Tuesday, December 23, 2025

जिन्हें हम भूलना चाहें( संस्मरण) किश्त(१०)

जिन्हें हम भूलना चाहें( संस्मरण)
     किश्त(१०)
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मैं सन्ध्या से मिल कर चला तो आया था पर दिल में
एक खाली पन, एक अधूरापन मुझ पर तारी हो चुका
था/ मैंने संध्या को अपनी बात बता ही नहीं दिया था,
बल्कि एक तरह से प्रोपोज ही कर दिया था/ यन्दि प्रभात जानता तो सीधे मुझसे और संध्या से दुश्मनी
पर उतर आता, क्यूँकि वह जान्हवी को खुश देखना
चाहता था और उसके लिए हर हद तक गिर सकता था/
        उसके पापा की अकड़ लगभग समाप्त हो चुकी
थी और वो अब मुझे पहले से कहीं ज्यादा बुजुर्ग लगते थे/ मैंने उनसे कभी कुछ न कहा था और न ही
अपनी माँग उन तक स्वयं पहुंचाई थी/ अपनी बात
मनवाने का जान्हवी का तरीका भी मुझे पसंद नहीं था/
         प्रभात सोचता था शायद कि संध्या की लगी-
लगाई तयशुदा शादी है, उसके पापा भी दिलो- जान
से उसी को संरक्षण देते हैं पर वह समझ रहा था कि
जान्हवी के भविष्य को लेकर वो जरा भी चिन्तित नहीं
थे अथवा उसे उन्होंने भाग्य के भरोसे ही छोड़ दिया
था या अपनी बात प्रभात के जरिये मुझ तक पहुंचवा
रहे थे/
   कितना बचायें दिल को, सख्त मरहले हैं,
   हम उन्हीं को प्यार कर बैठें है, जो अधमरे हैं//
         जान्हवी की माता जी अस्वस्थ चल रही थीं और मेरे साथ एक बार वो तांत्रिक सरकार के यहाँ भी
गईं थीं/ उनके हाथ पैरों के नाखून तीव्रता से पीले पड़े
जा रहे थे/ रिक्शे पर उन्होंने मुझसे कहा," राजीव मैं
इसलिए परेशान हूँ कि जान्हवी अपने घर नहीं जा रही
है/ वो अपने घर चली जाए तो मैं ठीक हो जाऊँगी/ इससे अच्छा था कि उसकी शादी आपसे हो जाती"
तो मैंने बताया कि भला यह कैसे संभव ले पाता, जबकि मेरी आय उस समय मात्र 120 रू० थी/
वह कहने लगी, अब तो तुम्हारी तनख्वाह ज्यादा है,
सरकारी नौकरी में भी हो/ जान्हवी को तुमसे ज्यादा
खुश कोई और नहीं रख सकता है/ मैंने कहा," जिससे आप लोगों न उसकी शादी की है, वह भी तो
अच्छा कमाता है पर जान्हवी क्या उसके साथ खुश
रह सकी? और तो और उस पर तलाक के लिए मुकदमा भी तो आप लोगों ने करवा दिया है"/ उन्होंने
फिर कहा," मैं मरना नहीं चाहती पर मुझे डाक्टरों ने गंभीर बीमारी के बारे में सूचित किया है/" मैं चुप
हो लिया, यह कहने की सामर्थ्य मुझ में नहीं थी कि
जान्हवी की जिन्दगी तो उन लोगों ने मिल कर ही
बर्बाद की है/
" ये हाल तुम्हारा क्या हो गया, जरा सोचो,
दामन तुम्हारा बा काँटों से ही भर गया/
तरजीह जिन्दगी के फलसफे में तुम्ही को दिया,
खता हमसे हुई कि दिल बस तुम्हीं पर आ गया//
               एक बात तो तय थी कि रिक्की का बाप
मेरे सिवाय कोई भी हो, माँ तो उसकी जान्हवी ही थी/
इस नाते भी मैं उससे ज्यादा दूरी नहीं रख पा रहा था/
प्रभात उससे मुझको पापा कहने को कहता रहता था
और जान्हवी भी यही चाहती थी शायद, जो उसने
कभी रिक्की को मुझे पापा कहने पर टोका नहीं/
             प्रभात अब मेरी शादी को लेकर बहुत तत्पर
हो रहा था और मुझ पर निरंतर दबाव बना रहा था/ पर मैं चुप था क्यूँकि कहानी के अंत तक मैं संध्या का
इंतजार करना चाहता था पर वह उसकी शादी की चर्चा न करके वह मुझे शादी करने के लिए उकसा
रहा था/ नौकरी में परमानेन्ट हुए मुझे लगभग पाँच
