Saturday, December 13, 2025

फिर मिलने की दुआ करना ( गजल)

फिर मिलने की दुआ करना ( गजल)
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दिल में दर्द दिया है, तो दरमां भी करना/
मेरी अधूरी हसरतों को, मेहमां भी करना/

कसूर क्या हुआ, इतने सख्त जां कैसे हुए,
हमको आता है, हक दुश्मनी का भी अदा करना/

चौराहे पे खड़े हैं लोग, हाथों में सलीब उठाए,
हमको आता है, प्यार में जां  कुर्बां भी करना/

तलिख्यों का मौसम तो गुजर भी गया अब तो,
आता है हमको प्यार के शजर का हरा भी रखना

तुम कुछ भी समझो, हम बेपर की ही उड़ाते हैं,
हम जानते हैं अशआरों में समंदर को सहरा भी लिखना/

कहानियों में मोड़ तो यकीनन आते ही होंगे,
हम जानते हैं प्यार के संगीत से बहरा भी करना/

तेरे वालिद को भी अता किए ढ़ेरों गुलाब मैंने,
पर आया नहीं, अपनी गजल का कद्रदां भी करना/

प्यार के सफर में धूप तो बहुत कड़ी होती होगी,
मुझे सुकूं देना, मेरे सर पे आँचल का सायबां भी करना/

छूट गए मेरे सारे संगी साथी, बला के तूफान में,
तुम तो मुझसे प्यार का सिलसिला भी रखना/

प्यार की राह में जाने कहाँ बिछड़ गए तुम,
" रतन" से फिर आ मिलने की दुआ भी करना//

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तर्के- ताल्लुक ( कविता)

तर्के- ताल्लुक ( कविता)
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बिना सोचे-समझे तुमने तर्के- ताल्लुक किया,
आँधियों को इश्क की जानिब मोड़ दिया,
कितना खतरनाक तुम्हारा इरादा हो गया,
मुझे ही नेस्तनाबूँद करने का तुमने सोच लिया/

तुम्हारे प्यार का इशारा, सबके सामने खुला था,
अकेले में तुम्हारे इश्क का प्रपात सूख जाता जाना था,
हिम्मत थीं तो आगे बढ़ आती इजहारे- इल्तफात में,
ऐसे तो तेरी-मेरी मुलाकात का सूरज डूब जाता था/

मैं चाहता था तुमको, बाहों की वरमाला पहनाना,
अपने सीने से लगा के, तुम्हें चाहतों में उलझाना,
सितारे गर्दिश में जरूर थे, मगर इतने भी न थे,
कि सिरे से ही तुम्हारा प्यार की राहों से हट जाना/

मेरी कुछ मजबूरियाँ थीं, तुम्हारे साथ ऐसा न था,
पहले तो तुम्हारे प्यार में कोई बड़ा तमाशा न था,
जाने- गुलबदन तेरा मेरा फसाना ये किस मोड़ पे आया,
मैं तुमसे दूर- दूर रहूँ, पहले तो ये तुम्हारा इरादा न थ/

जाने किस बात का मुझसे बदला निभा रही हो,
जाते-जाते भी मुझसे नजरें फिरा रही हो,
गफलत में भी मुझसे ऐसा करते नहीं बनता,
तुम जान बूझ कर मेरी तरफ से नजरें घुमा रही हो/

मैं भी तुम्हें भूल जाऊँगा, चाहे तो भुलाने की कसम ले लो,
न रोकूँगा कभी तुम्हें राहों में, अपनी कसम ले लो,
इतना खुदगर्ज नहीं मैं कि तुम्हें भुला भी न सकूँ,
लौट केन आऊँगा प्यार की राहों में कसम ले लो/

मुहब्बत की मारी तुम थी, चलो सस्ते में छूट गई,
सू- ए- मजिल की राह के पहले मोड़ से मुड़ गई,
पहले से जानता था, इश्क की ताब सहने की आदत नहीं,
तेरी बेवफाई की एक कहानी फलसफे से जुड़ गई/

