जिन्हें हम भूलना चाहें ( संस्मरण)
किश्त(७)
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जान्हवी के घर से निकल कर मुझे ऐसा प्रतीत
हो रहा था कि जान्हवी ने मुझे प्यार के तिमंजिले पर
चढ़ा कर अपनी दुर्भावनाओं की सीढ़ियों से नीचे धक्का दे दिया है/ इसके पहले मैं बदहवास और
अनियंत्रित हो जाता, संध्या ने मुझे अपने प्यार के
रिश्ते की डोर से मुझे संभाल लिया है/
प्रभात अक्सर मुझसे मिलता रहता था पर
उससे मैंने जान्हवी की चार सौ की भूख के बारे में
बताया तो उसने मुझे बताया'', जान्हवी का प्यार डाली
से टहनी की तरह कभी भी टूट सकता था/ वह मेरे
साथ का सहारा लेकर यूनिवर्सटी में अपनी सहेलियों
पर रोब दिखाना चाहती होगी/' पर मैंने सोचा कि वह
ऐसा करना क्यों चाहती होगी, मेर साथ के एहसास
के साथ का रोब पहले ही पूरी यूनिवर्सिटी पर पड़ चुका
था/ हड़ताल में लगभग वह मेरे साथ ही थी, अखबारों में मेरे नाम के साथ उसका नाम भी निकलता था/ क्या यूनिवर्सिटी के लोग मुझसे अलग भी उसका
अस्तित्व नहीं जानते-समझते होंगे/ दूसरे मेरे समक्ष
उसने बिना किसी लाग-लपेट के अपने का समर्पित
कर दिया था/ वह यह भी जानती थी कि 150
लड़के- लड़कियों के बीच हम दोनों प्यार के मजबूत
रिश्ते से बँधे थे/
उसके अलावा डिप्टिमेंट में दो चाँद चेहरे
और भी थे पर सबपे जान्हवी भारी थी/ वे दोनों पंडित
घरानों की शान थीं, पर जान्हवी मेरी कास्ट को होते हुए भी क्यों किसी से नीचा देखेगी, यह मैं आज तक
नहीं समझ पाया था/ मेरे घर वालों ने कई बार जान्हवी और सन्ध्या को मेरे साथ देखा था, उनको कोई एतराज न था, होता तो मुझसे जरूर कहते, नहीं तो मेरा उनसे मिलना-जुलना ही बंद करा सकते थे/
पर ऐसा कुछ भी तो उनके मन में नहीं था/ भ्रम में तो
केवल जान्हवी के पापा ही थे, उनकी माँ भी मुझे पसंद
ही करती थी/
मैं दो नावों पर एक साथ पैर नहीं रख सकता था/ जान्हवी तो कटे डाल की पंछी हो ही गई
थी/ मैं संध्या को किसी तरह से भी कोई हानि पहुँचाने
के पक्ष में बिलकुल भी नहीं था/ जान्हवी ने अपने दिलो-दिमाग पर से मेरे अधिकार को नकार दिया था
और सारा अख्तयार और दारोमदार अपने पापा को
दे दिया था/ एक बात जब मैं शांत मन से विचार
करता हूँ तो बिजली की तरह मेरे मस्तिष्क में कौंधती
है कि जान्हवी ने ऐसा क्या सोच के किया क्या वह तंगदिल या तंगहाल थी, और हर तरह से अपने पापा
पर ही निर्भर थी तथा उसकी कोई स्टाइपेंड 120 रू०
या पाकेट खर्च के लिए पैसे भी उसके पास नहीं थे/
उसकी बात का यही एक ठोस कारण मुझे लगा/ रहा
सवाल प्रभात का तो उसे मैं जान्हवी की तरह ही
अविश्वसनीय समझने लगा था/ मैं यह बात जानता
था कि जो बात मैं जान्हवी या प्रभात से नहीं कह
सकता था, उसे सन्ध्या से बताने में मुझे कोई संकोच
नहीं था/
इससे पाठक गण यह न सोचें कि मैं अब
सन्ध्या से प्रणय-निवेदन करने की दिशा में अग्रसर होने वाला हूँ क्योंकि यहाँ परिस्थितियाँ विपरीत थीं/
बिना अपनी मर्जी उजागर किए बिना दोनों की मंडी
में नीलामी तय थी और उनमें किसी की बोली लगाना
तो दूर खड़े होने की भी हैसियत मेरी नहीं थी/
मैं यह समझ गया था क जान्हवी के लिए