साल हो रहे थे पर मैं अभी भी घर वालों को शादी
की बात से इंकार कर दे रहा था/ शायद उनको डर
था कि मैं कहीं जान्हवी के चक्कर में फिर न पड़ जाऊँ/
             प्रभात जानता था कि मैं गवर्नमेंट सर्विस में
एक ही शादी कर स सकता था और मेरी दो बीबियों को समाज भी कभी मान्यता नहीं दे सकता था/ जब
वह जान्हवी की शादी मुझसे करवाने के अपने इरादे
में बिल्कुल निराश हो गया तो उसने दूसरा रास्ता पकड़ा", उसने मुझे इस बात पर राजी करना चाहा कि मैं शादी कर लूँ और जान्हवी मेरी रखैल( kept)
हो कर रहे" पर मुझे अब उसकी किसी बात का भरोसा या विश्वास नहीं था फिर भी मैंने उससे पूछा
कि क्या उसने इस बारे में जान्हवी से कोई मंत्रणा की
है तो वह चुप हो लिया पर मेरे लिए कोई ऐसा रिश्ता
मुझे नहीं सुझाया, जिसके साथ मैं शादी के बंधन में
बँधकर भी एक' रखैल' को अपनी जिन्दगी में आबाद
कर सकूँ/ यदि ऐसा किसी तरह संभव भी हो पाता तो उसने रिक्की के बारे में क्या सोचा था, जिसके दो बाप
होते हुए दो दो माँए भी होती/
                 मुझे उसकी बात का गड़बड झाला समझ
नहीं आया तो मैंने जान्हवी से हकीकत जाननी चाही/
और इस बात के लिए जान्हवी से मुलाकात करने का
मन बनाने लगा---
सूरते दिल तुम्हारी खस्ता हाल हुई
तुम्हारे बाप की अकड़ की लाठी घूट गई/
हाले दिल का ब्यौरा हम भला क्या देते,
तुमसे थी लगावट, तुमसे ही थी आशनाई//

               मैं पहले भी कह चुका हूूँ कि मैं संधया को
अंत तक मौका देना चाहता था और इस बात के लिए
कटिबद्ध था कि शादी करूंगा भी तो संध्या की शादी के बाद ही/ ऐसा अवसर प्राप्त करने में , अपने को मैं तैय्यार नहीं कर पा रहा था कि जान्हवी या संध्या से खुल कर बात कर पाता क्यूँकि मैं संध्या को अब अपने से जुदा करने की बात नहीं सोच पा रहा था----

" हम देवदास को अपने मुहब्बत के फलसफे में
                                      किरदार करेंगे,
मंजूर हो तो आ जाना, सबके सामने हम तुम्हारी
                                       मांग भरेंगे//"

                मेरे पर हर तरफ से अब प्रेशर बनाया जाने लगा था/ मैं अभी शादी कर के अपनी स्वतंत्रता
का हनन होते नहीं देख सकता था/ मेरे जीजा जी
और घर वालों ने कई लड़कियाँ देख रखी थीं/ उन लोगों की निगाहें एक जगह जा के टिकीं तो मुझे
आगाह किया गया कि ऐसी लड़की फिर नहीं मिलेगी/
वो डी० आर० एम० आफिस में मुलाजिम है/ मेरे जीजा जीने तो यहाँ तक कहा कि वो तबला बजाने में
माहिर है और मेरे पिताजी भी नित्य शाम को तबल पर रियाज किया करते थे, घर का माहौल अच्छा रहेगा/ पर मैं नौकरी वाली लड़की से शादी करने की
कोई वजह नहीं समझ पा रहा था तो मेरे जीजा जी
ने मुझे समझाया," दोनों यदि नौकरी में रहोगे तो
तंगहाली से दूर रहोगे और कभी आर्थिक परेशानी नहीं होगी/"
                बहरहाल, फिलहाल के लिए मैंने शादी के
लिए इंकार कर दिया घर वालों ने यहाँ तक कहा," एक बार मिल लोगे और देख लोगे तो ऐसा नहीं कहोगे, ऐसी लड़की फिर नहीं मिलेगी/"
                पर मैं उन लोगों के साथ उक्त लड़की से मिलने या देखने की इच्छा का त्याग कर दिया/ मेरी
माता जी और बहनें यही सोच रही थीं कि मैंने जान्हवी के लिए इंकार कर दिया है/ उन लोगों ने साफ
कर दिया,' जान्हवी को तुम इस घर में ले आ न सकोगे, अपनी जिद छोड़ दो' में उन्हें कैसे समझाता
