हसीं दास्तां समझता हूँ,
तेरी उठती आह, हर फरियाद को समझने वाला
इक दिले-नादान हूँ मैं/
गुजरने को तेरी राह से गुजर तो जाऊँ, पर निगाह
उठती है तेरी खिड़की की तरफ,
बैठी होगी तू आँखें बिछाए मेरे लिए, तेरे एक- एक
पल का इंतजार हूँ मैं//
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2--- जमघट में भी तुझे ही चाहा है
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करतबे- प्यार को देखा है, अपनी बात से
पलट जाने पर भी तुझे परखा है,
मेरी कजा की, मेरी सजा तजवीज
तुम्हीं ने सहसा की थी/
तड़पते रहे सालों तेरे लिए, हमने मुहब्बत के
अंजाम को पहचाना है,
हसीनों के जमघट में भी तुझे ही चाहा है,
हमने तेरे इंतकाम का भी स्वाद चखा है//
राजीव रत्नेश
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