बड़ी देर से दर पे---!!!
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बड़ी देर से दर पे आँखें लगीं थीं, हमसे गफलत हो गई/
मौसम के परिन्द थे तुम, तुमसे ही हमको उल्फत हो
गई/
आनंद के बाग में झाड़ एक अमरूद का हमने लगाया था,
सैरे- गुल्शन को चले तो उसी शजर से हमको मुहब्बत
हो गई/
किसने कहा था, महफिल से चले जाने को तुमको,
समझ न पाए कि चूक हुई हमसे, तुम्हारी ही दिल को चाहत हो गई/
बरबादी- ए- किस्मत का तमाशा देखा, शोहदों को परखा,
समझ न पाए कायनात में, किधर से कयामत हो गई/
बौर बन के कब तक पत्तों में छिपोगी, घूँघरा तो कभी उठाओगी,
तब पूछेंगे हाले- जिगर, अभी से दिल में धड़कन हो गई/
मकरंद फूलों पे डोलें, चूस सारा पराग गए,
शिकस्त मिली प्यार में, हसरत तुमसे हो गई/
महकमा था ये मुफलिसों का, हम बेजार हो गए,
बुरा हाल हुआ गुलदानों का, हमको वहशत हो गई/
चाहत न थी कोई चाँद का टुकड़ा, जीनत बने मेरी शाम का,
जिसके पैरहन में सितारे टँके थे, उसी की मुझको चाहत हो गई/
मंजिल को जाते थे रास्ते और भी, बस उसकी खूबियों से,
हम साथ- साथ उसके चले, उसी की हमसे वकालत हो गई/
कब के निकले थे घर से, मंजिल पर कैसे आखिरकार पहुँचते?
निकले थे सज धज के ही, अच्छा हुआ रास्ते मे मइय्यत हो गई/
घर बार छोड़ के जिधर चले हो, दिवालियत का रास्ता है,
अजल को सदा- ए- शिरकत, हमारी भी क्या जुर्रत हो गई है/
जिन्दगी में एक मोहब्बत ही तो है, जिसके सहारे गुजर रही है,
तुम कहते हो तो मान लेता हूँ, जहाँ में अब वैसी शोहरत नहीं है/
तुम्हारा साथ था तो जुगनू से आफताब हुआ था ये नाचीज " रतन",
अब तुम्हारे आँचल को जो साया नहीं, अब कुछ भी नहीं पास, सिर्फ सबसे अदावत हो गई//
राजीव रत्नेश
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