किनारे पे खड़ा हूँ---!!!
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सभी दोस्त डूब गए और मैं किनारे पे खड़ा हूँ,
जाने किस आस में जिंदगी से लड़ा हूँ/
कोई तो आए हमसफर बन के जिंदगी में,
तुम जहाँ पे छोड़ गएथे, उसी मोड़ पर खड़ा हूँ/
अब तो आ जाओ, बुढ़ापे की लाठी बन कर,
लड़ते-लड़ते थक गया, तेरे इंतजार में खड़ा हूँ/
मेरे बेटे नौकरी छोड़ो, कब तक गैरों की गुलामी करोगे,
समंदर में सरसराती हैं लहरें और मैं किनारे पे खड़ा
हूँ/
अब और न भटको, मेरे पास ही आकर रहना,
कम तनख्वाह में ही गुजर बसर की आदत डाल लेना/
हर दस्तक पर दरवाजे की तरफ आाँख उठती है,
मैं तुम्हारे इंतजार में दहलीज पे खड़ा हूँ/
बबूल गम के गुब्बारे सी हो गई है जिन्दगी,
कब तक जिन्दगी से फरियाद करूंगा?
समंदर की लहरें जोर मारती हैं तटबंधों पर,
आ जाओ अब तक किनारे पे खड़ा हूँ/
समंदर है प्यासा, कब डकार ले ले नामालूम,
वक्ते-रुख्सत तुम्हारे इंतजार में खड़ा हूँ/
जिंदगी दाँव पर लगा दिया, अब किसकी बारी है,
सो कर भी जागा हूँ, तुम्हारे इंतजार में खड़ा हूँ/
पाकेट- खर्च की परवा न करना, वसीयत लिख दूंगा
पर नौकरी के लिए बेटे परदेश न जाना/
अब तक तुम्हारे इंतजार में जिन्दा हूँ,
आ जाओ कि अब तक मँझधार में खड़ा हूँ//
राजीव रत्नेश
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आप मुद्दआ समझे, मगर क्या समझे क्या न समझे,
काश! तफसील से कुछ हमें बताया होता/
हम तौहीने- नशेमन कभी न करते अगर,
आपने हमें सच्ची कहानी बताई होती/
अपने ही हाथों मात है, हमारे नसीब में आखिर क्या है?
हम कुछ और करते, जो सिलसिला बातों का आपने
चलाया होता/
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