जमाना तो मुद्दई रहा है हमेशा से मुहब्बत का,
यह बात तुमने देर से जानी और खुद समझ गई,
हम तुम नदी के किनारों की तरह मिल नहीं सकते,
सोच समझ कर ही तुम बीच भँवर फँस गई/

किताबे- मुहब्बत का सूखा फूल समझ फेंक दिया,
अपने से दूर तुम्हें दूसरे शहर खुद ही भेज दिया,
दिल न भरमा सको अब किसी हाल तुम मेरा,
यही सोच तुमसे मिलना जुलना भी खत्म कर दिया/

बेहतरीन कली थी तू मेरे पास गुलाब की,
परवाह न की कभी मैंने सूरज के आँच की,
जब तेरी मर्जी होती थी, तू मिलने चली आती थी,
माला जपती थी मेरे नाम से, अपने श्वासोच्छवास की/

तुम मजबूर हो गई थी तो मैं तो पहले से मजबूर था,
मगरूर थीं तुम्हीं मुहब्बत में, मैं कोसों तुमसे दूर था,
जाने क्या सोच तुमने झूले की पेंग मुझ तक बढ़ाई थी,
दिल मेरा तो पहले से ही मानिन्द तायरे- मजरूह था/

खड़ी थीं बालियाँ जौ की खेतों में, दाने फूट रहे थे,
हमारे तुम्हारे बारे में लोग जाने क्या- क्या कह रहे थे,
खेतों के बीच आकर तुम मिला करती थी मुझसे,
" रतन" से आके लोग मुहब्बत के अफसाने सुन रहे थे//

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उनको इंतजार का मांग में उनकी सिंदूर मैं भरूँ,
मुझे ये इंतजार सर तो पहले वो खुद झुकायें//

                राजीव" रत्नेश"
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Friday, December 12, 2025

हम तुम मिलेंगे क्या कभी( शेर)

हम तुम मिलेंगे क्या कभी?( शेर)
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रौशन है चाँद, झिलमिलाते सितारों की चादर ओढ़कर,
हम तुम भी मिलेंगे क्या कभी, जमाने की चाहत छोड़ कर/
किस्स- ए- कैशो- लैला, शीरी-फरहाद अधूरे ही रह गए,
तुम बताओ दो दूनी चार छोड़ कर, मिलेंगे क्या दो दो चार जोड़ कर//

              राजीव" रत्नेश"
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Friday, December 5, 2025

तेरी बात तुझसे ( कविता)

तेरी बात तुझसे
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ऐ मुहब्बत तू मेरी जानी-पहचानी है,
इक तिरी तस्वीर ही मेरे पास तेरी निशानी है,
कभी चमकती है, कभी गोल चक्कर लगाती है,
नथ तेरी सितारों की तरह झिलमिमाती है/

दिल के सहरा पे हुई थी इनायते- सावन कभी,
ऐ जाने- बहारां आई थीं खुद तू मेरे पास कभी,
दिलजलों की भी नजर थी तिरे हुस्न पर,
रजामंदी तेरी सुनने को तरसते थे मेरे कान कभी/

जी चाहता है, रोजो- रोज तुझसे बातें होती रहें,
अंगड़ाइयाँ तिरी रहें सलामत, मुझसे मुलाकातें होती रहें,
झीना काला दुपट्टा तेरे बदन पे यूँही फबता रहे,
गोरी कलाइयों से कंगन की आवाजें आती रहें/

बदले मौसम की सुहानी रुत तुझे मुबारक हो,
मिरे दिल पे रोज तिरी दस्तके- इबादत हो,
दूर मुझसे जाने की तू सोच न पाए कभी,
अगर होनी है तो सिर्फ तिरे लिए ही मेरी शहादत हो/

तिरे चेहरे की मुस्कराहट पाने को दिल तरसता है,
तिरी आँखों की बरसती शोखी को दिल तरसता है,
पाजेब तिरी छनकती है, हलचल सी दिल में होती है,
तु भी समझ जा, तिरा प्यार पाने को दिल तड़पता है/