कि वस्तुतः मैं सन्ध्या के फैसले का इंतजार कर रहा हूँ/" वस्लेयार पर ये फिराक ज्यादा भारी था"/
                उधर संध्या के पापा उससे शादी के लिए,
दिनेश के बहनों की शादी की प्रतीक्षा करने को कह
रहे थे/ इस उलझी डोर का सिरा खोजना भी मेरी
मजबूरी में ही शामिल था शायद/ संध्या की मनःस्थिति क्या थी, मैं समझ नहीं पा रहा था----
" कहकशां का तीव्र बहाव है वो,
बागों की नकहते- गुलाब है वो/
दिल की बात भी नहीं समझती,
कितनी भोली औ' नादान है वो/"
                 एक दिन प्रभात ने मुझे बताया कि उसकी माता जी' मेडिकल कालेज' के प्राइवेट वार्ड में
भर्ती हैं/ मैं उनसे मिलने गया तो वहाँ प्रभात ने मुझे
बताया कि उनकी किडनी में प्राब्लम है और डायलिसिस के बारे में बात चल रही है/ डायलिसिस
की सुविधा उस समय इलाहाबाद में नहीं थी शायद/
प्रभात के पाप अब ढ़ीले पड़ गए थे और सबसे उनकी
बीमारी के बारे में बता रहे थे/ मुझसे भी बात करने की कोशिश की पर मैं उनकी बातों में इन्टरेस्ट न लेकर फालतू ही हाँ ना में जवाब देता रहा/ हफते भर
करीब वे बेड पर रहीं और यही कहती रहीं,' मैं अभी
मरना नहीं चाहती'/
                पर उनके लड़की दामाद भी उन्हें झूठी
तसल्ली देते रहे/ कोई उन्हें बचा नहीं पाया/ और
उन्होंने हम सब की तरफ से आँखें फेर लीं/
                अस्पताल में ही मेरी जान्हवी और संध्या से मुलाकात हुई पर अवसर उपयुक्त न जान कर मैंने
उनसे कोई बात न की/
                   मैं चाहता था कि संध्या का धीर-गंभीर
व्यक्तित्व अब उभर कर सामने आए, जो जान्हवी के
आकर्षण के शोर में कहीं दब सा गया था/ एक बार तो वह अपने पापा से मेरी बात करे या कराए पर उसके पापा से मेरा कहना हाथी के सामने दंड पेलने
के समान ही था/ उसके पापा के रवाने और दिखाने के दाँत अलग- अलग थे/
                   एक बार जान्हवी और संध्या से मिलने
की उत्कंठा लिए हुए उनके घर कीडगंज जाने की सोच ही रहा था कि अचानक पीछे से प्रभात ने रास्ते
में ही पुकारा और कहा,' मैं कीडगंज ही जा रहा हूँ,
तुमको भी चलना हो तो चलो, जान्हवी से भी मिल
लेना/' पर मैं समझ पा रहा था तो यही कि उसके
सामने कोई बात करने का कोई फायदा नहीं होगा
और कोई स्थिति बनेगी भी तो वही' ढ़ाक के तीन पात'/

" मैंने तेरी इबादत में जिन्दगी अपनी गुजार दी,
न खुदा ही मिला, न विसाले- सनम ही हुआ/
हजरते- वाइज को देखा हमने जब मयखाने में,
मैंने भी हसीनों की आँखों से दो पैग पी लिया/
जन्नत के बारे में सुना था रिन्द ने बहुत कुछ,
अनजाने में ही जन्नत का मजा जी लिया/
तेरी आँखों में ही नजर आए जन्नत भी, दोजख भी,
मैंने साकी से प्याले में दोजख डालने को ही कहा/"

               मैंने प्रभात से कहा,' अभी आज नहीं फिर
कभी आऊँगा/' पर मुझे दोनों बहनों से मिलने की
शीघ्रता थी इसलिए दूसरे ही दिन मैं कीडगंज जा पहुंचा/ मैंने विकास से जान्हवी के बारे में पूछा/ वह
जाकर उसे बुला लाया/ आते ही उसने चाय के बारे
में पूछा/ मैंने मना किया और उससे बैठने को कहा/
वह बैठी और कहा,' लगता है, आजकल आप किसी
गफलत के शिकार हो गए हैं/ मैंने कहा," तुमने सही
पहचाना,' मैं कुछ पूछने, जानने तुम्हारे पास आया हूँ,
पहले तो तुम मुझे यह बताओ कि रिक्की का असली
बाप कौन है?  

