Friday, August 22, 2025

कल " ताज" मेरी बज्म में आएगी( कविता)

कल" ताज" मेरी बज्म में आएगी/
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उड़ती सी खबर है, कल ताज मेरी बज्म में आएगी/
एक बार फिर से प्यार की क्यारी मेरी पनप जाएगी/
अपनी झलक दिखाने आएगी या गुफ्तगूँ भी करेगी?
अभी कुछ ठीक नहीं, जाते-जाते क्या कर जाएगी?

इतना तो मुझे पता है कि बिना उसके मेरा वजूद नहीं,
वो मेरी है, उसकी मुहब्बत मेरे लिए किस्स- ए- फजूल नहीं,
अभी तक मेरी चाहत, उसकी रग-रग में है जिन्दा,
उसके प्यार की खुशबू, अभी तक सांसे लेती मेरी जिंदगी में है/

जाते-जाते भी मुझे समझा गई थी, इंतजार अपना करने को,
पलट के आएगी फिर मुझ तक मेरी हाँ जानने को,
पर प्यार- ओ- वफा का लहू, मेरे दिलो- जिगर में न था,
कैसे अपना ही समझता उसको, सारा शहर उसपे करता था दावा/

अपना समझ के भी उससे रिश्ता तोड़ा था मैंने,
पर दिल से निकाल न पाया था, उसकी यादों को मैंने,
मेरी गजलों की मुकम्मल तस्वीर है वो,
पर हाले-दिल कभी न समझा, न आगे बढ़ के गले लगाया मैंने/

गुल्शन में भ्रमते भ्रमरों ने भी, वफा के नगमें गुनगुनाए थे,
मेरी राहों में वो खार- बबूल बन के ही आए थे,
जब तक गुँचे को परख न लेता, अपना कैसे कहता?
मेरी जिंदगी में किसी के प्यार का साया आज तक न आया था/

लाजवंती थी उस वक्त ताज भी, उठता यौवन था उसका,
सिरे से हुस्ने- मुजस्सिम थी, आँखें थीं लाल टहोका,
किसी को न कुछ समझा था, न ही दिल में बसाया था,
सोचा था, कहना होगा तो खुद ही आएगी लेकर प्यार का तोहफा/

पर वो मुझसे भी ज्यादा खुद्दार मिली मुझे रहे- मंजिल में,
जिसका न कभी ऐतबार किया मैंने, न समझा अपना,
पर जिंदगी के हर मोड़ पर, वो मुझे इंतजार करती मिली,
भले हमसफर बन कर, शरीके- हयात उसे मैं कर न सका/

बादल भी गरजे, तूफान भी आए मेरी- उसकी राहों में,
हम तैयार न थे, चाहत थी उसकी मेरी ही हो जाने की,
मैंने अपने दिल को पत्थर सा कर लिया था,
प्यार की पहली चोट जो खाई मुहब्बत की राहों में/

पर अफवाह को भी सच जान इंतजार उसका करता हूँ,
उसको अपना समझने को दिल मना अब भी करता है,
जान कर किरदार को मेरे फसाने की वो सिमट गई थी,
पर जाते-जाते भी लौट कर आने का वादा कर गई थी/

           राजीव रत्नेश
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