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आज तक उससे बढ़ कर खूबसूरत मुझे नहीं दिखी,
नैन-नक्श गजब के थे, आँखें थी शर्मीली/
उस अकेली की बीसियों तस्वीरें मैंने खुद खींची थी,
अपने कैमरे से ब्लैक एंड व्हाईट और रंगीली भी//
(२) कौन जानता था
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अपराजिता थी वो गोरी सी पुरानी फिल्मों की हीरोइन सी,
अदाबाँकी थी, चाल मस्त थी, थी वो मेरी दीवानी भी/
एक साथ मिल कर साथ निभाने के सपने हमने सँजोए थे,
कौन जानता था, मुहल्ला छोड़ चली जाएगी दे के चुंबन निशानी ही//
आए न फिर से तू
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दिल से इक तेरा अक्स मिटाने के लिए,
क्या- क्या न गुर आजमाए तुझे भुलाने के लिए/
इसी बात का खौफ है, दहशत है मुझे,
आए न फिर से तू, तुर्की- ब- तुर्की सुनाने के लिए//
राजीव रत्नेश
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