Monday, February 17, 2025

KYA CHEESE TUM HO.

 TERA  ROOP-SINGAR  HAI  KUCH  AISE,

UTRA HO JHEEL  MEN  CHAND  JAISE 

नाक कड़ी-कड़ी ,आँखें हिरनी की ,सरापा हुस्ने -मुज़्ज़सिम तुम हो,

हमेशा से मेरे दिल में मकीं हो ,क्या जानो क्या  चीज़  तुम  हो। 

देर करोगी मुलाकात होगी नहीं ,खुदा भी हाथ से जायेगा ,

संमंदर की लहार हो ,मेरे दिल की रानी हो ,क्या .चीज़ तुम हो। 

आफत में है जान ,तेरे दीवानों से अपनी जान बचानी है ,

कैसे समझाऊँ तुमको ,तुम्हीं बज्म की शान ,क्या चीज़ तुम हो। 

तू मुझसे दूर चली जाएगी ,तो खुदा मेरे करीब आ जायेगा ,

कान में मेरे धीमे से पूछेगा ,वाकई क्या चीज़ तुम हो। 

गरचे हमारी मोह्हबत का ,किसी से कोई वास्ता ना रहा ,

तुम्हें मनाने को कौन अब आएगा ,तुम बताओ क्या चीज़ तुम हो। 

आई जो कहीं तुम छत पर ,चाँद समझ के ,चढ़ आयेगा छत पे कोई ,

हाले -दिल समझाने को बस लिखता हूँ ,क्या चीज़ तुम हो। 

कहना है ज्यादा न उलझो ,जमाना मुद्दई हो न जाये तुम्हारा ,

तुम्हें देख ले रकीब ,तो मेरा दुश्मन बने ,क्या चीज़ तुम हो। 

मैं खुद निपटूँगा उससे ,आईने में देखो खुद को ,क्या चीज़ तुम हो ,

'रतन ' को तुमसे ज्यादा अज़ीज़ कोई नहीं ,क्या चीज़ तुम हो। 

-------------राजीव रत्नेश ---------------



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