मुहब्बत मेरी अभी तक साँसें ले रही है------ कविता
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मेरी पहली मुहब्बत ही इतनी खूबसूरत थी,
कि अक्स उसका दिल से आज तक न मिटा/
वो धरती का चाँद था, बरसों पहले देखा जिसे,
वो मेरे ख्वाबों के परों के लिए खुला आस्मान था/
उसके केशों में झिलमिलाती थी कहकशां,
मेरे पहले प्यार का वो पहला- पहला नशा/
कहाँ तक कहें, अंग हों जैसे साँचे में ढ़ले,
साथ- साथ पेंग बढ़ाए हमने, दिल का बढ़ा अरमां/
उसकी फोटो अपने कैमरे से मैंने खींची थी,
उसने घर में दिखाया तो बिदकी उसकी अम्मा/
वह मेरे साथ फोटो खिंचवाने की जिद करने लगी,
मेरे प्यार ने मेरी अपनी अम्मा के साथ फोटो खींची/
जाने उसके हाथों में कैसा कंपन हुआ कि
फोटो तो आई नहीं, दूर तलक था आस्मां/
यूनिवर्सिटी में मिस इंडिया के नाम से मशहूर थी,
दे रही थी हिन्दी से प्रथम वर्ष का इम्तहां/
मेरी किताब को अपनी किताब बता लड़ी मुझसे,
पहली मर्तबा उससे दोस्ती हुई थी इम्तहां के दरमियाँ/
प्रीपरेशन- लीव के दौरान किताबों की अदला-बदली में,
उसके यहाँ आने- जाने का जारी हुआ सिलसला/
उल्फत हुई, लगाव हुआ और दिल भी दिल से मिल गया,
उससे ज्यादा उसकी माँ हो गई कुछ ज्यादा मेहरबां/
वो कुर्सी पर बैठ कर मेरे पास, साथ- साथ पढ़ती थी,
और मैं चारपाई पर अधलेटा दीवार से टेक था लगाता/
शब्दों के अर्थ बताती, वो मुझ पर दोहरी हो जाती थी,
मुझे प्यार का पाठ पढ़ाती थी, समझती थी मुझको नादां/
माना वो हसीनों में हसीं मानी जाती थी,
डिपार्टमेंट में अपनी सूरत भी किसी ने कम नहीं आँका/
बोलते-पढ़ते वो मुझ पर झुक-झुक आती थी,
और होले से मेरे होठों पर रख देती थी अपनी उंगलियाँ/
उसके सलोने चेहरे को हाथों में लेकर मैंने कई दफा चूमा,
और कमरा निरापद न समझ कर उससे बाहर मिलने को कहा/
वही उसकी पहली और आखिरी निशानी बन गई,
वो मेरी मुहब्बत की बन गई पहली दास्तां/
एक बार सूट-बूट और टाई में, उसका बाप कोठरी में घुस आया,
और मुझे देख कर तुरंत मुझे बाहर का रास्ता बताया/
न जान्हवी ने कुछ कहा, न मैंने ही जुबान का प्रयोग किया,
बाप उसका मुझे अल्टीमेटम देकर वापस लौट गया/
मैंने सोचा कि खत्म अब कैशो- लैला का अफसाना हुआ,
पर मेरा शहर मेरे लिए बन गया प्यार का अखाड़ा/
लड़के- लड़कियों में उसकी- मेरी मुहब्बत आम हो गई थी,
इसी विषय पर यूनिवर्सिटी में होने लगी थी चर्चा/
मैंने पढ़ाई के साथ- साथ नौकरी की शुरूआत भी कर दी थी,
जो मेरे इक्के-दुक्के दोस्त और उसकी जानकारी में था/
जान्हवी ने इक बार मेरी तनख्वाह की बाबत पूछा था,
उस समय मैं साल भर के अप्रेंटिश शिप पर था और १२० रु० महीने का पाता था/
मैंने उसे बताया कि मेरी नौकरी साल भर के लिए है, उसके बाद नौकरी मिले न मिले,
क्या 400 भी नहीं मिलेंगे, उसने अपना सवाल दागा/
उसका इरादा मुझसे शादी का था पर मैंने पाया कि उसमें लालच था,
या वह मुझे अपना इरादा घरवालों से मिलवाने का रखती होगी/
उसने अपनी तै शादी का कारण पापा का फैसला बताया,
मैंने पूछा था गर वो चाहे तो यह शादी रोक सकता था/
मेरे चौराहे वाले मकान से उसकी शादी थी, में जानता था,
उसकी शादी भी हो गई पर मुझे न बुलाया गया/
मैं यूँ निर्विकार हो गया था, शायद मुझे ठीक से खबर भी न थी,
वह लोकल ही ब्याह दी गई थी, पर मुझे ही न पता था/
उस पर मेरे डिपार्टमेंट के ज्यादातर लड़के मरते थे,
वह नजर उठा के देख ले तो सारा चमन मुस्कुराता था/
पिक्चर बदलजाती है, पर पर्दा वही का वही रहता था,
अनेक दास्तानें समेटे रहते है,
नहीं बदलते तो हालात/
मैंने समझा कि अब तो खत्म ये अफसाना हुआ,
पर यहीं से तो इस अफसाने ने तूल पकड़ा/
हुआ ये कि मेरे आफिस में बीच में ही वैकेन्सी निकली,
चुनिंदे अभ्यर्थियों में मेरा भी नाम था/
सबसे बड़ी बात कि मेरी तनख्वाह छः से सात सौ थी,
मुझे अब अफसोस ले रहा था कि जान्हवी को मैं खो चुका था/
अब उसका मेरी जिन्दगी में लौट आने का हर रास्ता बंद था,
वो सिर्फ अब ख्यालों में थी, और उसका अक्स (फोटो) मेरे पास था/
पर वह फिर मेरे पास लौटी, पर उसे पाना मुहाल था,
इस हाल में थी, कि उसे अपना सोच
पाना इक ख्याल था/
चाहता था उसे फिर से पाना, पर कानूनी अड़ंगा था,
वह मेरी होकर भी मेरी हो न पाई,
इसी का अफसोस तगड़ा था/
आज भी वह मेरे पुराने शहर इलाहाबाद में हयात,
मैं दिल्ली की दमघोटूँ हवा में यहाँ दिन
गुजारता हुआ//
राजीव रत्नेश
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