लब खामोश थे, राह रोके थी हया/
कुछ तो बात न थी हमारे दरमियाँ,
किस कदर उठा लिया सर पे आस्माँ/
खैरमकदम कम करते न बना हमसे,
दूर होते गए वो हम देते देने रहे सदा/
पर्दगी- पर्दगी में हर कोई मारा गया,
बेशऊरी ने उसकी कर दिया सबको उरियाँ/
पहले नहीं था वो मिसाले- नकहते- जां
बन सका न कभी वो अच्छा राजदाँ/
तीरे-नजर से सबको कर गया घायल,
कभी न थे हम उसकी हरकतों पे फिदा/
बात कुछ न थी, फिर भी सबको पता,
फिगारे- चमन क्या, क्या था मर्तबा/
चिलचिलाती धूप में निकला घर से,
मुहल्ला मेरा था, साथ था बाप उसका/
ये भी नहीं कि नजर उसकी मेहरबाँ न थी,
तवील इतनी मेरी दास्ताँ, सुनाते गुजरता अर्सा/
कुछ तो बात है , जो चुप लगाए बैठा है,
खामोश होने वाली न थी उसकी जुबाँ/
मुहब्बत राहों में निशान छोड़ते बही थी,
बेनिशाँ न थी कभी मेरी अर्जे- दास्ताँ/
गफलत में हाथों से उठा लिया जाम,
कहाँ सोचा था, इसमें होता है नशा/
राजीव रत्नेश
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