TERA ROOP-SINGAR HAI KUCH AISE,
UTRA HO JHEEL MEN CHAND JAISE
नाक कड़ी-कड़ी ,आँखें हिरनी की ,सरापा हुस्ने -मुज़्ज़सिम तुम हो,
हमेशा से मेरे दिल में मकीं हो ,क्या जानो क्या चीज़ तुम हो।
देर करोगी मुलाकात होगी नहीं ,खुदा भी हाथ से जायेगा ,
संमंदर की लहार हो ,मेरे दिल की रानी हो ,क्या .चीज़ तुम हो।
आफत में है जान ,तेरे दीवानों से अपनी जान बचानी है ,
कैसे समझाऊँ तुमको ,तुम्हीं बज्म की शान ,क्या चीज़ तुम हो।
तू मुझसे दूर चली जाएगी ,तो खुदा मेरे करीब आ जायेगा ,
कान में मेरे धीमे से पूछेगा ,वाकई क्या चीज़ तुम हो।
गरचे हमारी मोह्हबत का ,किसी से कोई वास्ता ना रहा ,
तुम्हें मनाने को कौन अब आएगा ,तुम बताओ क्या चीज़ तुम हो।
आई जो कहीं तुम छत पर ,चाँद समझ के ,चढ़ आयेगा छत पे कोई ,
हाले -दिल समझाने को बस लिखता हूँ ,क्या चीज़ तुम हो।
कहना है ज्यादा न उलझो ,जमाना मुद्दई हो न जाये तुम्हारा ,
तुम्हें देख ले रकीब ,तो मेरा दुश्मन बने ,क्या चीज़ तुम हो।
मैं खुद निपटूँगा उससे ,आईने में देखो खुद को ,क्या चीज़ तुम हो ,
'रतन ' को तुमसे ज्यादा अज़ीज़ कोई नहीं ,क्या चीज़ तुम हो।
-------------राजीव रत्नेश ---------------
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