यूज एंड थ्रो वाला मात्र एक खिलौना था और संध्या
के लिए शतरंज की बिसात उसने बिछा थी/ अब दोनों
के बीच शह और मात का खेल चल रहा था/ जान्हवी
के लिए मेरे मन में संशय तो संध्या के लिए मोह पनप
रहा था/
दूसरी बात संध्या जान्हवी से चार-पाँच साल
छोटी थी/ जान्हवी के बाद ही उसकी शादी का नंबर
आता था/ मैं उसके साथ ऐसा कोई कदम नहीं उठा
सकता था/ वरना उसका बाप मुझ पर कानूनी कारवाई करवा सकता था और तब जान्हवी भी मुझे
न छोड़ती/ उसके पास मेरे लेटर्स और कविताएँ थीं/
मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि उससे कभी मेरा अलगाव भी हो सकता था/
यूनिवर्सिटी में यही चर्चा आम थी कि
राजीव और जान्हवी के बीच ऐसा क्या हुआ कि जान्हवी अब तन्हां नजर आती है/ मेरे बारे में वह
अपनी सहेलियों से शायद यही कहती होगी कि
पापा को पसंद नहीं था/ वह शायद मेरे नाम के सहारे
मशहूर होना चाहती थी पर मेरी मंशा उसे सिर्फ अपनी
लाइफ- पार्टनर बनाने की थी/ हम दोनों की सोच में
यही विरोधाभास था/ यूनिवर्सटी जाती तो मेरे दोस्त
और उसकी सहेलियाँ उसका मजाक बनाते कि
राजीव को कहाँ छोड़ आई/ सबका सुनती और
अनसुना करते- करते उसने भी यूनिवर्सिटी जाना
बंद कर दिया/
इतना सब जान-समझ कर भी मैं
जान्हवी से दूरी बनाने की कोशिश करने लगा/ संध्या
से मिलने की लालसा तीव्र हो उठी पर मैं इतना टूट
चुका था कि उससे मिलने के लिए कोई बहाना न
तलाश सका/ कीडगंज जाना मैंने स्वयं छोड़ा था
और बिना किसी प्रबल कारण के वहाँ जाने वाला नहीं
था/ मेरे फाइनल ईयर के सारे नोट्स जान्हवी के पास
ही थे/ उससे माँगने में अपनी हेठी महसूस कर रहा था/ मैं नहीं गया तो वो भी मुझसे किसी भी बहाने से
मिलने तो नहीं आई/
प्रभात बीच में मुझसे मिलने आया था पर वह भी मेरी कुछ मदद नहीं कर सका/ उसका भी
बी०ए० का फाइनल ईयर था/
जब कभी मैं जान्हवी की फोटो देखता,
उसी में तल्लीन होकर सोचने लगता कि इतनी मासूम
दिखने वाली लड़की इतनी सख्त जां कैसे हो सकती
है/ उसका भोलापन और सादगी ही तो मुझे मार गई
थी/ मैंने उससे अपनी कोई बात नहीं छिपाई और मुझसे वह अपने दिल की हर बात छिपाने में कामयाब
हो गई, जबकि मैं फेस रीडिंग करना बखूबी जानता था/
अब उसे मैं बेवफा करार देते हुए कवितायें लिखने लगा--- फिराक से ज्यादा लज्जत
विसाले यार में नहीं/ मेरी कसौटियों पर यह लाइन
बिल्कुल खरी उतरती है/ दोस्तों के साथ साहित्यिक
गोष्ठियों में भाग लेने जाने लगा/ इस तरह मेरा
साहित्यिक सफर की शुरुआत हुई---
जाहिर है सफर में कड़ी धूप भी होगी
तुम तो सर पे आँचल का सायबाँ करना//
इस सफर को विस्तार न देते हुए मैं
मूल संस्मरण की ओर लौटता हूँ/
जान्हवी से मेरा मनमुटाव बढ़ता ही
जा रहा था, न वह झुकने को तत्पर थी, न मैं ही अपने
उसूलों से समझौता करने को तैय्यार था/
दूसरे वर्ष का इम्तहान सर पे था पर
पढ़ाई से मेरा मन उचट गया था/ मैं एडमिट कार्ड लेने
भी नहीं गया/ इम्तहान मैंने अगले वर्ष के भरोसे छोड़
दिया/ दूसरा साल मेरे लिए अजाब बन के व्यतीत हुआ/
एक दिन जब मैं अपने घर ऊपर के
कमरे में बैठा था/ मेरी छोटी बहन ज्योति आई और
बताया कि जान्हवी और उसकी माँ आई है/ मैंने उन्हें
