जिन्हें हम भूलना चाहें----- संस्मरण
किश्त(4)
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जबसे उसने दोनों बहनों को देखा था,
उसकी कसरत में और तेजी आ गई थी/ कुछ दिन तो
मैंने बरदाश्त किया, फिर एक दिन जान्हवी और संध्या
के जाने के बाद, जब वो अपने बरामदे में खड़ा था,
मैंने उसे जाकर टोक दिया और सँभल जाने को कहा/
परंतु उसकी आदत में सुधार नहीं हुआ, उसकी फितरत में अब बस उसे तोड़े जाना ही बदा था/
वह शायद यह समझता था कि वह इतनी
सारी कसरतें करता है, मैं भला उसका क्या बिगाड़ सकता हूँ? फिर भी मैंने उसको समझाया,' चाचा जी!
लड़कियों को घूरने की ये आदत आपकी अच्छी नहीं,
अब भी बाज आ जाइए'/ उस समय तो वह अंदर
चला गया पर---
उसकी शक्ल हिंदी पिक्चरों के प्रसिद्ध
कामेडियन' मुकरी' से हूबहू मिलती थी और हम लोग
यानि कि मुहल्ले के यंग लड़के उसे मुकरी ही कहते थे/ हाँलाकि उसके तीन यंग लड़के भी थे, जिन्हें वह
पहलवानी करने की रोज ट्रेनिंग देता था/
उसके बारे में मुझे मुहल्ले वालों से भी शिकायत मिली कि मुहल्ले में और भी लड़कियाँ
हैं/ इसको मुहल्ला छुड़ाने का मैं उपक्रम करूँ, वो लोग साथ देने को तैयार थे/
इसी बात से आक्रोशित होकर उसके आफिस एक लड़के को साथ लेकर पहुंचा/
और उसे बाहर आने को कहा/ कुछ देर वह जब नहीं
आया तो मेरा और साथ वाले लड़के का उसे कालर
पकड़ कर घसीटते हुए बाहर लाने का प्लान बना/
तब तक वह यह सोच कर शायद कि मैं चला गया
होऊँगा, बाहर निकला/ वो आया तो मुझसे चाय की
पेशकश करने लगा/ मेरे साथ के लड़के ने इशारा किया,' मारो मौका अच्छा है/' मैंने उससे कहा,' अभी
ठहरो, आज इसे अल्टीमेटम देकर छोड़ते हैं और
मुकरी साहब से मैंने सिर्फ यही कहा,' मैं यहाँ चाय
पीने नहीं आया/ चाय ही पीना होता तो मेरे आफिस में
चाय मेरे चेम्बर में ही आ जाती है और हराम की चाय
में नहीं पीता/ मैं आज आपको अल्टीमेटम देता हूँ कि
अब नहीं सुधरोगे तो सुधार दिए जाओगे/'
वह बिना चाय पिए वापस आफिस
में भाग गया/ पर मैं भी अब दृढ़ प्रतिज्ञ हो गया कि इसको सबक सिखाऊँगा ही/
तीन- चार दिन तो मैं अपने कुत्ते
" टामी" के साथ उसके आने जाने के रास्तों पर टहलने लगा और उस पर नजरें रखने लगा/ जहाँ
वह मुझे देखता दूसरी पटरी पर भाग जाता/ एक दिन
मैंने निश्चय किया इसे अगले इतवार यानि दो दिन बाद उसे मारूंगा/ जगह और समय मेरी निगाह में थे/
शनिवार को मैंने शरत और मुहल्ले के एक लड़के को इतवार की सुबह तैय्यार रहने को
कहा/ उनके पहुंचने के पहले ही मैं मुकरी को उसके
बरामदे में जाकर चेतावनी दे आया," आज अगर
निकलना तो संभल के रहना"/
मैं, शरत और मुहल्ले का एक और
लड़का सब्जीमंडी के रेस्टोरेन्ट में जा विराजे/ मेरा कुत्ता मेरे साथ था/ उसके पट्टे से मैंने चेन निकाल
दिया था/ मैंने पता लगाया था कि वह 8 बजे सबेरे
सब्जी लेने जाता है/ इतवार, छुट्टी का दिन भी था और सब्जी मंडी में भीड भी बहुत थी/ पर मैं भी कृत संकल्प था कि आज निकला तो-----/
दोस्तों को इतनी ताकीद की कि वो उसका रास्ता रोकें कि कहीं वह भाग न पाए/ और