नजर झुका के ही तू जाने क्यूँ मुझसे बात करती है,
बातों ही बातों में तू प्यार का इजहार करती है,
कितनी भोली और मासूम, बड़ी कमसिन है तू,
सुब्ह सूर्यरश्मि तेरे माथे पे छितरा, तेरा इस्तकबाल करती है/

अब कब तिरा दीदार मयस्सर होगा, बेताब नजर को,
कब मिरे साथ का अहसासे- तसब्बुर होगा तुझको,
मुहब्बत की अजमत की रानाइयों का असर होगा तुझको,
तेरी इक भोली चितवन के बदले, दिलो- जां निसार होगा तुझको/

आलम हो खुशगवार, अगर तू मिरी महफिल में आए,
चरागा रौशन हों फिर से, जो तू महफिल में आए,
फिर जाम से जाम टकराएँ, जो तू महफिल में आए,
सबकी निगाहें उठ जाएँ तेरी तरफ, जो तू महफिल में आए/

तेरी तरफ निगाहें हों और लबों पे हो खामोशी,
काश! इसी तरह नजर आए तेरी धड़कनों की सरगोशी,
तुझे उठा कर बाहों में भर लूँ, देख तेरी मदहोशी,
वो दिन न दिखाए मुकद्दर तुझे, देखे तू मेरी सरफरोशी/

जिस दिल से दूर तिरा तसव्वुर होगा,
खत्म हो जाएगा हुनर इक मुसव्विर का,
हालात की बदगुमानी तुझे न वो दिन दिखाए,
पलट आए सय्याद, तुझे कफस में फँसाए/

हालाते- नाजुक से अब कौन निजात दिलाए,
करूँ जतन किस तरह तू मेरे पास आए,
मिलने की तमन्ना में और दूर हो गए हैं,
दस्तूरे-इश्क है, जो ढल अश्क तेरे गाल पे आए/

तिरी मिजाजपुर्सी में दिल्ली से दौलताबाद जाएँगे,
लगेगी ठोकर तो अपने शहर इलाहाबाद आएँगे,
तू साथ देगी तो साथ जिएँगे, साथ मरेंगे,
सुकूने- दिल के लिए तेरे साथ इबादतगाह जाएँगे//

             राजीव" रत्नेश"
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Tuesday, December 2, 2025

काश! तूने प्यार किया होता( कविता)

              काश! तूने प्यार किया होता  ( कविता)
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काश तूने किसी से प्यार किया होता,
मुझे छोड़ के जाने का फिर फैसला किया होता/

चली जाती तो चली जाती, छोड़ अकेला मुझे,
मैंने तेरा साथ निभाने का न वायदा किया होता/

कलियाँ चटकती हैं बहारों में, फूल खिल- खिल जाते हैं,
जाने से पहले काश! गुल्शन का नजारा किया होता/

जुल्मी जमाना हो तो क्या मेरा भी भरोसा न था तुझे,
महफिल छोड़ जाने के पहले मुझे इशारा तो किया होता/

जवाब में तेरे हाथ का पत्थर आता, जो तुझे रोका होता,
जाने से पहले तो कम से कम न तमाशा किया होता/

भँवरे हैं बेसुध, उनको रंगत नहीं मिलती खिजां में,
अखरता हमें भी, कुदरत ने जो ये करिश्मा किया होता/

हम तुम साथ साथ थे, पहले तूने हाथ न छुड़ाया होता,
कश्ती है बीच भँवर में, काश! तूने न किनारा किया होता/

मुहब्बत का तगादा भी तो तुझसे, करते न बना मुझसे,
पहले काश! अपनी नजरों का तुमने मुझे निशाना किया होता/

हम देर से समझे, अपना मतलब थोड़ा पहले बताया होता,
हमको गैर समझा था तो, दिल में न तुमने बसाया होता/

नजरों का धोखा ही होता है मृगतृष्णा का सरोवर,
काश! किसी अंजान पथिक को तूने रास्ता बताया होता/