ऊपर ही बुलवाया/ जाड़े के मौसम के सुबह ग्यारह
बजे की धूप छत पर बिखरी पड़ी थी/ बड़ी छत पर उन लोगों को फोल्डिंग पर बिठाया गया और वहीं
बगल में लगी कुर्सी पर मैं बैठ गया/ उन्हें चाय पेश
की गई/ जान्हवी की माँ ने बताया कि इम्तहान के
बाद यूनिवर्सिटी में मार्कशीट दी जा रही थी/ जान्हवी
अपना एडमिट कार्ड मेरी ओर बढ़ा कर बोली---
मेरी मार्कशीट ला दीजिएगा/ मुझे लगा कि वह
यूनिवर्सिटी जाने से बचना चाह रही थी/ मुझे एहसास
हुआ कि कहीं उसकी सहेलियों ने उसका साथ तो नहीं
छोड़ दिया था/ पहले तो मैं यही समझा था कि जान्हवी अपने बाप की रजामंदी लेकर मुझसे मिलने
आई होगी, क्योंकि उसकी माँ पहली बार मेरे घर पर
आई थीं/ मुझे अंदाज हो गया कि उसका बाप अपने
को अभी तक लड़के वाला ही समझ रहा था, उसके
गुरुर में कोई कमी नहीं आई थी/ पर ऐसा कुछ भी
नहीं हुआ और वे दोनों वापस भी चले गए/ जाते जाते
मार्कशीट घर पर पहुंचाने की ताकीद भी कर गए/
मैं समझ नहीं पा रहा था कि जान्हवी के पापा के साथ
साथ उसकी माँ को क्या हुआ है?
दूसरे दिन मैं यूनिवर्सिटी गया और अपने
दोस्तों के साथ मेल मुलाकात की/ दोस्तों ने जान्हवी
का हाल चाल पूछा तो मैंने बता दिया कि न तो कभी जान्हवी ने मेरे सामने शादी करने का प्रस्ताव रखा और
न मैंने ही कभी उससे शादी करने को कहा, हम दोनों
विरोधाभास के कठपुतले हैं, जिसकी डोरें उसके पापा
की उंगलियों के बीच है, उससे वह सबको नचाने का
उद्यम करते हैं, पर हासिल कुछ नहीं होता/
जान्हवी की मार्कशीट लेकर उसे मैं उसके
घर गया/' रायल डिवीजन' में वह पास वह हुई थी और उसकी" यूनिवर्सिटी लाइफ" उस दिन से उसके
घर वालों के द्वारा समाप्त कर दी गई थी, कारण मुझे
ज्ञात नहीं था/
उस दिन जान्हवी ने मुझे चाय पीने के लिए रोका और चाय और नमकीन लाई/ पहली बार
उसने मेरे लिए चाय बनाई भी थी और बिल्कुल मुफत
पिलाई भी थी/ हर्षातिरेक से मैंने उसे पहले की तरह
ही चूम लिया/ अब रोमांस तो क्या वह मेरे एक स्पर्श
के लिए भी तरस रही थी/
उसने बताया कि पापा ने उसकी शादी
के लिए लड़का ढूँढना शुरू कर दिया है/ मैंने कहा,
" मुझसे अच्छा हो तभी करना, नहीं तो लाइन में मैं
तो लगा ही हूँ/ " उसने मुस्करा कर कहा," जलन
हो रही है?' मैंने कहा,' स्वाभाविक है/' वह मेरा
हाथ पकड़ कर बरामदे के दरवाजे तक छोड़ने आई
और फिर आने को कह कर वापस लौट गई/ संध्या
को मेरी बेताब नजर सरगर्मी से तलाश रही थी पर
वह कहीं मुझे नजर नहीं आई/
प्रभात मुझसे अक्सर मिलता रहता था/
मैंने उससे बता दिया था कि नौकरी मैंने छोड़ दी थी/ छोटा भाई विकास अब मेरे यहाँ नहीं आता था, क्योंकि उसे खिड़की पर रेजगारी या पैसे अब पड़े नहीं मिलते थे, अब वह मेरे साथ घूमने जाने के लिए भी
नहीं आता था क्योंकि मेरी जेब में अब फालतू के पैसे नहीं रहते थे/ सब कुछ असामान्य सा हो गया था, फिर भी मैंने लिखना नहीं छोड़ा/ यह सबकुछ बिना
पारितोषिक था/ फ्री फंड का पास टाइम था/ भविष्य
का कोई निश्चित कार्यक्रम नहीं था/
मुझे कहीं से खबर लग गई कि जान्हवी
की शादी तै हो गई है/

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