        वह बोली ," रविन्द्र ही उसका असली बाप है/ मेरी
गलत आदमी से हड़बड़ी में मेरी शादी कर दी गई कि
आज मैं लांछन का शिकार हो रही हूँ" मैं बोला," पर
उसने तो सब लोगों से कहा है कि वह संतान पैदा करने में असमर्थ है/" वह बोली," वह झूठ बोलता है/
मुझे छोड़ने का बहाना है/ इसीलिए मुझे बदनाम करने
के लिए ही वह तुम्हारा नाम ले रहा है" मैंने फिर कहा,
" मेरे और अपने बीच की सारी बातें तुमने उसे बताई हैं/ वह मेरे बारे में गफलत जदा है और तुम्हारे साथ
ही साथ मुझे भी बदनाम करने पर आमादा है/ तुम्हारी
माता जी जब तक रहीं, तुमको लेकर ही परिशान रहीं/
अब तो उनकी आत्मा की शांति के लिए अपने घर
लौट जाओ/" उसने जवाब दिया," वहाँ अब मैं नहीं
जाऊँगी/ मुझे वह मारता है और उसकी माँ मुझे तरह-
तरह के ताने देती है/" मैंने पूछा," फिर तुम्हारा भविष्य क्या है? उसने कहा," मेरा भविष्य तुम्हारे
साथ ही बँधा है/ तुम मुझे अपने प्यार के वास्ते बस
एक बार सहारा दे दो/" मैंने पूछा," फिर रिक्की का क्या होगा?" तो वह बोली," उसे भी आपको ही
संभालना होगा और उसे अपना खून स्वीकार करना
होगा/",' रविन्द्र को मेरे तुम्हारे बीच गलत संबंध
उड़ाने का उसे मौका मिल जाएगा, वह तुम्हारे जीवन
भर तुम्हें ब्लैक मेल करेगा, हो सकता है शायद मुझे भी वह ब्लैकमेल करे/ अगर तुम्हारा कहना सही है
कि रिक्की का बाप वही है तो उसे उसके पास भेज
दो,' मैंने उसे समझाते हुए कहा/
                  मैंने फिर कहा,"मेरे घरवाले रिक्की के
बारे में जान कर कभी राजी नहीं होंगे/ इसीलिए मैंने तुमसे रिक्की का मोह हमेशा के लिए छोड़ने के लिए
कहा था/ पर प्रभात भी मेरी बात से सहमत था फिर भी तुम लोग रिक्की को इस दुनिया में लाए/ मैं पहले ही कहा था कि रिक्की हमारे तुम्हारे बीच व्यवधान है/
तुम्हारे बारे में किसी तरह मैं घर वालों को राजी करने
के बारे में सोच भी सकता था पर अब वह मेरे लिए
संभव नहीं है/"
                वह आगे बोली," फिर मेरे भविष्य के बारे में सोचने का तुम्हारा क्या अधिकार है?" " फिर क्या
तुम मेरी बीबी के साथ सौत बन कर रह सकोगी,"
मैंने पूछा/ तो उसने तल्खी से जवाब दिया," नहीं,
एक म्यान में दो तलवार कभी नहीं रह सकती/" फिर
मैंने कहा," प्रभात ने तो मुझे शादी कर लेने का दबाब बनाते वक्त यही कहा था कि तुम मेरी रखैल बन कर
भी खुश रहोगी/ क्यूँ भाई- बहन का मतैक्य नहीं है/
वह कुछ कहता है, तुम कुछ कहती हो/"
                  मैं समझ गया कि मेरी शादी की बात उसको कचोट रही है और वह मुझसे बिना शादी हुए
ही मेरी बीबी को तलाक दिलवाने का इरादा संजोए
बैठी है/
                   पर अभी मैं स्वयं ही शादी करने के लिए
तैयार नहीं था, इसलिए मैंने उससे यही कहा," रिक्की
को आगे करके उसके बाप से संबंध सुधारो, यही
तुम्हारे लिए उचित है, जो तुम्हारे भविष्य के लिए रास्ता खोलेगा और रविन्द्र के पास वापस चली जाओ, तुम्हारी माँ की अंतिम इच्छा यही थी/ उन्होंने
मुझसे बार- बार यही बात कही थी/"
               मैं स्वयं भी आक्रोशित हो उठा था पर जाहिर न करके शांत भाव से बैठा रहा/ फिर उससे
