Tuesday, December 23, 2025

जिन्हें हम भूलना चाहें --- संस्मरण किश्त (9 )

जिन्हें हम भूलना चाहें --- संस्मरण
         किश्त (9 )
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जहाँ तक मैं समझ पा रहा हूँ कि मेरी जिन्दगी में बार बार जान्हवी के अतिक्रमण से पाठक गण भी अब ऊब रहे हैं पर प्यार में दूसरा मोड़ होने पर भी मैं उस
ओर सिर्फ मुड़ कर और आगे निकल जाने के प्रयास में मंजिल भी कहीं पीछे ही छोड़ आया हूँ/ मेरे प्यार के
ग्रामोफोन की सूई भी रिकार्ड पर एक ही जगह जाकर
फंस गई है/ और गुलाब की कॅटीली झाड़ी में उलझ
कर, अपने अस्तित्व को तार-तार करने पर मैं क्यूँ
उतारु था पर अब तो यह चुभन कसक बन कर संध्या
के वियोग की खुशबू से माहेत्तर होने को उत्कंठित थी/
और अब मैं संध्या से मिल पाने के लिए किसी शुभ
मौके की तलाश में था/ उससे एक बार बात करने और उसके फैसले का सुनने को सुनने की उत्सुकता
दिल में जड़ें जमाए उसके इंतजार में तन्मय हो रही थी/ उसकी जिन्दगी में जबरन प्रवेश की अनुमति
के लिए मेरा दिल गवाही नहीं दे रहा था/ संध्या को
अपनी साँसों में महसूस तो करता था, पर उसे अपनी
बनाने के लिए मजबूर नहीं कर सकता था/ जान्हवी ने
तो अपने परिवार की इज्जत से खिलवाड़ किया ही था, अब संध्या सचेत थी और मेरी जरा सी लापरवाही मेरे उसके प्यार का आशियाना उजाड़ भी सकती थी/
                जान्हवी के पेट से होने के कारण स्वयं
को क्षत- विक्षत सा मैं महसूस कर रहा था कि वह किस निर्दोष को पाल पोस रही थी या इसमें उसका
कोई दोष नहीं था/
                मैंने उसे भुला देने और फिर उससे न मिलने की सोची/ ज्यादा दिन नहीं बीते होंगे कि प्रभात एक दिन बिना किसी पूर्वसूचना के मेरे आफिस
आ पहुँचा और बताया कि जान्हवी बाहर मेरा इंतजार
कर रही है और वह स्वयं निरंजन पैलेस में पिक्चर के
12 से 3 के तीन टिकट ले आया है/
                  मैंने उससे साफ- साफ कहा कि मैं आफिस बिना कोई ठोस कारण के इतनी देर तक छोड़ नहीं सकता/ मैं समझ नहीं पाया कि ऐसी कौन
सी आफत आ पड़ी है कि आज जान्हवी मेरे साथ
पिक्चर का प्रोग्राम बना कर आई है और सपोर्ट में अपने भाई प्रभात को ले आई है/
                   मैंने सोचा कि जाऊँ तो पिता जी से बता कर जाऊँ/ फिर सोचा कि अभी तक जान्हवी
के पापा और मम्मी अब तक मुझ तक नहीं पहुँचे थे/
और न ही मुझसे मुलाकात की गरज ही उनकी दिखाई पड़ रही थी, जब कि जान्हवी की जिन्दगी
बरबादी की कगार पे खड़ी थी/ बस प्रभात ही घर का
गार्जियन बना आगे-आगे कूद रहा था तथा वह न ही
किसी का प्रतिनिधत्व ही कर रहा था/ लगता था सारा
मसला वह अकेले ही सुलट लेगा/
                     मैंने पिता जी से तब तक कुछ न बताने की सोची, जब तक पिकचर और स्पष्ट नहीं हो
जाती/
                      बहरहाल मैं उसके साथ आफिस से
बाहर निकला और जान्हवी को साथ लेकर पैदल
