बैठा था बेंच पे बस तेरे ही इंतजार में/
कलियों से पूछा, फूलों से भी पूछा,
बागबाँ ने बताया, आई न तू पिछले सप्ताह से//
मैं क्या करता, दिल को आस तेरी थी,
आना न आना तो बस मर्जी तेरी थी,
आती थी तो, टामी तेरे साथ होता था,
कहीं नजर न आया, उसे भी तेरी बीमारी थी/
मुझे देख दुम हिलाता था, तलवे चाटता था प्यार से/
तूने उसे लगता बाँध रखा था, मौसमे- बहार में//
लगता है तू अब तक अंजुमने- नाज में है,
समझता हूँ, अब दिलकशी न मेरी आवाज में है,
नहीं कोई धुन प्यार की, दिल के साज में है,
तू मेरी शायरी ही नहीं, जब तक न मेरे साथ में है,
फूलों में खुशबू न थी, जो होती थी हमेशा सदाबहार में/
गया था सैरे- गुल्शन को, बस तेरे फिराक में//
अजनबी राहों का महज अब एक राही हूँ,
झोली मेरी खाली है प्यार का नहीं शिकारी हूँ,
मुलाकात की सूरत भी तू ही निकालेगी,
समझती है क्या, तेरे बाप की मैं भागीदारी हूँ,
तेरी ड्योढ़ी पर जाने से रहा, रखा नहीं कुछ इकरार में/
गया था सैरे- गुल्शन को, बस तेरे फिराक में//
तर्के- ताल्लुकात किया था तुमने ही,
अर्जे- इल्तजा को ठुकराया था तुमने ही,
तुम्हारी माँग में सिन्दूर है, मेरे अरमान का,
साथ निभाने का न्यौता दिया था तुमने ही,
क्यूँ उतारू हो तोड़ने का नहीं रहा वादा अख्तियार में/
गया था सैरे- गुल्शन को, बस तेरे फिराक में//
जब तक चाहो, डोलो बाग में मर्जी तुम्हारी,
रहेगी बागबाँ की नजर तुम पे भारी,
अच्छी तरह पहचानता वो यारी हमारी,
तुम जीते हम हारे प्यार की बाजी,
खेल इक तुमने खेला था, दिले- बेकरार से/
गया था सैरे- गुल्शन को बस तेरे फिराक में//
क्या तुमसे रिश्ता तोडूँ, किस तरह निभाऊँ,
छोड़ दूँ तुम्हें तुम्हारे हाल पर, कहीं दूर जाऊँ,
जहाँ तेरी याद न सताए, तू ही बता,
तेरी दोस्ती में दम नहीं, मैं किधर जाऊँ?
तू न मिली तो गया तेरी सहेली के घर तेरी तलाश में/
गया था सैरे- गुल्शन को, बस तेरे फिराक में//
एक बेखौफ जिन्दगी का आदी हूँ,
नहीं जानता सफर में, किसका साथी हूँ?
मैं तुझे भुला न दूँ तो और क्या करूँ?
तेरे साथ लिए सात फेरों का साक्षी हूँ,
मिस्ले- नकहते- गुल थी, क्या मिलेगा दिल से तुझे निकाल के/
गया था सैरे- गुल्शन को, बस तेरे फिराक में .//
जिन्दगी में न चाहा किसी से कुछ,
बाप से तेरे न चाहा, सिवा तेरे हाथ के कुछ,
घोड़ा सरपर दौड़ा था, तिरी हवेली तक,
मेरी राह में थी, तिरी हम कदम सहेली तक,
मेरे दिल पे हाथ रख दर्द बाँट ले जो, मैं हूँ दूसरी के एहसास में/
गया था सैरे- गुल्शन को" रतन", बस तेरे फिराक में//
राजीव रत्नेश
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