अपना बसा- बसाया घर
तेरे दिए दर्द से तनहाइयों में,
न तड़पूँगा मैं अब किसी तरह,
मुहब्बत तेरी याद कर अँगड़ारयों में,
न समेटूँगा बदन किसी तरह/
अपना न समझा तूने, नहीं है तुझसे,
इस बात की शिकायत मुझको,
तेरी याद की निशानियों से,
अब न बहलूँगा किसी तरह/
पुरानी बोतल पे नया लेबल लगा के,
सनम सबको पिलाना होगा,
अपना बसा- बसाया घर" रतन",
तुम्हें छोड़ के जाना होगा किसी तरह/
राजीव " रत्नेश"
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