कहा," तुमने मुझे प्यार में धोखे के सिवाय क्या दिया
है? तुम तो मेरा इंतजार भी न कर सकी/ मैंने तुम्हारी
शादी रोकने का इरादा किया तो तुमने अपने पापा की
मर्जी के आगे हथियार डाल दिया/ कम से कम मेरी
नौकरी लगने तक तो रुक जाती"
              उसने कहा," यहीं तो मुझसे गलती हो गई/
पापा को मैं मना नहीं कर पाई/" मैंने कहा," अब तुम
अपने पापा से ही पूछो," क्या वह तुमको जिन्दगी भर
बिठा के खिलाने को तैयार हैं ? अथवा कोई अन्य तरीका उनके दिमाग में हो तो उसे भी आजमा देखें
और तुम्हारा रंज दूर करें/ मुझे तुमसे पूरी सहानुभूति
है------
      " कल तक थीं जो हाजिर जवाब,
        आज सुझ नहीं रहा उनको जवाब/
        गुल भी चाहिए और नकहत भी,
        सूरत औ' सीरत साथ, तो क्या इत्तफाक/"

                 अब मेरी सारी आशाओं का केन्द्र संध्या ही रह गई थी, जिससे मिलने में मुझे संकोच हो रहा
था पर उससे कुछ न पूछ परिस्थितियों के हवाले करने की भी मेरी मनोकामना नहीं थी/
                  जान्हवी को मेरी बातों में संभवतः कोई
आशा की किरण नजर आई हो, पर इससे मैं अनजान
था/ वह जाने का नाम भी नहीं ले रही थी/ और संध्या
से बातें करने और उसके हाथ की चाय पीने के लिए
मेरे होठ व्याकुल ले उठे/ करीब शाम के आठ बज रहे होंगे/ जान्हवी से संध्या को भी बुलवा लेने की पेशकश
की/ तो वह बोली," मैं संध्या को अभी जाकर भेजती हूँ' जाते-जाते उसने मुझे चाय के लिए पूछा, मैंने
इत्मीनान की सांस लेते हुए कहा," मेरी चाय का समय
भी अब हो रहा है/" और वह संध्या को बुलाने चली
गई---
        " तेरी चाय के मुंतजिर हैं हम तो,
           मिले तेरे हाथों से तो वाह-वाह"
                    संध्या चाय बना कर ले आई थी/ वह
आकर बैठी तो मुझसे पूछने लगी," आपका यूनिवर्सिटी फिर से ज्वाइन करने के बारे में क्या विचार है? मैंने बताया कि अब यूनिवर्सिटी ज्वाइन करने में अब तो और दिक्कत है/ साल भर के लिए बिना तनख्वाह के छुट्टी पर रहना पड़ेगा और पैसे की
अहमियत जान्हवी ने मुझे अच्छी तरह समझा दिया है/ मैं अब इस बारे में सोच भी नहीं सकता हूँ/ हाँ तुम
अपना विचार, अपनी दिक्कतें मुझसे शेयर कर सकती हो, मेरे घरवाले शादी के लिए मुझ पर दबाव
बना रहे हैं और प्रभात भी कुछ इसी प्रकार की बात
कर रहा है और जान्हवी को रखैल के रूप में स्वीकार
करने को कह रहा है पर जान्हवी का ख्याल इसके उलट है/ वह किसी की सौत बनना पसंद नहीं करेगी,
बलिक अभी भी मुझ पर अपना पूर्ण अधिकार रखना
चाहती है/ बिना शादी किए ही वह अभी से मेरा तलाक करवाने की मुहिम पर अडिग है/ वह कहती
है कि मैं शादी करूँ तो उससे, नहीं तो किसी से नहीं/
               सन्ध्या ने मुझसे पूछा," क्या आप जान्हवी
के विचार से सहमत हैं?" मैंने कहा," हर्गिज नहीं, अभी तो मैं शादी करने के ही पक्ष में नहीं हूँ/ शादी कर
भी लेता हूँ तो उसे जान्हवी के लिए तलाक कैसे दे सकता हूँ/ जिसे सात फेरों के बंधन में बाँध कर लाऊँगा, उससे अलग होने की बात सोचना तो दूर की
कौड़ी लाना होगा/ यह मेरे लिए किसी हाल संभव नहीं
