लिए साक्छात ईश्वर था।
-----------राजीव रत्नेश ---------
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