गर्म आँसू टपके मेरी आँखो से सर्द कोहरे में भी,
राह में रोक काश! तूने आँचल का सायबां किया होता/

तेरे जाने से पहले तेरा रास्ता हम रोक देते" रतन"
गर जो दिल ने अपना कुछ हौसला किया होता//

            राजीव" रत्नेश"
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Sunday, November 30, 2025

क्यूँ तू मुझसे निस्बत रखती है( कविता)

क्यूँ तू मुझसे निस्बत रखती है( कविता)
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क्या तू मुझसे झूठी मुहब्बत करती है,
या ख्वामखाह मेरी सोहबत चाहती है,
नहीं जानता बारीकियाँ इश्क की,
न जाने क्यूँ तू मुझसे निस्बत रखती है/

मुहब्बत जोर मारेगी, तू खिचीं आएगी,
मजलिस में तेरे रुख्सारों की सुर्खी सताएगी,
अंजान इतनी न बन, यदि मुकद्दस कहानी तेरी,
नजरों में तेरे सुर्ख डोरे की लाली शरमाएगी,
कुछ तो बात है, जो मुझसे मतलब रखती है,
क्या तू मुझसे झूठी मुहब्बत करती है/

खिड़की से सुब्हे- रौशन की रश्मि तुझे जगाती है,
इक अँगड़ाई के साथ बदल करवट तू फिर सो जाती है,
देवी- जागरण से बदन क्या तेरा टूट रहा होता है,
या फिर खुद तू मधुर सपनों में खो जाती है,
कैसे कहूँ तू मस्त बहार मेरी खिदमत करती है,
क्या तू मुझसे झूठी मुहब्बत करती है/

नौजवान दिलों में धड़कन बन के रहती हो,
कभी मेरी नजरों में नजरबंद हो के रहती हो,
जाने क्या सूझी तुझे इस बाली उमर में,
दिल में मेरे सजा-ए- उम्रकैद गुजारना चाहती हो,
तू सिर्फ अपना इजाफा- ए- अज्मत चाहती है,
यही बात है क्या, जो तू मुझसे निस्बत रखती है/

दिलजलों की बातों पे ध्यान दिया न करो,
लुटते हों अरमान, तुम ख्याल किया न करो,
अभी तो तुझे हमने भी जाना- परखा है,
इक ही नजर में ढेरों सवाल किया न करो,
खुद नहीं जानती और मुझे नसीहत करती है,
या ख्वामखाह मेरी सोहबत चाहती है/

जमाने से टक्कर इक दिन तेरी-मेरी होगी ही,
इसके पहले जमाना दीवार बने, हो जा मेरी ही,
दिल से तुझे सदा देता, हसरते- दिल पूरी कर दे,
तुम हुनरमंद हो, दुनिया तो कमबख्त है ही,
पेश तू मुझे अपना रहमो-करम करती है,
न जाने क्यूँ तू मुझसे निस्बत रखती है/

इक बार बढ़ गए कदम, हटना गँवारा न हुआ,
भले हट गए वो, हटने का मेरा इरादा न हुआ,
किसी ने समझी ही नहीं इश्क की अजमत वरना,
हम भी क्या करते, कोई सहारा अपना न हुआ,
तू भी कुछ ऐसी करना हिकमत चाहती है,
क्या तू मुझसे झूठी मुहब्बत करती है/

मेरी तरफ से हरकत ऐसी मुझसे न बन पड़ेगी,
भले इक बार जमाने से, मुझसे ठन पड़ेगी,
हम  मुब्तिला- ए- इश्क होकर, तुझी से अमान माँगेंगे,
हर साल की दीवाली की तरह रौशनियाँ जल उठेंगी,
क्या है तेरी अख्तियारे- किस्मत, समझती है,
न जाने क्यूँ तू मुझसे निस्बत रखती है//

              राजीव" रत्नेश"
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जिन्दगी के यूँ न मरहले आसान होंगे,
हमारे- तुम्हारे मिले बिना चमन न गुलजार होंगे,
तेरे बिना गली हमारी- तुम्हारी सुनसान होगी,
शहरों की भीड़ से भरे न बाजार होंगे//