मारने का जिम्मा अपने ऊपर ले लिया/ खाली हाथ
सभी थे/ टामी की चेन भी मैंने उन्हीं को पकड़ा दी थी/
मुहल्ले वाले लड़के ने खबर दी कि
वह आ रहा है/ मैं उठ कर गेट पर आ गया और जाकर उसके सर पर सवार ले गया/ उससे पूछा,
' मैंने चेताया था फिर भी तुम निकले, अब भी बोलो
लड़की बाजी से बाज आओगे कि नहीं, अपना इरादा
स्पष्ट बताओ/' हाथ का झोला उठा कर वह बोला,
'हटो, जाने दो'/ वह आगे कदम बढ़ाने का उद्यत ही
हुआ कि मेरे सीधे हाथ का वार उसकी गरदन पर पड़ा/ वह पलटा तो मैं उसे ताबड़तोड़ मारने लगा/
उसके पेट में और माथे पर घूंसारोपड़ करने लगा/
उसके माथ से खून की लकीरें बहने लगीं/ यह सब
कुछ इतना अप्रत्याशित और तेज गति से हुआ कि
रास्ते की भीड़ भी ठिठक कर तमाशा देखने लगी/
भीड़ इकठ्ठा हो गई और पुलिस बुलाने की बात होने
लगी/ वह कमजर्फ बोला,' नहीं, मुहल्ले की बात है,
मुहल्ले में ही फैसला होगा/'
वह घर की ओर बिना सब्जी लिए ही रेंगने लगा/ मैं और मेरे दोस्त चौराहे तक तो साथ आए/ रास्ते में किसी ने उसे जयराम किया तो उसने
जवाब नहीं दिया/ तो मैं बोला,' अभी यह मार खाया
है/ दो दिन किसी को मुँह नहीं दिखाएगा/'
इसके बाद हम लोग दो चौराहे दूर रेस्टोरेन्ट में जा बैठे और वहाँ मुहल्ले में रहने वाले
अपने चचेरे भाई को बुलवाया और उसे सब कुछ
बता कर मुहल्ले की खबर देते रहने की ताकीद की/
और टामी के पट्टे में चेन फँसा कर उसके हाथों में सौंप
दी और दोस्तों से विदा लेकर मामाजी के यहाँ चला गया/
शाम को मैं घर लौटा तो माता जी ने यह बताया कि सीधे घर में ऊपर आकर वह अम्मा,
पिताजी के पैरों पड़ा और माफी माँग कर चला गया/
उसके बड़े लड़के ने मुझे चैलेंज किया था सो उसे
बाहर बुला कर गली के नुक्कड़ पर ले गया और
उससे कहा,' ज्यादा उछलोगे तो तुम्हारे पापा ही को
अभी मार पड़ी है अब तुम भी तोड़ दिए जाओगे/ अपने पापा को बता दो कि मुहल्ले में शरीफ लोग भी
रहते हैं/' इसके बाद मुकरी मेरे सामने पड़ने से भी बचने लगा/ चार-पाँच वर्षों के बाद रेलगाड़ी के सफर में उसका इंतकाल हो गया/ मुझे खबर भर मिली थी/
उसके घर वालों ने बाहर ही उसकी कपाल क्रिया कर
दी और फूल भी संगम में शायद प्रवाहित नहीं किया/
आखिरी विदाई में उसे मुहल्ले वालों का कंधा भी
नसीब नहीं हुआ/ कुछ समय पश्चात मुकरी के घर
वाले भी कहीं दूर-दराज जा बसे और वह घर दूसरे
किरायेदार के कब्जे में आ गया/
रही बात जान्हवी के छोटे भाई विकास
की बात, जिसके बारे में उसके पापा और प्रभात ने
मुझे चेताया था/ वह रोज मेरे घर का एक चक्कर
लगाता था और मेरे कमरे की खिड़की पर रखी
रेजगारी मेरे सामने अपनी जेब में डाल लेता था/
एक तो चोरी ऊपर से सीनाजोरी/ मेरे साथ मेरे आफिस जाता था और समोसे- छोले की फरमाइश
करता था/ बड़े भाई का जितना सादा रहन- सहन
था उतना ही उसका बाह्याडंबरों से भरा जीवन/ उसके
बाप को जितना मैं नापसंद था वह मुझे उतना ही
पसंद करता था/ जान्हवी के कारण उसे में डाँटता भी
नहीं था/ मुझे लगता है कि हो न हो उसको मेरे और
जान्हवी के प्रेम संबंधों की भनक कहीं न कहीं से,
