Friday, November 7, 2025
सप्लाई विभाग की वितरण प्रणाली************ लेख*********** महोदय, लगता है आजकल आपके मंत्रालय की तबीयत कुछ- कुछ नासाज चल रही है/ तभी तो आपका सहयोगी आपके अंतर्गत काम करने में हिचकिचा रहे हैं/आज तक यथास्थिति बनाए रखने मेंआपकी भूमिका अत्यंत सराहनीय रही है/ जहाँ तक मुझे मालूम है कि आपको बिना बात हैरान-परेशान रहने की पुरानी आदत है और आपके विभाग की बतौर वसूली झूठी कवायद करने की बुरी आदत है/ आप लोगों से और क्या चाहते हैं, मजा तो आपको तब आता है जब कोई राम-धुन गाए- बजाए/ नेहा राठौड़ की बातें आपको फिजूल लगती हैं/ महंतों, साधू-संतों का भी सत्ताधीशों को आशिर्वाद देना और सामान्य वर्ग को दर्शनों से वंचित करना आपको बखूबी आता है/ आखिर उनकी भी तो रोजी-रोटी है/ कुंभ में भगदड़ मचे तो मचे, आग लगे तो लगे, आपका अखाड़ा तोपूरी साजो-सज्जा के साथ पूरे तामझाम से निकलना चाहिए/ पूरे देश में गरीबों के लिए फ्री का राशन है/ हर बार चुनाव से पहले वादा किया जाता है कि अगले पाँच साल और तीन चौथाई जनता यानी कि करीब 80 करोड़ को फ्री राशन दिया जाएगा/ पिछले दस वर्षों में इसमें कोई कोताही नहीं हुई है( अब तो शायद राशनकार्ड अनिवार्य कर दिया गया है)/ देने वाले देने से नहीं चूके और गरीब जनता ने पचा डाला अगले चुनाव तक के इंतजार में/ जो कुछ अच्छा होता है उसे आटे की तरह फ्री कर दिया जाता है/ अब तो जनता के स्वास्थ्य का ख्याल रखते हुए मोटे अनाज को सर्वसुलभ कर दिया गया है/ चावल की जगह गेहूँ वितरण की प्राथमिकता को सरकार की तरफ से अनिवार्य कर दिया गया है/ जिसमें राशन कम कंकर ज्यादा होता है/ अपना तो राम- राम जपना, पराया माल अपना/ जमाने का भी सदा से यही रिवाज रहा है/ लुटाने वाले लुटाते- लुटाते थक गए पर सरकारी गोदामों में कोई कमी नहीं हुई/ यह बात जरूर है कि कुछ चूहे खा गए, कुछ सड़ गया फिर उसे खाद बना दिया गया/ लोग गेहूँ बीन कर कंकड़ फेंक देते हैं/ हर नगर- महानगर में मेन गेट के पास कूड़े का अंबार लग जाता है, जो सफाई कर्मचारी उसे कूड़े के भाव बेच देते हैं/ क्या किया जा सकता है, हर कोई तो कोई न कोई साइड- बिजनेस करना चाहता है/ भ्रष्टाचार का बोलबाला किस विभाग में नहीं है/ ज्यादातर लोग पगार के अलावा कमाने में विश्वास रखते हैं और इसी में अपने को गौरवान्वित समझ लेते हैं/ ऐसे लोगों की कोई राह कोई मंजिल नहीं होती है/ खाओ-पिओ और मौज उड़ाओ,हर तरफ यही देखने को मिलता है/प्राइवेटाइजेशन की प्रक्रिया ने इसमें और भी चार चाँद लगा दिया है/ अपना कहने को कुछ नहीं, हर कुछप्राइवेट है, भई प्राइवेट है// राजीव रत्नेश
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