Tuesday, February 11, 2025

yaar mera masoom .

नज़रों से तीर पर तीर चले ,घायल हम हो गए 

एक तो यार मेरा  मासूम  ,उससे तीरे  -नज़र कैसे चले। 

अफ़सुर्दगी सी राहों में थी ,और हम राह में खड़े थे ,

हालते -मामलात पर नज़रें जमाये ,परवाह किसी की न थी 

कुछ थी तो ये थी बात ,ज़िंदगी यार बिना कैसे चले। 

बिना उसके तो हम हक़ीक़त में कुछ भी न थे  ,

हालते -दुख्तर में वो साथ न दे  ,तो कली दिल की कैसे खिले। 

हम मोह्हबत से बाज न आयेंगे ,जमाना न दे तसल्ली भले 

हार न मानेंगे ,बता दे यार मेरा ,उस बिन काम हमारा कैसे चले। 

तसल्ली -ए -दिल होगा ,जब साथ वो हमारे आएगा ,

तभी बात बनेगी ,साथ जब हम कदम दो -चार चलें। 

वो घड़ी थी यादे -मोह्हबत ,जब वो साथ -साथ था  ,

हो के मज़बूर हम हालात से ,दो कदम कैसे चलें। 

वो आये साथ ,तभी दूरी -ए -मंजिल सिमटेगी ,

रास्ते में हम उससे मंजिलों की बात कैसे करें। 

माज़रा -ए -हालात से ,उसे साथ ले जाने की सोचते रहे ,

जमाना खिलाफत पे उतर आये तो हम क्या करें 

उसी से मोह्हबत है ,अदावत ज़माने भर से है ,

उसे साथ लेकर चलना ही होगा ,भले जमाना दीवार बने। 

अब भी अगर आ जाता है ,चौराहे से मोड़ मुड़ के ,

वरना हम ले लेंगे यू टर्न ,इसके सिवा हम क्या करें। 

----------राजीव रत्नेश ---------- 

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