रतन को मुह्हबत अपने चाँद से।
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तेरे लिए एक ंनजरेउलफ़त ,एक एक मजहरे -उल्फ़त ही सही ,
आना हो तो आजाओ ,अब तो पास , आ जाओ ,तुम्म्हारे बिना ठिकाना भी नहीं।
आना हो तो आ जाओ ,तुम्हारे ,बिना कोई कोई पुरसाहाल भी नहीं ,
अब तो आ जाओ ,तुम्हारे बिना ,कोई पूछने वाला ,कोइ रहा भी नहीँ अपना निशाना ही नहीं।
गरीबों का बशर ,,बज़्मेशाही में किसी मतलब का हुआ ही नहीं ,कहाँ लगती है तबीयत ही
उस पर उल्फत तेरी गुल ,खिलाये जाती है ,क्या मानें तेरी ,अपना का कोई इरादा भी नहीं।
आ जा पास तेरी खेलने वालों कि ऐसी तैसी ,उनकी मां की भी ऐसी की तैसी
एक बार फिर से आ जाओ ,पास मेरे तुम ,तेरी मम्मी का है ,कोई इशारा भी नहीं।
तेरी अजमते -दिल की दुनिया से भी ऊपर जाकर ,हो गया कोई मेरा हमसफ़र ही सही ,
अब तो मेरे पास आकर फिर से मुझे बहलाओ ,होंगे मेरे होश फाख्ता भी नहीं।
उल्फत तेरी ऊपर से खिलखिलाये जाती है ,बज़्म में उठा है हैकोइ जलजला भी नहीं ,क्या माने तेरे हालेदिल
का,हाल बेहाल है तेरे अब्बा काभी न कोई खेल पायेगा, कोई तुझसे कोई जलजला भी नहीं।
तेरी हालेदिल तुझको हि दिखाऊँ दिल ही,तेरा दिल ही जला है तेरी मोह्हबत में ,अपना ठिकाना भी नहीं
एक बार आके चेहरा ही दिखा ,तू गैर की कैसे हो गई ,चला तेरा निशाना भीनहीं।
आ आ के ,बार -बार देख ले तेरी मोह्हबत की निशानी
उस पर तेरी उल्फत गुल खिलाये जाती हैः करामाती है तू, तेरी है जवानी है ,तेरी निशानी भी .
आ जाओ पास तेरी अज्मत से कौन खेल सकता है किसकी है हिम्मत ,तुमनेही कहा था ,देखजिसमे न था ,
न मुझेहोश होष था ,अपने दीवानेपन में होश न था ,अपनी दीवानगी का भी।
उस पर तू खामोश है अब तंतानति हैः सबपे किसी का तुझे होश नहीं आ जा ,तुझे होश दिलाता आज का भी तुझे होश नहोमुझको तू ,अगर होश में लाती है मझे ,याद नहीं अपनी दीवानेपन का मुझे भी।
उस पर तेरी मुहब्बत याद दिलाये जाती है ,मुझे यकीन नहीं अपनी मोह्हबत का अभी ,
उस पर तुर्रा ये है ,कि वो मानते ही नहींहीं हमपे भी भारी है भारी मुझपे अभी तक ,मुह्हबत तेरी
उसपे उल्फत तेरी यादये दिलाये जाती है हक़ में अच्छी है वे,ये बात बताती है मुझे भी ,
उस पर तेरी उल्फत गुल खिलाये जाती है क्या करें ,लगता नहीं है ,मेरा दिल भी अभी ,
आ जाओ याद तुझे हम भी अभी ,भी करते हैं ,जाओ दिल के पास ,अभी अभी ,तुमको भी याद मेरी नहीं।
तेरी उल्फत तुझे याद दिलाये जाती है ,क्या करें तुम्हें याद दिल से भी कर के अभी भी
,,भी भी, ये रात मेरी भी रात नहीं नहीं,आ जाओ तुम्हार्रे सिवा मेरिये रात भी नहीं ,रात तुम्हारी भी
तुम मुझको छोड़ दो मेरे ही हॉल पर तुमको न मै ,याद दिलाऊंगा कभी ,आ के सुध लूँगा तुम्हारी भी ,
आ जाओ पास मेरे तेरी अस्मत से कोई भी न खेलेगा कोई कभी भी ,तुम्हें मेरी भी फिकर भी नहीं।
आ जाओ पास मेरी किश्मत पे ,छोड़ दो मुझे ,सलामत रहे मैखाना तेरा ,मैं आऊगा न तुम्हारे,न पास भी कभी ,
आ जाओ मेरे दिल के पास अभी भी ,रुख्सते-खाना रहे यार तेरा मुझे कोई तमीज भी नहीं।
तेरी निशानी तेरी मुद्रिका मेरे पास है ही उससे है अगर जस्बात तेरे ,घायल होते भी नहीं ,जिगर भी नहीं।
आ जाओ किसकी है मजाल कि हाथ लगा के देखे तुझे ,उतार अपनी कमीज भी नहीं ,
सकता सकता अपनी चड्ढी भी नहीं ,इसके अलावा उसके पास कोई चारा भी नहीं।
आके पास देख ले ,तेरे साथ न खेलेगा कोई दिलगिरी से तेरे ,आ जा कि सूरजचढता भी नहीं,
गरीबों का शहर हिकमते -शाही ,कोई घर नहीं जो तेरी याद न दिलाये , साथ कोई यारा भी नहीं।
आ जा मेर्री जान तेरे शहर में नहीं कोई दूसरा जो आ सके तेरे पास ,मेरा अब कोई इरादा भी नहीं ,
रतन की भी यही मर्जी ,तेरे साथ जाने का इरादा भी नही ,अपना वक्त कोई पासवां भी नहीं।
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राजीव रत्नेश
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