' निरंजन टाकीज' जा पहुँचा/ कौन सी पिक्चर थी,
यह तो स्मरण नहीं है पर इतना अवश्य याद है, कि
पिक्चर के शुरू होने पर पाया कि जान्हवी मेरे और
प्रभात के बीच बैठी हुई थी/ मैं खामोशी से पिकचर
खत्म होने का इंतजार करने लगा/ प्रभात क्या जानना
या समझना चाहता था, शायद इसी बात को ठोक बजा रहा था कि मेरा और जान्हवी का प्यार अबदल
है और उसमें कोई व्यवधान नहीं उपस्थित हुआ है/
                      पिक्चर समाप्त होने पर वह सामने
बहुचर्चित दूसरी पटरी पर स्थित रेस्टोरेन्ट कम होटल
' गिन्जा' में ले गया/ प्रभात ने नाश्ता मंगाया/ उन लोगों की तरफ से क्या बातें की गईं, मुझे याद तो नहीं
पर अपना कहा मुझे याद है/ मैंने कहा था,' गर्भ का 
झंझट वो लोग खत्म करें, तभी मैं कुछ आगे सोच
सकता हूँ/ मेरा अपना बच्चा होता तो अब तक मैं
आकाश पाताल एक कर चुका होता/ चाहे उसके पापा का गुरुर ही मेरा रास्ता रोक कर खड़ा होता/ मैं
जान्हवी की शादी अन्यत्र नहीं होने दे सकता था/'
                        वेटर 12 रु० का बिल लाया था, जो
मैंने ट्रे में रख दिया पर मुझे यह देख कर महान आश्चर्य
हुआ कि जान्हवी ने वे पैसे उठा कर अपने पर्स में रख
लिया, लिहाजा प्रभात ने उसका भुगतान किया/ गर्भ
गिरवाने की बात पर वह राजी हो गया था/
                        मैं आफिस लौट आया था तथा सोचने लगा कि प्रभात के पास पिक्चर का और नाश्ते
का पैसा कहाँ से आया, कहीं वह अप्रत्यक्ष रूप से
उसके मम्मी-पापा का सपोर्ट तो नहीं था/ वह तो बेकार था और अपनी एक किताब खरीदने तक के
लिए उसे अपनी माँ के सामने नाक रगड़नी पड़ती थी/
                        उसके पापा की अकड़ समाप्त होने
का नाम नहीं ले रही थी और उसकी माँ भी खुल कर
सामने नहीं आ रही थी/ मैंने यह बात कही थी जब
अनचाहे गर्भ मुक्ति पाने के हर बड़े गवरमिंट हास्पीटल
में अलग से ' पोस्टपार्टम' विभाग था और तब शायद
किसी की अनुमति भी नहीं लेनी पड़ती थी/
                          इस समय संध्या एक कौतूहल बन
कर मेरे दिमाग में कौंधी/ क्या वह भी जान्हवी को मेरी
जिन्दगी में धकेलने के लिए प्रयत्नशील थी या उसकी
कुछ अलग सोच थी?
                           बहरहाल समय तीव गति से गुजरने लगा/
                          यह खबर पता नहीं कैसे मेरी माता
जी तक पहुँची/ जान्हवी के यहाँ से तो कोई आया नहीं था, जहाँ तक मुझे खबर थी/ पर जिसने भी खबर दी होगी, वह उसके पेट ते होने की बात से
अनभिज्ञ था/ नहीं तो मेरी माता जी के प्रश्नों की बौछार मुझ पर होती और साफ- साफ अपनी बात
उन्हें समझानी होती/ जान्हवी के और मेरा मुहल्ला
अगल-बगल था/ मैंने माता जी से कुछ न पूछा या कहा पर उन्हें मैंने मेरी बहनों से कहते सुना कि शादी-
शुदा के साथ वह मेरी शादी कभी न करेंगी/ अगर वो
लोग चाहें तो वे संध्या से मेरी शादी कर सकती हैं/
                            बच्चा अभी तक जान्हवी के पेट
मे ही था या-----?