होगा/ वैसे शादी के लिए जल्दी जान्हवी ने ही की है/
उसने मेरा इंतजार करना भी जरूरी नहीं समझा,
मुझसे इजाजत लेना तो दूर की बात है/ मैं उसके 
विकल्प की तलाश में मारा-मारा फिर रहा हूँ/ पर
मंजिल सामने होते हुए भी मैं उससे कुछ कहने की
हैसियत से अनजान हूँ/ सच पूछो तो मैं तुम्हारा ही
इंतजार कर रहा हूँ----
        " रौशन है चाँद झिलमिलाते
                         सितारों की चादर ओढ़कर,
           हम तुम भिलेंगे भी क्या कभी
                          जमाने की चाहत छोड़कर/
           किस्सए कैशो- लैला, शीरी-फरहाद
                          आखिर अंत में अधूरे ही रहे,
            तुम बताओ, दो दूनी चार छोड़
                            मिल सकेंगे क्या दो दो चार जोड़
                                                                कर/"

                          वह मेरी बात पर जरा भी हैरान-
परेशान न हुई पर इतना जरूर बोली," पापा अभी भी
दिनेश की बहनों के लिए रिश्ते खोजने में उसकी मदद
कर रहे हैं/ और मुझसे कहते हैं कि वह अपनी बहनों की शादी करने के बाद मुझसे शादी करने की बात पे
संजीदा है'' मैं जानता था कि भरे-पूरे समृद्ध परिवार
से उसका ताल्लुक है और शायद मुझसे भी अच्छी नौकरी करने लगा है/
                    मुझे फिर से इस विषय पर 120 रू० की याद आ गई----- पर मैंने संध्या से इतना ही पूछा,
" तो उसका तुम कब तक इंतजार करोगी? उसकी
चारों बहनों की शादी कब तक होगी? इस इंतजार में
तो तुम्हारी आधी उम्र गुजर जाएगी/" उसने बताया,
" मैंने पहले ही आपसे बताया था कि पापा कि पापा
की मर्जी के खिलाफ जाने की मेरी हस्ती नहीं है और मैं जान्हवी की परिस्थिति देख कर फिक्रमंद भी हूँ कि
कही मेरा हाल भी उसकी तरह ही न हो/"
                    मैंने कहा," मैंने अभी तक अपने घर वालों की तय की हुई शादी से इंकार कर दिया है/ और
तुम भी जान्हवी की तरह मुझे लेकर गंभीर नहीं लग रही हो और इस बाबत अपने पापा से बात भी नहीं
करना चाहती हो/ मुझे क्या करना चाहिए, यह मुझे
समझ नहीं आ रहा है/ मैं तुमसे यह भी नहीं कह सकता कि तुम्हारी तरफ से भी मैं धोखे का शिकार
हुआ हूँ पर विकल्प के लिए सोचने को तुम्हीं ने मुझसे
कहा भी था और फूल की खुशबू बन कर मेरी छोटी सी बगिया को सुगंधित कर देना भी तुम्हीं चाहती भी 
थी/ अब बस मैं उसी खुशबू का ही इंतजार करना
चाहता हूँ/ मैं समझता हूँ कि तुम्हारे लिए, या जान्हवी
के लिए भी तुम्हारे पापा से मैं जिरह करने के लिए
तत्पर भी नहीं हूँ/ शायद मुझे वह 120 रू० वाला छोरा अभी भी समझते हैं/ तुम भी नहीं पूछोगी तो मुझे अब अपने इंतजार और संवाद दोनों पर ब्रेक
लगाने के लिए सोचना ही पड़ेगा/ तुमने दो नाव पर
एक साथ पाँव जमाने की नाकामयाब कोशिश की है/
एक गया तो दूसरा तो तुम्हारे, और तुम्हारे पापा की
गिरफ्त में है ही/ भगवान न करे कि दिनेश अपनी बात
से फिर जाए और तुम दो नावों पर पाँव रखे हुए ही बीच भँवर में फँस जाओ"/
        " क्या मांगू खुदा से, तुम्हीं से मांगता हूँ,
           क्या मांगू तुमसे, तुम्हीं को मांगता हूँ//"
