नीली झील में मैं कश्ती तैराता रहूँ/
मुझसे दूर जाकर, तुम्हारा मन लगता नहीं,
आओ लौट के, तुम्हें ही याद करता रहूँ/
मेरे दिल की बगिया की, तुम चटकती कली हो,
पास मेरे रहो, मै यूँ ही भँवरों को बुलाता रहूँ/
निशानी अपनी दे दो, चुंबन में ढाल के,
सरापा हुस्न पे तेरे, मैं गजल लिखता रहूँ/
मदहोश कर दे, आज की महफिल में आकर,
मैं जाम में तेरे और अपने, बरफ डुबोता रहूँ/
तुमने अपने से मुझको, अलहदा समझ लिया था,
जब कि तेरी याद में ही, सफीना मैं बढ़ाता रहा/.
तेरी नजरों की हिमाकत, बढ गई थी ज्यादा,
तेरी बेवफाई के गम को, जाम से झुठलाता रहा/
तेरी दुनिया, मेरी दुनिया से अलग तो न थी,
जाम भी मिला हाथों से, पर साकी मेरा शरमाता रहा/
ताजा है जख्म अभी, चारागर ने मरहम-पट्टी की,
तू मुझसे मिलने से यूँही, हमीं से कतराता रहा/
मान- मनौवल हमने न की, न ही इरादा था मेरा,
तुझे खुद बढ़ना पड़ा आगे, मैं तुझे बस सदा देता रहा/
अगर महफिल में तुम यूँ ही, आगे-पीछे फिरती रहो,
मैं तुम्हें देख-देख कर ही, अपना दिल बहलाता रहूँ/
मेरी दुनिया में इक बार, दखल दे के तो देखो,
मैं तुझी से निस्बत रखूँ, तेरा दी दिल सँभालता रहूँ/
" रतन" को गरज गोया इतनी, तुझे ही चाहा था,
बाग की बुलबुल बन, चहकती रहो, मैं गीत गुनगुनाता रहूँ/
राजीव रत्नेश
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साँसों को मेरी तेरी साँस चाहिए,
हर लमहे को तेरा साथ चाहिए/
टूटा दिल फिर से आबाद चाहिए,
हर गम को अब तेरी सौगात चाहिए/
राजीव रत्नेश
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