Monday, February 17, 2025

MAHFOOZ HO TUM.

महफूज़ हो आज तुम ,तो मेरी रहबरी केदम से ,

रास्ता बदल लिया तुमने ,आखिरी कदम पे। 

दुनिया बदल गयी ,तो मुझे मलाल न हुआ ,

तुम भी हो गए हुनरमंद ,तो कोई गम न हुआ। 

अपना तो यही फ़साना है ,रास्ता बदल गए राजदाँ ,

कोई अपना न रहा ,कोई अपना न हुआ। 

कोई चाँद अपना हुआ ,न कोई सितारा अपना हुआ ,

दोस्तों से सुना ,वो तो कभी का गैर का हो गया। 

किनाराबन्दी दरिया का किया ,तूफानों का रुख मोड़ा ,

पत्थर पे लकीर खींच कर ,हुआ वो खड़ा ,फिर न डिगा। 

गिला भी नहीं ,शिकवा भी नहीं किसी से कोई ,

मेरे यार सा निराला न था दुनिया में कोई। 

बहुत जतन से ढूँढ़ा ,मिल जाता मुझे भी तुमसा कोई ,

खींच लेता पावं अपना ,कहता ,रहता न यहाँ कोई। 

चक्कर कोई तुमसे हमने न पाला था,,

आगे बढ़ के आये ,पलट गए ,मिला जो न रास्ता कोई। 

पासे -वफ़ा तुमसे हुआ ,न निभा सके रस्म ही कोई ,

शबे -फिराक़ में न तुम आये ,न आया दूसरा कोई। 

मौसम की मार पे भी 'रतन 'तुम तो संग -संग थे ,

रास्ता बदल लिया तुमने ही ,आख़िरी कदम पे। 

----------राजीव रत्नेश ------------------  

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