किसी न किसी से, किसी न किसी प्रकार से उसे लग
चुकी थी और वह मुझे ब्लैकमेल कर रहा था/ यह भी
हो सकता था जैसे जान्हवी ने प्रभात को बताया था,
उसे भी बताया हो और इस बात का वह मेरे से
नाजायज फायदा उठा रहा हो तो कोई आश्चर्य नहीं/
आज तक न मैं पकड़ा गया न ही
मुझे पकड़ने का किसी ने साहस दिखाया/ मुझे लगा
उसके पापा ने उसके बारे में मुझे केवल बंदर घुड़की
ही दी थी/
बहरहाल जान्हवी के घर में उसके बाप के अलावा सभी मुझे पसंद करते थे/ बाद में
एक दिन ऐसा भी आया कि उसके पापा मुझे अपने
पास बिठा कर, अपने भविष्य के प्लान बताते थे/
120 रुपये वाली बात जो मैंने उन लोगों को न बतलाया होता तो उसके पापा भी शुरू से ही मुझे
उतना ही पसंद करते जितना वो अपने अन्य दो
दामादों को पसंद करते थे पर मैं सच बोल कर
फँस गया था या बच गया था / इस समस्या का
समाधान किसी अन्य अगली किश्त में होने वाला था/
जब तक उसके पापा का हृदय- परिवर्तन हुआ तब तक चिड़िया खेत चुग चुकी थी/
पर मेरे लिए वो बातें बेमानी थीं/ मेरी जिन्दगी में उससे कोई फर्क पड़ने वाला नहीं था/ जान्हवी के
बिना मेरी कश्ती - ए- जिन्दगी, बिना पतवार लहरों
के थपेड़े खा रही थी/
एक रोज दिन के समय मैं जान्हवी
के घर अपना बिना फलैश वाला" आगफा क्लिक- 3"
कैमरा लेकर पहुँचा और उससे फोटो खिंचवाने को
कहा/ पर हवेली नुमा उसके घर में उस समय सूरज
की रोशनी का अभाव था/ नतीजतन मुझे अपना वो
प्रोग्राम मुल्तवी करना पड़ा/
यह देख कर जान्हवी ने मुझे
अपने दो फोटो दिए और बताया," इनकी बस यही
दो कापियाँ मेरे पास हैं/ पीछे नंबर और फोटोग्राफी
की दुकान का नाम लिखा है/ कापी बनवा कर एक-
एक कापी मुझे भी दे दीजिएगा"/
जान्हवी की फोटो इतनी सुलभता और सहजता से मुझे प्राप्त हो जाएगी, इसकी मुझे कतई उम्मीद नथी/
सन्ध्या ने वह लव-लेटर यह सोच कर अपने पास ही रख लिया था, कि वह उसके
लिए था और यह बात वह सबसे छिपा भी गई/ जान्हवी के पूछने पर उसने उसको यही बताया पर
मैं सोच रहा था कि मैं इतनी बड़ी गल्ती कैसे कर
सकता था? क्या मैं सम्बोधन का शब्द या जान्हवी
का नाम भी लिखना भूल सकता था? यह मेरे लिए
भी एक अनबूझ पहेली से कम न था/ काश! मेरे
सामने यह पहेली उल्झी ही रहती/
प्रीपरेशन लीव खत्म होने को थी और इसतहान शुरू होने वाले थे/ मैंने जान्हवी
से विदा ली और इम्तहान बाद मिलने का उसको
भरोसा दिया/ पर नियति को कुछ और ही मंजूर था,
जो न मैं जानता था न ही जान्हवी/
चार पेपर होने को थे/ पहले दिन के पेपर में जब हम लोग उत्तर- पुस्तिका पर
प्रश्न की व्याख्या कर ही रहे थे कि अचानक हाल की
खिड़कियों, दरवाजों पर पथराव, हल्ला-गुल्ला और
शोर-शराबा होने लगा/ अभी तक मैं तीन प्रश्न हल कर
पाया था, दो प्रश्न अभी तक अनुत्तरित ही थे/ हम लोगों से जबरन उत्तर- पुस्तिकाएँ छीन ली गई और
दरवाजे खोल दिए गए/ लड़कों के जत्थे हाल में घुस
आए और जिन्दाबाद- मुर्दाबाद के नारे लगने लगे/
मेरे बगल वाले हाल( संस्कृत
विभाग) में जान्हवी का सेंटर था/

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