                   " अगर मैंने जल्दबाजी में कोई कदम
उठा लिया तो इसके लिए न तो पापा ही मुझे बख्शेंगे
और न ही दिनेश/ वाकई मैं बीच भँवर में हूँ/ लगता है
कि अब तो कश्ती भी मेरा साथ छोड़े जा रही है/ आपने मेरे बारे में जो सोचा है, उससे मुझे इंकार भी नहीं है पर जान्हवी की हालत देख एक बार फिर मैं
आपके सामने शरमिंदा होने को मजबूर हूँ," संध्या ने
बिना किसी लाग लपेट के कहा/
                       
संध्या से मैंने प्रत्य प्रत्यक्ष कहा," मेरे सामने भी अब
कोई रास्ता नहीं बचा है सिवा इसके या तो बिना शादी
किए जिन्दगी गुजार दूँ या फिर जहाँ माँ- बाप चाहें, वहाँ शादी कर लूँ/ तुम्हारे लिए यह एक निर्णायक
पड़ाव है, अपना निर्णय मैंने तुम्हें बता दिया है/ मेरे
घर के दरवाजे तुम्हारे लिए हमेशा खुले रहेंगे, तुम कभी भी आ सकती हो बहरहाल अब मैं कीडगंज
लौट कर नहीं आने वाला/ अपना ध्यान रखना/"
इसके बाद मैं बोसीदा कदमों से अपने घर की तरफ
लौट चला/
                मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा था कि डाल पर
मैं और संध्या दो पंछी की तरह बैठे थे और मुझे बहे लिए के तीर की जद में देख कर मेरा साथी कहीं दूर
उड़ गया है/
                उसके बाद न तो संध्या से ही मिला और
न जान्हवी से/
                 आज स्थिर मन से सोचता हूँ तो मुझे
जान्हवी पर न रोष है न गुस्सा/ उसका दर्द और कुसूर
सिर्फ इतना था कि उसने मुझे अपनी बेपनाह मुहब्बत
से नवाजा पर उसने मेरा कुछ दिनों और( यानी फाइनल हो ने तक) इंतजार नहीं किया/ न सूरत देखी
न सीरत और पैसों को मुझसे अधिक महत्व देकर
रविन्द्र के डाले चारे में फँस गई/ जहाँ तक संध्या का
सवाल है, जबरदस्ती ही मेरे और जान्हवी के बीच आ
धमकी थी/ दिनेश के होते हुए भी मेरे प्यार की अँधेरी
कोठरी में अपनी मुहब्बत से चरागां करने की कोशिश
में प्राण प्रण से जुट गई थी/ जान्हवी के धोखा देने के
बाद अब वह प्रेम का मरहम लेकर आई थी और मेरे
टूटे हुए दिल का मदावा कर रही थी और अब मुझे
भी बिना पतवार की अपनी कश्ती में मुसाफिर बना
लिया था/ खुद से ही हारा हुआ होकर मैं किसी विशेष
को दोष नहीं देना चाहता था पर मेरी अपलक पलकें अब शायद किसी विशेष मेहमान की प्रतीक्षा में आतुर
थीं/
              अब मैं" जिन्हें हम भूलना चाहें'' संस्मरण
को इसी किश्त में समाप्त करना चाहता हूँ/ बिना विस्तार दिए दिए ही इसे अब संक्षिप्त करना चाह रहा
हूँ/ समझ रहा हूँ, पाठकों के पास यह निष्कर्ष तो होगा ही कि मैंने जान्हवी को अपनाया क्यूँ नहीं और
क्यूँ उसे दर-दर की ठोकर खाने के लिए इतनी बड़ी
दुनिया में अकेला और बेसहारा छोड़ दिया/ उसने तो
मुझे प्यार ही दिया था और उसी प्यार के भरोसे ही
लौट के मेरे पास वापस आई थी/
               मैं पाठकों के समाधान के लिए इतना ही
अर्ज करना चाहता हूँ कि मैं रिक्की को भी उसकी माँ
के साथ ही अपना लेता पर मेरे परिवार वालों को
असलियत पता ही नहीं थी और समाज भी मेरे इस
फैसले को सम्मान की दृष्टि से न देखता और जान्हवी भी जबरदस्ती मेरे गले पड़ने की फिराक में थी, उसे
