दूर दिल से अँधेरे की सियाही कर लूँ ,
तुम जो आओ तो महफ़िल में उजाला कर लूँ।
उजाले मेरी मेरी ज़िंदगी में आकर के भर दे ,
मैं दुनिया को रोशनी की दहलीज़ पर बिठा लूँ।
मर्म दिल का समझती ,ये क्यों हाल होता ,
तुम पास होती और तुम्हें मै पराया समझता
आ जाओ रूखे -रौशन ,महफ़िल में चिरागा कर लूँ
पास आओ तो मजे से बसर ज़िंदगी कर लूँ ,
बहती नाव को समझूँ ,दरिया पार जाने की मंज़िल
पास आकर दिल बहलाओ तो हर भरम टूट जाये
तुमको करीब जान कर खाना -आबादी कर लूँ
दिले -बर्बाद में तेरी रहमत का उजाला भर लूँ।
पास बुला कर तुम्हें दिल की बात समझाऊं ,
,अगर समझ जाओ तो अच्छी बात ,एक बार फिर से ,
जो मैं नहीं कह सकता ,तुम्हीं से वो बात कहलवाऊँ ,
तुम्हारे वलिदान से मिल करके दिल में उजाला भर लूँ।
झक्की है तुम्हारा वालिद ,मेरी बात का क्या मतलब निकाले
मै तुम्हें माँग नहीं सकता ,मेरे सुपुर्द तुम्हें वो कर नहीं सकता।
जानता हूँ बहुत पहले से उसे ,कुछ समझ नहीं ,
कुछ भी वो तुम्हारे लिए कर नहीं सकता ,
मैं नहीं समझता किस तरह अपनी महफ़िल में उजाला कर लूँ।
उसे ऊदबिलाव कहूँ या मम्मी को तुम्हारे कहूँ बिल्ली ,
मेरे लिए वो पहले की तरह हो नहीं सकता ,
गाड़ी जंक्शन से छूट जाती है ,तब तुम स्टेशन पहुँचती हो ,
इसलिए हम -तुम आज भी पराये हैं और पराये ही रहेंगे
समय से आओ तो मोह्हबत को नज़रे -गजाला कर दूँ।
बिना ड्राइवर के गाड़ी और मुझे समझती हो अनाड़ी
स्टेयरिंग पे बैठ के देखो ,और बताओ कौन अनाड़ी ,
मेरे पास आकर बैठो , मोह्हबत को गमे -रायगां कर लूँ।
मेरे पास दिल के सिवा कुछ भी नहीं ,तुम्हें दिखाने के लिए ,
जख्मे -दिल जो तुमने दिया था ,रिस -रिस नासूर बना ,
तुम्हें भूला जाते ही ,और मैं आज़ाद हो गया तबीयते -दिल से भी ,
तुम मुझे बताओगी ,मोह्हबत न शायरी है न कविता ,
तुम पास आओ तो तुम्हें नगमा -ए दिल सुना दूँ।
हम -तुम सिर से धड़ की तरह मिल गए होते ,
समय रहते जो तुम मेरे पास आ गए होते ,
मोह्हबत को पता नहीं ,तुम क्या समझती हो ,
'रतन 'पेश तुम्हारी मोह्हबत में जानो -इमां कर गए होते।
तुम जो आओ ,साथ तुम्हारे चल कर मस्जिद में सज़दा कर लूँ।
----------राजीव रत्नेश ------------------
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