Sunday, March 9, 2025

MOHHABAT KEE DUKAAN.

खुर्शीद की जिया थी ,या माहताब की चाँदनी ,

अच्छा लगा तेरा बारात में धपर -धपर कर के नाचना। 

वो और होंगे ,तेरे गुनाहों पे परदा डाले रखा ,

कर देंगे हम तो फाश तेरा हर राजे -परदा। 

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वो जितना करीब आते हैं ,मोह्हबत दुगुनी होती जाती है ,

और करीब आते हैं तो मुह्हबत चौगुनी हो जाती है। 

क्या बताएं ,उन्हीं की हसरत दिल  को हो गयी है ,

जितना ही दर्द होता है ,हवा उतनी ही सुहानी लगती है। 

एक झलक दिखला के ,महबूब ने हमें लूट  लिया ,

हम तो कुछ न समझे ,बस होश ही खो दिया। 

जब तक हम संभलते ,वो आकर चले भी गए ,

दीवाना हमको कर गए ,और खुद भी दीवाने हो गए। 

हमहीं से मुह्हबत की थी ,हमीं को रुस्वा कर गए ,

उसकी जात का कोई ठिकाना नहीं ,कर हमको गरम गए। 

कब होश भुला कर ,उल्टा -सीधा सुना कर अड़ जाये ,

गिरफ़्ते -मुह्हबत भी कोई चीज होती है ,आज समझ आये। 

तो गफलत में ही जिंदगी गुज़ार कैसे जाएँ हम ,

कुछ समझ आये तो मुह्हबत ही जिंदगी समझ आये। 

तम्मनाओं का दिया हमेशा जलाहै ,जलता ही रहेगा ,

होश न उनको आये ,कब तक उनको  होश में लाते रहेंगे। 

हम समझते हैं मुह्हबत है तो खुदा भी है ,

खुदा है तो हमसे फिर जुदा क्यों है  . 

पास आये तो इस्तकबाल करूँ उसका ,

एक बार बताये तो ,महबूब मेरा खफा क्यों है। 

तसवीर दिल में बसी है ,खुद आ जाये ,उसकी ज़रुरत भी है ,

आँखें हिरनी की ,गोरे गाल ,सलोनी नाक खूबसूरत भी है। 

अब न दूर जाओ ,हमारे करीब भी तो आओ ,

'रतन 'की मुह्हबत तो बस तेरे नाम से है। 

           राजीव रत्नेश 

 

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