                             पर प्रभात ने और जान्हवी ने मेरी बात एक कान से सुन कर दूसरी से बाहर निकाल
दी और जान्हवी अब भी मुझसे अपने को अपनाने के लिए जोर दे रही थी/ वह शायद सोच रही थी कि उसकी उच्छृंखलता के बावजूद, उसके रूप-सौंदर्य का जादू अब भी मेरे सर चढ़ कर बोलेगा/
                            अगर मेरी भावना को वो लोग
आहत न करते तो शायद मैं एक बार फिर उनके जाल
में फँसने को मजबूर हो जाता/
                             एक बार फिर प्रभात मेरे पास
मेरे कमरे में आया और मुझसे जान्हवी के बच्चे को बाप की जगह मेरा नाम देने की सिफारिश करने लगा/ मैंने साफ इंकार कर दिया और संध्या से मिल
पाने का एक सुनहरा मौका गँवा दिया/ पता नहीं उन लोगों ने कहाँ- कहाँ बच्चे की पिता की जगह मेरा नाम
लिखवाया होगा/ मुझसे तो बताया गया कि उसके स्कूल में दाखिले के लिए जरूरी था, जिसमें उन लोगों
ने उसके बाप का ही नाम लिखवाया है/ मुझे पूरी तरह
स्मरण है कि कहीं भी मैंने रिक्की का बाप बनकर कभी कोई साइन नहीं किया/
                             मैंने उसकी बात का सच जानने
की कभी कोशिश नहीं की/ अब मैं समझता था कि वह अब मुझसे झूठ भी बोलने लगा है/
                              मुझे उसने घर आने और जान्हवी तथा बच्चे से मिल जाने का आग्रह किया/ मेरे
मन में संध्या का आकर्षण तीव्र लालसा के रूप में
परिणित हो चुका था और मैंने उसे,' कभी आऊँगा'
कह कर विदा किया/
                              एक रोज मैं संध्या से मुलाकात
की अभिलाषा से त्रस्त होकर कीडगंज उसकी हवेली
पर गया/ जहाँ जान्हवी ने अपने ही कमरे में मुझे बैठाया/ मिलने-जुलने वालों के लिए शायद वही कमरा मेहमान खाने की तरह प्रयोग किया जाता था/
                             मैं पूर्ववत चारपाई पर खिड़की
की टेक लिए बैठा था तो जान्हवी मुझसे चाय के लिए
पूछने आई/ मैंने इन्कार कर दिया और सीधे उसकी
ओर देखते हुए संध्या के बारे में पूछा/ वह वही दीवार
के सहारे खड़ी होकर मुझसे माफी माँगने और अपनी
गल्ती मानने लगी और अपने को सहारा देने की बात
कहने लगी/
                            मैंने कुछ देर पश्चात यह सोच कर
कि वह बिना मेरी मर्जी जाने अपने से वहाँ से जाएगी
नहीं, कहना शुरू किया," यह तभी संभव था जब तुमने और प्रभात ने मेरी बात को अनसुना न कर दिया होता/ " मैने आगे पूछा,' तुम्हारे पापा का अब क्या कहना है, मेरे बारे में उनकी बदगुमानी दूर हुई अथवा अभी भी वह मुझसे वैर-भाव रखते हैं'/ इस
पर वह निरुत्तर थी/" अपनी मम्मी-पापा को मेरे घर
वालों से मिलने को कहो/ अब मेरे हाथ में बात नहीं
रही/ मैं तुम्हारी माँग में दस दफे फिर से सिन्दूर डालता, अगर व्यवधान बन कर तुम्हारा बेटा तुम्हारे
साथ न होता" मैंने प्रश्नसूचक द्वष्टि से उसे देखा और
पूछा," तुम्हारे बारे में संध्या का क्या विचार है, उसने
तुम्हें क्या कुछ नहीं कहा?"
