समंदर की मौज हो तुम, या दरिया की खानी,
आफत में है जान, ऐ बज्मेशान! दिल की रानी/
रुहो- रग से नावाकिफ नहीं हो तुम मेरी,
मुझे तो बस तेरे दीवानों से है अपनी जान बचानी//
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नाक ऊँची, आँखें गजालों की,
सरापा हुस्ने मुजस्सिम तुम हो/
हमेशा से ख्यालों में बसी हो तुम,
तुम क्या जानो, क्या चीज तुम हो?
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दिल में है कि तुमसे ये यारी कैसी है?
तमन्नाओं पे ये मेरे भारी कैसी है?
तुम अपना न समझो, ये मक्कारी कैसी है?
तुम आ जाओ पास तो दुश्वारी कैसी है?
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राजीव रत्नेश
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