अदा -ए शौक से सर झटकने से ,गिरा जो गुलाब ,
इस नाचीज ने झपट के उठाया ,कलेजे से लगाया वो गुलाब।
आई याद तेरे हाथों से जाम की ,शराबबंदी लगने के बाद ,
मदहोशी में हाथ थाम लिया ,किसी और का ,तू न थी पास।
इजाजते -महफ़िल हो तो थोड़ी सी तेरे होठों से पी लूँ ,
याद आ जाएगी अपनी ,थोड़ी सी पीने -पिलाने के बाद।
हमारी -तुम्हारी मुलाकात हुई भी तो गुलाबों के शहर में ,
मेरी यादों में बसा था तेरा पुराना शहर इलाहाबाद।
मस्त -मस्तानी तेरी अदा ,दिल ने किया इंकलाब ,
हम तुमसे मिलने भी आ सकते थे ,तेरे शहर जहानाबाद।
सांठ -गांठ की दोस्ती थी अपनी ,कोई न था राजदार ,
तेरे शहर का चक्कर लगा के देखा ,एक तरफ दैरो -हरम आबाद।
हम तेरी याद ,तेरा फ़साना हर कहीं हर महफ़िल दुहराएँगे ,
न मिला जो तेरे हाथों से ,वो अंगूरी जामो -शराब।
बहादुरी तेरी तब है ,जब तू खुद मेरे पहलू में आये ,
हम तुझ पर ग़ज़ल लिक्खेंगे ,करके रूबरू -ए माहताब।
अब तो आ जा महफ़िल में ,हाथों में लिये जोड़ा -ए -गुलाब ,
'रतन 'को मिलेगी मोहलत ,लिखेगा अफसाना तेरी दस्तक के बाद।
--------राजीव रत्नेश --------------------
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