                 राजीव" ख्नेश"
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तुझे समंदर से निकला गौहर मानेंगे----- कविता

             तुझे समंदर से निकला गौहर मानेंगे---- कविता
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तेरी औत्सुक्य पूर्ण निगाहें उठती हैं मेरी तरफ,
तेरे आकर्षण से मुग्धित देखता मैं तेरी तरफ/

कितने झंझावातों का उत्फुल्ल उफान है तेरी खदान,
ज्यादा कुछ मालूम नहीं मुझे, तू ही मेरी क्यारी की शान/

बरबस निगाही का एक न्हराव तेरा- मेरा चेहरा,
चंचल शोख अदाओं से बार बार मुझे निहारना तेरा/

हम अदाओं से घायल हो जाते हैं बारम्बार,
तू ही मेरी चमने- जिन्दगी की है मस्त बहार/

दूर तक नजर जाती है, नहीं मिलता समंदर का ओर छोर,
कश्ती है जर्जर, टूट चुके हैं पतवार, नहीं कोई साहिल की आस/

कोई जजीरा ही मिले, दम भर को जहाँ ठहर पाऊँ,
मिले तेरा साथ तो फिर मैं इधर से उधर जाऊँ/

अनजान तू नहीं मेरे गर्दिशे- हालात से, आ जा अब देर न कर,
सँवर जाएगी दुनिया मेरी, और तू अब टालमटोल न कर/

जाड़े की थोड़ी रिमझिम भी अरमानेदिल को कुचलती है,
सितम तेरा गाहे बगाहे का, देख अब तू और हैरान न कर/

मजबूरियों में तुझे पुकारा था, अब कैसा खैर- ओ- शिकवा,
आजा रात में दीप जला, नीले अंबर के तले/

तेरी फुसफुसाहट सुन कर ही, दिलोजान से तुझे पुकारेंगे,
आजा सबेरे वाली गाड़ी से, लेने तुझे हम आएँगे/

न जान महफिल की शोखियों के बारे में ज्यादा न पूछ,
हम हो जाएँगे  मुब्तिला तेरे इश्क में, अला बला न पूछ/

किस ठहराव पे आके ठहर गई जिन्दगी मेरी आखिर,
हैरान हूँ जान कर मुहब्बत की मजबूरी तेरी/

 ऐ मेरी नादान वफा तू जो गर मेरी न हो सकेगी,
किससे रखूँ साबका, कौन है, जो मेरी हो के रहेगी/

नासमझ एक बार तो दिखा खुद जौहर अपने भी,
हम तो हरी झंडी दिखाएँगे, सिग्नल मिल जाने पर ही/

न समझ कुछ तो बस इतना ही समझ जा मेरी जानेमन!
हम मिलेंगे ख्वाबों में ही, आधी रात गुजर जाने पर ही/

अलमस्त बहार तू, अलमस्त तेरी भरपूर जवानी भी,
नजर आएगा चटकता शगूफा भरी महफिल में ही/

न और सितम ढ़ा, बुला ले मुझको अपनी हवेली पर ही,
सही समझो तो आन मिलो चौराहे वाली गली पर ही/

हम जानते हैं, न मिलने पर खतरनाक तेरा इरादा हो जाएगा,
हम खींच लाएँगे बाहर तुझे, बढ़ते हुए दावानल से भी/

इन नजरों को तो गुस्ताखियों का अपना सिला दे दे,
हम तुम मिल न पाएँ तो, कहीं पौध मुहब्बत का लगा दें/

तेरी कमजोरियों को भी अपना बदला हुआ हुनर मानेंगे,
तू समझे न समझे, तुझे हम समंदर से निकला गौहर मानेंगे//

                    राजीव" ख्नेश"
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ROM ROM SE KARUNAMAY, ADHARO PE MRIDU HAAS LIYE, VAANI SE JISKI BAHTI NIRJHARI, SAMARPIT "RATAN" K PRAAN USEY !!!