खुर्शीद की जिया थी ,या माहताब की चाँदनी ,
अच्छा लगा तेरा बारात में धपर -धपर कर के नाचना।
वो और होंगे ,तेरे गुनाहों पे परदा डाले रखा ,
कर देंगे हम तो फाश तेरा हर राजे -परदा।
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वो जितना करीब आते हैं ,मोह्हबत दुगुनी होती जाती है ,
और करीब आते हैं तो मुह्हबत चौगुनी हो जाती है।
क्या बताएं ,उन्हीं की हसरत दिल को हो गयी है ,
जितना ही दर्द होता है ,हवा उतनी ही सुहानी लगती है।
एक झलक दिखला के ,महबूब ने हमें लूट लिया ,
हम तो कुछ न समझे ,बस होश ही खो दिया।
जब तक हम संभलते ,वो आकर चले भी गए ,
दीवाना हमको कर गए ,और खुद भी दीवाने हो गए।
हमहीं से मुह्हबत की थी ,हमीं को रुस्वा कर गए ,
उसकी जात का कोई ठिकाना नहीं ,कर हमको गरम गए।
कब होश भुला कर ,उल्टा -सीधा सुना कर अड़ जाये ,
गिरफ़्ते -मुह्हबत भी कोई चीज होती है ,आज समझ आये।
तो गफलत में ही जिंदगी गुज़ार कैसे जाएँ हम ,
कुछ समझ आये तो मुह्हबत ही जिंदगी समझ आये।
तम्मनाओं का दिया हमेशा जलाहै ,जलता ही रहेगा ,
होश न उनको आये ,कब तक उनको होश में लाते रहेंगे।
हम समझते हैं मुह्हबत है तो खुदा भी है ,
खुदा है तो हमसे फिर जुदा क्यों है .
पास आये तो इस्तकबाल करूँ उसका ,
एक बार बताये तो ,महबूब मेरा खफा क्यों है।
तसवीर दिल में बसी है ,खुद आ जाये ,उसकी ज़रुरत भी है ,
आँखें हिरनी की ,गोरे गाल ,सलोनी नाक खूबसूरत भी है।
अब न दूर जाओ ,हमारे करीब भी तो आओ ,
'रतन 'की मुह्हबत तो बस तेरे नाम से है।
राजीव रत्नेश
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