Thursday, February 13, 2025

RATAN BHATKA HAI TERA MUSAFIR .



सदमों से सिहरती ,कड़ाके की ठंढ़ में ,मेरी कहानी में ,

वो लज़्ज़त न होगी ,थी जो कभी भरी जवानी में।

हम जायेंगे तो न लौटेंगे अब तेरी महफ़िल में ,

है नहीं कुछ जोश अब तेरी नौजवानी में। 

महफ़िल से जो चली जाओगी ,कुदरत भी छूट जाएगी ,

जाने कैसी है तुम्हारी उल्फत ,हर शै खुद चटक जाएगी। 

तुम मोह्हबत को खेल न समझो ,रूठ कर किधर जाओगी ,

लौट के तेरी महफ़िल में न आये ,तो बहुत पछताओगी। 

समंदर में किश्तियाँ तो आती -जाती ही रहेंगी ,

बिना पतवार के कैसे उस पार तुम जाओगी। 

शरमाओगे हमसे ही ,तो मिलने का रास्ता न पाओगी ,

हम भी भूल  जायेंगे तुमको ,हमसे कोई वास्ता न पाओगी। 

गमों की बिसात ही क्या है अब तेरी महफ़िल में ,

हम सा ग़मगुसार मिलेगा क्या कोई ,तुझे भरी जवानी में। 

ज़िंदगी से न शर्माओ ,वरना झड़ जाओगे पतझड़ में 

पेड़ से गिरे पत्तों की तरह ,उड़ती फिरोगी भरी जवानी में। 

आएंगे न फिर कभी ,कहने अब कोई दास्तां तुमसे ,

दूर हो जाओगी तुम हमसे ,कैसे बुलाएँगे तुझे मेहरबानी से। 

बवंडर था महफ़िल में ,निकल पड़े हैं रहे -मंज़िल के लिए ,

बागबां भी शर्मा के रह गया होगा ,बिना किसी अदाकारी के। 

कुछ तो मौसम की शाजिश थी ,वरना सब्ज़ा कोई मुरझा न गया होता ,

हमसे छुपाया भी न गया ,कैसे आग लग गयी हरियाली में। 

चालाकियां हमसे ही ,राज अपना छुपाया बड़ी होशियारी से ,

'रतन 'भी आराम से सोता जाकर ,तुम्हारी कालीबाड़ी में। 

----------राजीव रत्नेश ----------------------- 

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