ज़िंदगी एक से बढ़ कर एक पहलवानों से पाला पड़ा ,
सबके मुकाबिल ,तेरा बाप ,बहुत बड़ा नंगा मिला।
मैं चला डाल -डाल ,तो वो पात -पात सदा चला ,
मैंने की जोशखरोशी ,वो कोने में खिसक गया।
नजरे -खैरात से ,तो न देखा कभी तुझको मैंने ,
सुर्खी मली तुमने गालों पे ,रंग उसका निखर गया।
राहों में तूफ़ान आये ,जलजला आया और गया ,
ज़िंदगी में एक से बढ़ कर पहलवानों से पाला पड़ा।
समंदर से सीप ,बिछ गए किनारों पर ,हर तरफ ,
न मिली तेरे पावं की छाप किनारों पर।
कितनी रंगरेलियाँ की थी तुमने यार के साथ ,
मेरे साथ तो रहे तुम ,बस एक पखवाड़े तक।
मैं सदा तेरे आरिज़े -गुल से बावस्ता रहा ऐ हसीं ,
ज़िंदगी में एक से बढ़ कर पहलवानों से पाला पड़ा।
कतरा -कतरा गरम लोहू ,टपका तेरी आँखों से ,
हो गयी नज़रों से ओझल ,तू बातों ही बातों में।
चमक न जुगनू में ,पर आफ़ताब वो बन गया ,
ऐसी क्या झीनी -झीनी सी बात थी ,तेरे लिबासों में।
तुम थे साहिल पे ,और समंदर फिर भी प्यासा रहा ,
ज़िंदगी में एक से बढ़ कर एक ,पहलवानों से पाला पड़ा।
मुझसे मालिश करवा ले तू ,दिल के आस -पास हर कहीं ,
खूने -दिल ,लख्ते -जिगर का तूने किया व्यापर।
न मदावा तेरे दर्द का ,नहीं दवा हकीमों के पास ,
तेवर सदा क्यों रहते तेरे ,जबीनों के साथ।
अजनबी एक गैर ,लोगों से गाल बजाता फिरा ,
ज़िंदगी में एक से बढ़ कर एक पहलवानों से पाला पड़ा।
तीज भी मनाये ,करवा -चौथ भी ,ले ली साड़ी दो -चार ,
इतने में बन जाती कई ,तेरी पहली वाली सलवार।
अब तो सूट के मौसम का भी महीना आया ,
करवाती है सबसे ,अजीज अब भी तुझे मनुहार।
तेरे साथ हमने खिजां में भी खूब मज़ा लिया ,
ज़िंदगी में एक से बढ़ कर एक पहलवानों से पाला पड़ा।
कुछ लाल -पीली हो जाये तू होली के त्योहार में ,
हर कहीं चौका लगा दे तू ,भरे -पूरे बाजार में।
अधजली होलिका से ,आग लगा दे अनार में ,
लोग ढूंढते फिरेंगे तुझे वक्ते -सदाबहार में।
देखो मेरे हाथों से फिर तुमने पैमाना लिया ,
ज़िंदगी में एक से बढ़ कर एक पहलवानों से पाला पड़ा।
आज का चाँद भी बड़ा चमकीला है ,
रात के पैरहन में टंका सितारा है।
हम तुझे तेरे ही खेल में ,तुझे मात दे जाते ,
जानते हैं ,मुक्कदर का गर्दिश में तारा है।
नामुराद तेरा भाई ,दे फिर झाँसा गया
ज़िंदगी में एक से बढ़ कर एक पहलवानों से पाला पड़ा।
बजते हैं नगाड़े ,ढ़ोलक पे पड़ती है थाप ,
गवनई में शामिल होते बूढ़े और बच्चों के बाप।
भांग का दौर चलता ,हमारे शिवाले पर ,
हम भी मिल -बैठ जाते ,उस्तादों के साथ।
फिर हाथों को मिल कन्नौजी नगाड़ा गया ,
ज़िंदगी में एक से बढ़ कर एक पहलवानों से पाला पड़ा।
जहाँ भी गए गाते -बजाते ,पेशे -खिदमत हुआ गुझिया का थाल ,
साथ में उड़े गुलाल ,रंगीन हुए गोरी के गाल।
कुछ हमने खाया ,ढ़ेर सा औरों को खिलाया ,
हर नृत्य पर थिरके लोग ,पड़े मृदंग पर थाप।
हमें पैंतरा बदल कर ,अपना दाँव आज़माना पड़ा ,
ज़िंदगी में एक से बढ़ कर एक पहलवानों से पाला पड़ा।
कान्हा आया ,गुलजार हुई डगर की गली -गली ,
राधा के बोझीले नयन ,खिल गयी कली -कली।
पगडंडियों पर कुचले कनेर के फूल ,
भौरों ने सखियों के कानों में बातें कहीं भली -भली।
'रतन 'को सब ओर से सुना और सुनाया गया ,
ज़िंदगी में एक से बढ़ कर एक पहलवानों से पाला पड़ा।
राजीव रत्नेश
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