                     वह बोली," आप संध्या से खुद ही बात कर लीजिएगा"/ वह मुझे वहीं बैठा छोड़ कर चली गई और मैं बेतहाशा संध्या का इंतजार करने लगा/
                     कुछ देर बाद संध्या चाय लेकर आई/
और उसी तथाकथित कुर्सी पर बैठ कर मुझे चाय
पकड़ाते हुए बोली," आपको ज्यादा इंतजार तो नहीं
करना पड़ा/ जान्हवी ने कहा कि आप मुझी से मिलना
चाहते हैं, मैंने उससे पूछा," भाई साहब को फिर तुमने
अकेला छोड़ दिया, कम से कम मेरे आने तक तो उनके पास बैठती, तुमसे ज्यादा कहीं वो अपने को अकेला महसूस करते होंगे"/ मैंने कहा,' छोड़ो घिसी-
पिटी बातें," क्या तुम भी मुझसे मिलना नहीं चाहती थी/ इतने दिनों में तुमने एक बार किसी से भी मेरे बारे
में नहीं पूछा/" संध्या ने जो जवाब दिया, वह मेरे लिए
अप्रत्याशित था, वह बोली," मैंने सोचा था कि कागजी फूलों की खूबसूरती से एक दिन ऊब कर, खुद ही खुशबू के बारे में भी सोचेंगे"/ मैं सहसा कोई
उत्तर न दे पाया पर कहा," जान्हवी की शादी के बाद
ही तुम्हारा इरादा जानने के लिए उत्सुक था/ पर तुम्हारी समीपता आज ही मुझे उपलब्ध हुई है/ मैं तुमसे बातें करने के लिए उत्सुक था, पर अवसर मुझे
आज मिल सका है/ "        


जिन्हें हम भूलना चाहें( संस्मरण)
      नवीं किश्त का शेशांश
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" क्या तुम जान्हवी की शादी की पहल से अचंभित
नहीं थी? क्या वह किसी के दबाव में थी कि उसने मेरा इंतजार भी छोड़ दिया?" संध्या ने मुझे बताया,
" मैंने आपसे पहले भी कहा था कि आपसे अच्छा
उसे मिलेगा तो स्वयं ही आपका साथ छोड़ देगी/
मैंने आपसे उसके विकल्प की बात कही थी, तो आपने कहा था कि वह जान्हवी के बिना शादी ही
नहीं करेंगे/" मैंने उससे आगे पूछा," क्या विकल्प का
तुम्हारा समर्थन अपने लिए था/ मैं समझते हुए भी
अनजान बना रहा, मुझे सपने में भी जान्हवी के बदल
जाने का अनुमान नहीं था/ जान्हवी ने मुझे तुम्हारे
खिलाफ भड़काया था, यह कह कर कि तुम्हारा ब्वाय-
फ्रेंड है और तुम्हारी शादी उसी से तय है/ मुझे कुछ
सोचने का मौका ही नहीं मिला, मैं अपनी 120 रू0
की आय वाली बात से ही क्षुब्ध था और यह सोच कर
ही तुमसे किनारा किया कि तुम्हारे पापा 120 रू०
वाले से न तो जान्हवी की शादी करेंगे और न तुम्हारी
ही होने देंगे/" फिर बात को आगे बढ़ाते हुए बोली,
" मैंने आपका लेटर नाहक तो छिपाया नहीं था/ मुझसे आपने मेरा मंतव्य भी नहीं पूछा और न ही आपने लेटर का कोई जवाब मांगा था, फिर मैं किस
तरह से अपनी बात आगे बढ़ाती? आप जान्हवी की
चिन्ता में घुले जा रहे थे और मैं जबरदस्ती आपकी
फिक्र की मोहताज होकर रह गई थी/ आपके लिए
तो मैं सारी दुनिया की दौलत को ठोकर मार देती"/
मैं स्तब्ध हो कर बैठा रहा और उसकी बात सुनता
रहा और सोचने लगा कि सचमुच वह इंतजार करती,
कम से कम नौकरी तक के लिए ही या जान्हवी की
तरह चारा देख कर मुँह मार देती/ पर अब मेरे पास
अच्छी खासी परमानेन्ट नौकरी थी, अब कोई भी
बड़े बड़े वादे कर सकता था, जान्हवी तो कम से कम
इस बात पे आमादा थी ही/
                  मैंने पूछा," क्या जान्हवी की शादी में तुम्हारे पापा का पैसा नहीं लगा?" वह बोली," बिलकुल नहीं, पापा जान्हवी के नाम से 5000 का फिक्स डिपाजिट करवा के फारिग हो गए/ वह ऐसी ही शादी करने के पक्ष में थे कि लड़का कमाऊ भी हो और फ्री- फंड में शादी भी हो जाए/ जान्हवी की मर्जी
भी जाननी जरूरी नहीं समझी गई/ रविन्द्र की तनख्वाह आपकी आय पर भारी पड़ी"/ मैंने स्पष्ट किया," 120 रु० की वजह से ही मैं मात खा गया पर
जान्हवी का हसबैंड मुझसे कितना बड़ा और सीनियर
होगा, यह बात भी तुम्हारे पापा को नहीं सूझी और यह शादी करके जान्हवी क्या खुश हो गई? उसकी
जिन्दगी का बर्बादी का जिम्मेदार कौन है?"
