Monday, July 14, 2025

मुहब्बत बेरुखी से शरारत में( कविता)

मुहब्बत बेरुखी से कहीं शरारत में न बदल जाए/
तेरे दिल की उल्फत कहीं हिकारत में न गुजर जाए//
तुझे याद न दिलाएँगे गुजरा जमाना,
मुश्किल में था फसाना अपना,
दोआबे का पनपा प्यार रास आएगा,
तेरी हर अदा में, साथ देगा जमाना अपना,
मेरी मुहब्बत नजरे-इनायत से कहीं शराफत में न ढल जाए/
तेरी मुहब्बत बेरुखी से कहीं शरारत में न बदल जाए//
कब खफा कब खुश मिजाज तुम्हारा,
घुट जाएगा ऐसे तो अरमान तुम्हारा,
नकलची बंदर की तरह हो तुम भी,
समझ खफा मुझको, बदला जहान तुम्हारा,
जिन्दगी तुम्हारी यूँही नखरो- नजाकत में न गुजर जाए/
तेरी मुहब्बत बेरुखी से कहीं शरारत में न बदल जाए//
कभी देखती हो मुझे नजरे चोर से,
अदब में रहता दिल धड़कता जोर से,
मुहब्बत को मेरी गरज समझ बैठी हो,
बादल गरज उठ्ठेंगे, मुहब्बत के शोर से,
घायल दिल की तीमारदारी में ही कहीं तेरी रात न गुजर जाए/
तेरी मुहब्बत बेरुखी से कहीं शरारत में न बदल जाए//
जाम भी न पिलाया, लबेरुख से अपने,
बदलते मौसम की मार से बोझिल आँखें,
अब कब आओगी, लब से लब चूमने? 
खुद कमी न की साख में अपने,
आ जाओ, तेरे दिल से उठता धुँआ कहीं बरसात में न बदल जाए/
तेरी मुहब्बत बेरूखी से कहीं शरारत में न बदल जाए//
मैं भी गर तेरी तरह खुद को खफा दिखाऊँ,
दिल से तेरी याद निकाल के हवा खिलाऊँ,
खुदा कसम! नाकों चने चबाओगी,
मैं भी तेरी तरह खुद को जुदा दिखाऊँ,
मुहब्बत तेरी कहीं इक यादगार में न ढल जाए/
तेरी मुहब्बत बेरुखी से कहीं शरारत में न बदल जाए//
आज तनहाँ हूँ, तो मुझे लाचार समझती हो,
अपने आगे मुझे बीमार समझती हो,
मुहब्बत में बेवफाई की तरह मुझे,
हरी मिर्च का अचार समझती हो,
लगता होगा तुझे, वफा कहीं तलबगार में न समझ आए/
तेरी मुहब्बत बेरुखी से कहीं शरारत में न बदल जाए//
मुहब्बतों से दिल जोड़ कर देखो,
राहे- वफा में अपना दिल मोड़ कर देखो,
मेरी जिन्दगी की चाहत हो तुम,
अपने राज मेरे आगे खोल कर देखो,
शोखी से मुहब्बत कहीं तर्के- ताल्लुकात में न बदल जाए/
तेरी मुहब्बत बेरुखी से कहीं शरारत में न बदल जाए//
जिन्दगी के शोख- मंच पर तेरी अदा,
हसरत के मंच पर तेरा नखरा,
होश मुझे तब आया, देखी बेरुखी,
इतना बेतुका लगता है तेरा जल्वा,
छोटे-मोटे रोल अदा कर, तू कलाकार में न ढल जाए/
तेरी मुहब्बत बेरुखी से कहीं शरारत में न बदल जाए//
जिन्दगी की बगिया की तू फूल है,
बातें करना तेरा मुझसे न फिजूल है,
अपने आप मस्त हो जाएगी, जानता हूँ,
राहों का गर्दो- गुबार, जिन्दगी की धूल है,
रंजो-गम, सारी परेशानी, नजाकत में न घुल जाए/
अंगूर के पानी से नहा ले" रतन" शोखी कहीं शरारत में न बदल जाए//
          राजीव रत्नेश
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