अपने किए का किसी तरह का पछतावा भी तो नहीं था/
             मेरी दो छोटी बहनों और एक छोटे भाई की शादी भी मेरे अतिरिक्त होनी थी/ मैं अगर रिक्की को
अपनी संतान बताता तो बिना शादी किए बाप बनने
की भर्त्सना जिन्दगी भर झेलता और अभी तो मेरी
शादी भी नहीं हुई थी/ बीस बसंत देखने के बाद भी
क्या मैं अपनी बाकी बची जिन्दगी को जुमलों का
शिकार होते देख पाता/
              लगता है इसीलिए उसके पापा भी प्रभात
के जरिए अपना" मौन निमंत्रण" मुझ तक भिजवा
रहे थे पर खुद वो खुदा का बंदा मेरी देहरी पर एक
बार भी आने में अपनी अकड़ को न छोड़ सका, वह
मेरे पिताजी को अपना मुँह कैसे दिखाता सो वह
छिप कर ही लक्ष्यभेदी तीर चला रहा था/
               पर प्रभात मुझे मनाने और समझाने में जब असफल रहा तो जान्हवी को मेरी रखैल बन कर
रहने की सिफारिश तक कर डाली/ जान्हवी को भी
किसी हाल, लाख गर्दिशों में होते हुए भी, सौतन के
प्रति ईर्ष्याभाव न त्याग सकी/ मैं पहले ही सन्ध्या और
जान्हवी से बता चुका था कि मैं जान्हवी के सिवा किसी से शादी न करूंगा/
              मुझे तो अब संध्या परले दर्जे की चालाक
और अति सावधान लग रही थी, जिसने जान्हवी के
खिलाफ मुझे भड़काया और स्वयं ही वो दो नावों पर
पैर जमाए खड़ी थी/ और उसने अपने पापा का नाम
लेकर मेरे प्रेम को भी अस्वीकार कर दिया, जिस बंधन में बँधने को पहले वो लालायित थी/
                अब घरवालों से मेरा और इंतजार कराना
संभव नहीं ले पा रहा था/ मेरी मँझली बहन की शादी
के लिए लड़के देखे जा रहे थे/ मैं भी उसके हाथ पीले
करवाने को जी जान से लगा हुआ था/
                एक दिन मुझे अचानक ही पता लगा कि
मेरी बहन की शादी के साथ ही मेरी भी शादी तय कर
दी गई है/ मुझे बताया भी नहीं गया था/ दोनों तरफ से
कार्ड भी छपवा कर उनका आदान-प्रदान तक हो चुका था/ बात बस ये थी कि मेरी बहन के साथ- साथ मेरी भी शादी निपटा देने की तैयारी पूरी कर ली गई थी/ मुझसे पूछ भी नहीं गया था/ अंततः जिस दिन
मेरी मझली बहन की बरात आने वाली भी, उसी दिन
मेरा फलदान भी ले लिया गया/
तुलसीदास जी के अनुसार----- मैंने
         हर्ष विषाद कछु मनु न आँका/
               दोनों शादियाँ हुईं/ काफी ताम-झाम भरा वो हफते भर का समय बीता/ क्यूँकि सभी दूर- पास के संबंधियों को बुलाया गया था और पूरा मुहल्ला तो था ही/ साथ ही मेरे ढेरों दोस्त भी था/ कोई भी दोस्त
मेरे निमंत्रण से न छूटा/
                मेरे पिता जी " दहेज- विरोधी" थे/ उन्होंने
मेरी शादी के लिए कोई माँग नहीं की थी पर एक बार
उन्होंने मेरी बहन की शादी के वक्त यह बात कही थी
कि मैं तो दहेज विरोधी हूँ पर किसी लड़के वाले ने उन्हें नहीं बख्शा/ उनकी उस समय की कही हुई बात
अभी तक मेरे सीने में जज्ब है/
                 अपनी पत्नी को विदा करा कर हम लोग वापस हो लिए/ लोकल ही शादी थी/ एक बड़े स्कूल
को हायर किया गया था, उसमें ही सभी मेहमान टिके
हुए थे/ खाने- पीने के लिए कई हलवाई कई दिन से
लगे हुए थे/
   

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