                  सन्ध्या आगे बोली," मेरी भी शादी पापा
की ही तै की हुई है/ पहले तो दिनेश ने फट से हामी
भर दी पर अब नजाकत है कि अपनी चारों बहनों की
शादी करने के बाद अपनी शादी के बारे में सोचेंगे/
पापा ने एक तरह से मुझे भी घर ही बिठा रखा है/ कब उसकी बहनों की शादी होगी और कब मेरी मांग
सजेगी/ मैं तो इंतजार में ही बूढ़ी हो जाऊँगी"/
                   मैं बोला," जैसी तुम्हारी मर्जी, मैं तुम्हारा साथ ही दूँगा/"
                   मैंने इसी संस्मरण की किसी किश्त में
लिखा है कि जो बात मैं जान्हवी या किसी दोस्त से
नहीं कह सकता था, वह मैं संध्या से बेखट के कह
सकता था/
                    संध्या ने मुझसे पूछा था," आपकी और जान्हवी के बीच क्या बात हुई थी कि वह आपको बदनाम करने पर तुली है/ वह रविन्द्र से
आपके बारे में सब कुछ बता चुकी है और यह भी कह
दिया है कि उसके पीछे अच्छे- अच्छे पड़े थे, पर जाने
कैसे वह एक बंदर के पल्ले बाँध दी गई है? वह 
आपके आफिस के बारे में भी जानता है और इसी
बात का ताना भी देता है कि अभी भी वह आपसे
मिलने, पिक्चर देखने के बहाने वहाँ जाती है और 
रविन्द्र ने यहाँ तक कह दिया है कि जान्हवी के गर्भ
में पलने वाला बच्चा भी उसका नहीं है, क्यूंकि वह
शुरू से ही इम्पोटेन्ट है, उसका बच्चा होने का सवाल
ही नहीं पैदा होता"/
                     उसने मुझसे जानना चाहा कि रिक्की
किसकी वसीयत का हिस्सा है? तो मैंने साफ- साफ
उससे कहा," मेरे और जान्हवी के बीच सभी कुछ तो
हुआ पर कभी मैंने कभी उसके अधोवस्त्र नहीं हटाए,
सिर्फ यही सोच कर कि सिन्दूर- दान के बाद ही
सुहागरात आती है/ मैं उस दिन का बेसब्री से इंतजार
कर रहा था, जब जान्हवी अपने मम्मी-पापा को मनाने में सफल हो जाएगी पर अब मैं महसूस कर रहा हूँ कि उसने इसके लिए कोशिश भी नहीं की और
800 रू० तनख्वाह सुन कर एक चिड़ीमार पर
लट्टू हो गई/"
                   मैंने फिर कहा," मेरे मना करने के बावजूद उसने रिक्की को पैदा किया और मुझे लगता
है कि वह बदनामी से बचने के लिए रविन्द्र के बच्चे को मेरे सर मढ़ने के लिए सारी कहानी गढ़ रही है/
इसके बावजूद वह मुझसे अपने को सहारा देने की
बात कह रही है/ शायद उसे मेरी तनख्वाह का पता
लग चुका है"/
                  मैने सन्ध्या से कहा कि यही बात मैंने
प्रभात से पूछी थी कि बच्चे के बारे में खीन्द्र का क्या
नजरिया है तो उसने मुझे झूठ बोला कि बच्चा वह
मेरा भी नहीं कहता है लेकिन खुद को नपुंसक भी
बताता है/ मेरे सामने भी यही प्रश्न है कि हवा में
तो बच्चा आ नहीं गया, बिना आग के धुँआ निकल
ही नहीं सकता/ बहरहाल मैं मुतमईन हूँ कि बच्चा
मेरा तो नहीं है, भले चाहे किसी का हो/
                   सन्ध्या ने कहा," मुझे इस बात का पता
नहीं था/ रिक्की को लेकर मैं स्वयं असमंजस में थी/
यदि अब मैं जान्हवी से पूछती हूँ तो वह मुझसे भी झूठ बोलेगी/"
                   मैं सोच रहा था क्या उन दिनों DNA
Test नहीं होते थे या और कोई तरीका उस समय
तक ईजाद नहीं हो सका था, जो इतनी छोटी सी बात
का बतंगड़ बनाया जा रहा था/
                    मैंने उससे यह भी बता दिया कि मेरी
माँ जान्हवी से मेरी शादी की बात सोच भी नहीं सकती हैं, यदि तुम्हारे घर के लोग मुझसे तुम्हारा रिश्ता करने को तैय्यार हों, तो वह तुम्हें अपने घर की
