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बिना सोचे-समझे तुमने तर्के- ताल्लुक किया,
आँधियों को इश्क की जानिब मोड़ दिया,
कितना खतरनाक तुम्हारा इरादा हो गया,
मुझे ही नेस्तनाबूँद करने का तुमने सोच लिया/
तुम्हारे प्यार का इशारा, सबके सामने खुला था,
अकेले में तुम्हारे इश्क का प्रपात सूख जाता जाना था,
हिम्मत थीं तो आगे बढ़ आती इजहारे- इल्तफात में,
ऐसे तो तेरी-मेरी मुलाकात का सूरज डूब जाता था/
मैं चाहता था तुमको, बाहों की वरमाला पहनाना,
अपने सीने से लगा के, तुम्हें चाहतों में उलझाना,
सितारे गर्दिश में जरूर थे, मगर इतने भी न थे,
कि सिरे से ही तुम्हारा प्यार की राहों से हट जाना/
मेरी कुछ मजबूरियाँ थीं, तुम्हारे साथ ऐसा न था,
पहले तो तुम्हारे प्यार में कोई बड़ा तमाशा न था,
जाने- गुलबदन तेरा मेरा फसाना ये किस मोड़ पे आया,
मैं तुमसे दूर- दूर रहूँ, पहले तो ये तुम्हारा इरादा न थ/
जाने किस बात का मुझसे बदला निभा रही हो,
जाते-जाते भी मुझसे नजरें फिरा रही हो,
गफलत में भी मुझसे ऐसा करते नहीं बनता,
तुम जान बूझ कर मेरी तरफ से नजरें घुमा रही हो/
मैं भी तुम्हें भूल जाऊँगा, चाहे तो भुलाने की कसम ले लो,
न रोकूँगा कभी तुम्हें राहों में, अपनी कसम ले लो,
इतना खुदगर्ज नहीं मैं कि तुम्हें भुला भी न सकूँ,
लौट केन आऊँगा प्यार की राहों में कसम ले लो/
मुहब्बत की मारी तुम थी, चलो सस्ते में छूट गई,
सू- ए- मजिल की राह के पहले मोड़ से मुड़ गई,
पहले से जानता था, इश्क की ताब सहने की आदत नहीं,
तेरी बेवफाई की एक कहानी फलसफे से जुड़ गई/
जमाना तो मुद्दई रहा है हमेशा से मुहब्बत का,
यह बात तुमने देर से जानी और खुद समझ गई,
हम तुम नदी के किनारों की तरह मिल नहीं सकते,
सोच समझ कर ही तुम बीच भँवर फँस गई/
किताबे- मुहब्बत का सूखा फूल समझ फेंक दिया,
अपने से दूर तुम्हें दूसरे शहर खुद ही भेज दिया,
दिल न भरमा सको अब किसी हाल तुम मेरा,
यही सोच तुमसे मिलना जुलना भी खत्म कर दिया/
बेहतरीन कली थी तू मेरे पास गुलाब की,
परवाह न की कभी मैंने सूरज के आँच की,
जब तेरी मर्जी होती थी, तू मिलने चली आती थी,
माला जपती थी मेरे नाम से, अपने श्वासोच्छवास की/
तुम मजबूर हो गई थी तो मैं तो पहले से मजबूर था,
मगरूर थीं तुम्हीं मुहब्बत में, मैं कोसों तुमसे दूर था,
जाने क्या सोच तुमने झूले की पेंग मुझ तक बढ़ाई थी,
दिल मेरा तो पहले से ही मानिन्द तायरे- मजरूह था/
खड़ी थीं बालियाँ जौ की खेतों में, दाने फूट रहे थे,
हमारे तुम्हारे बारे में लोग जाने क्या- क्या कह रहे थे,
खेतों के बीच आकर तुम मिला करती थी मुझसे,
" रतन" से आके लोग मुहब्बत के अफसाने सुन रहे थे//
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उनको इंतजार का मांग में उनकी सिंदूर मैं भरूँ,
मुझे ये इंतजार सर तो पहले वो खुद झुकायें//
राजीव" रत्नेश"
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