Saturday, January 25, 2025

ईश्वर

 ईश्वर 

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कोई तो है ,जो हम सब का नियमन करता है 

मै और तुम नहीं हो सकते ,पर वो तो है ,

चाँद -तारों को ,अपनी चाल में चलाता है। 

पृथ्वी को एक धुरी पर घुमाता है ,

कोई तो है ,इस सृष्टि का संस्थापक ,

वो भले हमें    नज़र नहीं आता है। 

परिवर्तन के चक्र में घूमते हुए ,वो हर कहीं है ,

ऋतुएँ बदल -बदल जाती हैं ,वो नज़र नहीं आता 

कुछ तो है ,जो हमें नजर नहीं आता है। 

हममें तुममें व्यापक ,सब में संस्थित कौन है वो ,

उसको मैं आज तक जान नहीं पाया ,

गाँधी ,बुद्ध ,ईसा सब उसी के कारनामे हैं। 

आकृति उसने दी है ,समर्पण भाव से सबने ,

नाम कमाया है ,उसी का ध्यान लगाते हैं। 

जिसको सब माथे से लगाते ,तिलक ,रोरी ,चंदन ,

वही राम ,कृष्ण के रूप में नज़र आता है ,

आकृति धारण करता है  . 

स्वयं कहा है ,संभवामि युगे -युगे ,

मैं इस तथ्य से अनभिज्ञ नहीं हूँ कि ,

ओमस्वरूप वो ध्यान में आया। 

और मुझे उद्बुद्ध किया। 

तर्क से कोई उसको नहीं पाया। 

कभी मर्यादा -पुरुषोत्तम ,तो कभी कन्हैया बन के आया। 

मैंने उसको पाने के लिए ,कोई परिश्रम भी नहीं किया ,

फिर भी वो मेरे ध्यान में आया। 

अनायास ही मैंने उसको पाया ,

भक्ति -भाव से बस ,दो फूल ही रखे होंगे ,

प्रेम की बगिया में बहार बन के आया। 

मैंने उसका कोई नामकरण न किया ,

ईश्वर समझ के ही उसे पूजा। 

कठिन वक्त में भी ,उसने मेरा साथ नहीं छोड़ा ,

अनगिनत बार ,उसके दर्शन से वंचित भी नहीं रहा। 

और उसे स्वीकारा ,

क्योंकि वह मेरे लिए साक्छात ईश्वर था। 

-----------राजीव रत्नेश ---------


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