पास किस तरह आ पाते?---!!!
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हम-नफस हो तो यूँ ही साथ- साथ रहना,
करीब आके मिलना हमसे, हर जगह साथ रहना/
मेरी कशिश सिर्फ इतनी है, तुम्हारे सिवा किसी को
न चाहा,
मेरी जिन्दगी यही है, हर कदम साथ- साथ चलना//
बड़े गौर से सुन रहा था जमाना हमारी दास्तां,
हम को ही नींद आई शायद दास्तां सुनाते-सुनाते/
दिल- फरेब था मौसम, तेरी याद का तिलस्म,
कब तक हम तुझी से झुठलाते/
तूफान उठा समंदर में, तुझसे क्या छुपाते,
अहले- दिल पार हुए, समंदर को टाटा कहते-कहते/
न सलाम न दुआ, तेरे प्यार में ऐसा भी हुआ,
साहिल पे तुम थे, कब तक तुम्हें पुकारते/
हम न कुछ सोचेंगे, तुम्हारे सिवा किसी को,
मरेंगे भी तो, तुझको ही सदा देते-देते/
जानना भी नहीं चाहते थे हकीकत तेरी, हम नहीं
सुनना चाहते, तुम्हीं जमाने से गिला कर देते./
मातम था या शहनाई का आलम था, तुझी से
चाँद शरमाता था, तेरा ही जमाना था/
उछलती लहरों ने शोर मचाया समंदर में, हम
बगावत न करते, तो आखिर कैसे तुझे सँभालते/
देख के तुमको लगा, तुम थी मेरी शिकस्त,
आजमाने की थी न जरूरत, सदा दे के रूठ भी गए/
तुफैल इसके कि मिलते मुझसे आकर गले,
इसके सिवा ये न किया, जमाने से गिला कर देते/
मुकद्दर में न थी तेरी मुहब्बत, हम किस ठौर आजमाते,
आ भी जातीं राहों में, न तुझे गले लगा पाते/
सामने आती हो, लगती एक खूबसूरत परी हो,
खुद समझ जाओ, तुझे हम कैसे समझाते?
एक रास्ता वो भी था, पर तुम मोड़ मुड़ गए थे,
हमसे हो के खफा, बेखुद हो, जमाने से भिड़ गए थे/
हम तुमको समझाने, किस तरह आ पाते?
खुद ही दूर हुए महफिल से, कैसे तुझे आजमाते,
पत्थर तराश के हमने यकीनन खुदा बनाया,
तुमने खुद को महफिल से जुदा किया,
समंदर की मौंजो . ने भी किनारा किया/
ये कैसी फितरत थी तुम्हारी,
हम तुम्हें बचाने किस तरह आ पाते?
फिर भी तुम्हें देते रहे सदा, हर गुजरगाह से,
न आकर मिले, ढूँढ़ते रहे सदा गुलजार में,
मखमली गलीचे पे तेरा रक्स, तेरी अँगड़ाइयाँ,
सब तुझी से थे, चे मौसम की मेहरबानियाँ/
कल बहर भी खामोश था, देख कर तेरी थिरकनें
समझ न आया फलसफा तेरा, समझाने किस तरह आ पाते/
बरबाद हो गए तुम, चाहत में लिखाने को वसीयत,
माना कभी करते थे तुमसे बेइन्तहां मुहब्बत हम/
" रतन" को नहीं चाहिए तेरी मुहब्बत ऐसे ही,
भले हैं, नहीं चाहिए तेरी नसीहत वैसे भी/
हम भी खामोश थे, देख कर तेरी सिसकनें ,
सोचते थे पास किस तरह आ पाते??
राजीव रत्नेश
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