लक्ष्मी बनाने के लिए सहर्ष तैय्यार हैं/ रिक्की की बात
उन्हें नहीं पता है शायद वरना वह मेरा तुम लोगों से
मिलने पर कड़ा प्रतिबंध लगा देतीं/
                        मैंने सन्ध्या की अपनी ओर से दिल
साफ करने को कहा और कहा," तुम्हारे विचार अपने
बारे में जानने के पश्चात ही मैं तुम्हें प्रपोज करना चाहता हूँ/ मेरे साथ मेरे घर वालों को भी तुम्हारा
इंतजार है, फैसला तुम्हारे हाथ में है/
                        वह कुछ देर के लिए गंभीर हो गई
फिर सचेष्ट होकर बोली" जब जान्हवी ने पापा का
विरोध भी नहीं किया और अपनी हालत ऐसी बना ली/ तो फिर पापा की मर्जी के खिलाफ जाते जाने या उनसे विद्रोह करना मेरे लिए इतना आसान नहीं होगा,
जितना आप सोचते हैं/ मैं अपने भविष्य के लिए भी
मम्मी-पापा पर ही निर्भर हूँ और यह और भी दुख-
दायक बात होगी कि अपने स्वार्थ के लिए आपको
मैं भी प्रपोज करूँ/ हाँलाकि दिनेश मुझसे और पापा
से इंतजार करवा रहा है, देखना है पापा कब तक
इंतजार करते हैं अन्यथा वह मुझे भी जान्हवी की
तरह किसी के भी पल्ले से बाँध देंगे/"
                   संध्या ने एक तरह से अपना इकरार-
नामा दे दिया था पर मैंने इसलिए भी उस पर दबाव
नहीं बनाया कि उनके घर की इज्जत, जान्हवी को
लेकर काफी उछल चुकी है, पर उसके घर कोई भी
स्थिति संभालने के लिए उत्सुक नजर नहीं आया, सिवा प्रभात के/ वही मेरे पास आता और एक ही
प्रश्न बार- बार पूछता कि मैं क्या चाहता हूँ? क्या मैं
जान्हवी को हमेशा के लिए खो देना चाहता हूँ? पर
मैंने भी स्पष्ट कर दिया कि रिक्की के आगमन ने मुझे
सचेत कर दिया है कि तुम लोगों ने या तो मेरी बात को
समझा नहीं या जान-बूझ कर तुम लोगों ने मेरी बात
को तवज्जो नहीं दिया/ मेरे लिए हर रास्ता तुमने खुद बंद किया और अब मुझसे पूछ कर मुझे ही गलत
साबित करने पर लगे हो/ वह कहने लगा," तुम लोगों ने घर की इज्जत की भी परवाह नहीं की/" पर मैं बोला," तुम्हारे घर की इज्जत तो तुम्हारे घर वालों ने ही नहीं की, फिर मैं इसमें क्या कर सकता हूँ"
                     उसने कहा तो क्या जान्हवी ऐसे ही बैठी रहेगी," उसने तलाक का मुकदमा खिन्दु पर कर
दिया है और हर्जे- खर्चे का अपने को हकदार माना है"/ मैंने कहा," जो तुम लोगों की खोपड़ी में समाए,
वही बात करो/ मैंने तुमसे गर्भ गिरवाने को कहा था
और तुमने हामी भी भरी थी/ उसके बाद मैंने जान्हवी
से शादीकी बात घर में चलाने को कही थी पर तुम 
लोगों ने मुझे बेवकूफ समझ रखा है, किसी भी दूसरे
के बच्चे को मैं नहीं पाल सकता हूँ/ तुम लोगों ने मुझे,
यहाँ तक कि स्वयं जान्हवी ने भी मुझे धोखा दिया है/
मैं अब जान्हवी के पचड़े में नहीं पड़ने वाला/ तुम्हें
ही जान्हवी की बड़ी फिकर है, इतनी तो उसके माँ-
बाप को भी नहीं/ अब अगर मेरे पास आना तो जान्हवी की कोई बात मुझसे न करना" यह कह कर
मैंने उसे जाने को कहा और स्वयं नींद लाने की कोशिश करने लगा ताकि सुबह रिफ्रेश हो कर दोस्तों
से मिलने जा सकूँ//

  

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ROM ROM SE KARUNAMAY, ADHARO PE MRIDU HAAS LIYE, VAANI SE JISKI BAHTI NIRJHARI, SAMARPIT "RATAN" K PRAAN USEY !!!