मुहब्बत जिन्दगी है----
पर किस हद तक/
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माना मुहब्बत जिंदगी है,
पर मेरी जिन्दगी में,
अब तो किसी किसी मुहब्बत,
के लिए कोई वैकेन्सी नहीं है/
दिल मेरा मोहब्बत से रिक्त है,
तुम्हारे बाप ने न लाइसेंस दिया,
नहीं मेरे पास कोई परमिट है/
उसका पर्यवसान मैं,
अनुभव कर रहा हूँ,
अपने चारों ओर मैं, स्वार्थी लोगों के,
चक्रव्यूह के घेरे में हूँ/
और मुझे हर पल वो क्षतिग्रस्त कर रहे हैं/
मैं घुट रहा हूँ, इस बात से नहीं,
कि मैं जीवन समर में अकेला हूँ/
आज तक जिनके लिए,
अफसरों की गुलामी की,
अपनी शर्तों पर जीने वाले को,
एक फैक्ट्री में नौकरी करनी पड़ी,
उन्होंने मुझसे झूठी,
आत्मीयता दिखाई और मेरा सब कुछ,
मेरे जीते-जी लूट लिया गया/
इसी मुख्तसर सी तनख्वाह के पीछे,
बीबी बच्ची की मार के डर से,
सारी तनख्वाह उन्हें देकर,
किसी तरह अपनी जान बचाई/
बीबी बात-बात पर, लड़की दामाद से,
मेरे लिए पुलिस बुलाने को कहती रहती है/
मैं खुद ही पुलिस थाने चला जाता!
पर मैं कौन सा जुर्म स्वीकार करूँ?
यह तो मेरी बीबी लड़की ही,
मुझपर तोहमतों की तजवीज कर सकती हैं,
और मुझे पुलिस के हवाले कर सकते हैं/
इतनी बड़ी नौकरी इतने साल तक,
मेरे कैरेक्टर पर कोई एक धब्बा न लगा पाया,
पर मेरी सगी बीबी बिटिया ने जाने क्या सोच कर,
हमेशा मुझे डरा धमका के अपने कर्तव्यों की इतिश्री
समझ ली/
प्यार को हमेशा ही मैंने इबादत समझी,
और जिन्दगी भर उसी की परशतिस की/
और किसी तरह एक बेवफा से भिड़ गया था,
और उससे दिलो- जान से मुहब्बत कर बैठा था/
अपनी बचपन की मुहब्बत का अंजाम भुला बैठा था/
बस यही नहीं सोच पाया था कि एक दिन,
उसकी भी शादी होगी और वो मुझे न मिल पाएगी/
और जब उसकी शादी तै हो गई,
उसने मुझसे पल्ला झाड़ने को,
मुझ पर तोहमतें लगाईं,
और अपने बाप को मेरे पीछे लुहवाया,
मेरा सार्वजनिक रूप से बहिष्कार करवाया/
उसकी शादी का निमंत्रण कार्ड भी मुझे न दिया गया,
उसके वालिदैन कार्ड मेरी बीबी को,
नीचे ही नीचे देकर चले गए,
जो महज एक फारमैलिटी थी,
जबकि मैं घर में ऊपर अपने कमरे में मौजूद था/
निमंत्रण कार्ड मुझे मिला नहीं था,
तो मेरा शादी में सम्मिलित होने का कोई औचित्य
नहीं था/
मेरी बीबी ने रात में मुझे चलने को कहा,
मैंने उसे कार्ड दिखाने को कहा,
मैं देखना चाहता था कि कार्ड क्या बेनाम था,
पर वह टस से मस न हुई, मैंने जाने से साफ इंकार
कर दिया/
तो उसने कहा' अभी पूजा आती होगी, वही मुझे ले
ले जाएगी'
वह मुझको धमका रही थी और मैं पूजा की एक बार
की मार अभी तक भुला न पाया था/
मेरी रूहो- रग यहाँ तक कि अंतरात्मा भी काँप रही थी/
मेरी बीबी के अधिकतर कार्य असंदिग्ध नहीं थे
और वह कहीं भी कभी भी मेरे खिलाफ हो सकती थी/
मैं पूजा और नये बने दामाद के सम्मिलित प्रयास से,
जबरस्ती ले जाया गया, उसके बाप की मातमपुर्सी
करने के लिए शायद/
मुझे जबरदस्ती पूजा की कार में बिठलाया गया,
द्वार पूजा के पंडाल के पास मुझे बिठा दिया गया/
और मेरी बीबी सभी को लेकर अंदर चली गई,
सौगातें और उपहार देने के वास्ते/
और मुझे बाहर मैदान में अकेला छोड़ दिया गया,
आगंतुक परिस्थितियों से स्वयं ही निपटने के लिए//
राजीव " रत्नेश"
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