Saturday, February 22, 2025

TUMHARE HAATHON MEN WO HUNAR N RAHA ,

तुम तसल्ली बख्श सको ,तुम्हारे हाथों में वो हुनर न रहा ,

बातें तुम्हारी बड़ी -बड़ी ,तुझे भूलने वाला वो शहर न रहा। 


बात बचपन की हो ,या हो जवानी की ,

तुम्हें याद करने वाला कोई शजर न रहा। 

दिल ही दिल में ,मकीं हो तुम ,

तुम्हें याद अब तक कोई -कोई शहर न रहा। 


इरादे -दिल से हाथ मिलाओ ,तुम्हारे हाथों में वो हुनर न रहा। 


पढ़ी पढाई कॉन्वेंट की ,किसी तरह पास हुई ,

अगले को किया बर्बाद ,किसी तरह हाफ रही। 

दिल की न कभी तुम हुई ,न कभी साफ़ रही ,

मेरे पास आकर भी तुम सिफर ही रही। 


मज़बूरी में ही पिलाओ ,तुम्हारे हाथों में वो असर न रहा। 


पास आकर मेरे तुम मदहोश हो जाती थी ,

अपने गम ,मेरे प्यार में भूल जाती थी। 

संदेह रहता था तुम्हें हमेशा अपने ही बारे में ,

बातों ही बातों में ,तुम खुल जाती थी। 


रहो तुम मज़बूर ,मेरे पास तुम्हारे प्यार लायक जिगर न रहा। 


निकल गये तुम आगे ,पीछे हम लगे रहे ,

पास आये भी तो ,दूर से मिलते रहे। 

क्या समझा था अपना दिलदार हमें ,

हम तुमसे ही मिलते रहे ,तुमसे ही झगड़ते रहे। 


मोह्हबत की परमिट का कोई इश्तेहार न निकला। 


मेरे हाथों का खिलौना भी न तुम बन सकी ,

जो समझाया दिल ने ,वो तुम समझ न सकी। 

अनजाने में कहाँ से कहाँ पहुँच गये ,

दुपट्टा सम्हालने की भी समझ न रही। 


रही गिरगिट की तरह रंग बदलती ,एक हुनर न सूझा। 


जज्बाते -दिल से भी तुम अक्सर खेल जाती थी ,

अपना तो अपना हिस्सा ,गैरों का भी पेल जाती थी। 

आदी न थी कभी प्यार की ,बस अपनी ही सोची ,

औरों को देकर दर्दे -दिल खुद झेल जाती थी। 


तुम्हें लाये पास मेरे ,ऐसा कोई बशर न रहा। 


एक बार पास आकर ,रंगे -महफ़िल तो देखो ,

छोड़ गये थे जिस हाल में ,उसका हश्र तो देखो। 

दूर जाकर भी कम से कम खत तो भेजते ,

अपने हाथों अपने को बे -बुनियाद न समझते। 


पास आकर दूर जाने का भी शऊर न हो ,तो 'रतन 'को भूल जाओ ,

तुम तसस्ली बख्स सको ,तुम्हारे हाथों में वो हुनर न रहा। 

------------राजीव रत्नेश ------------ 

No comments:

About Me

My photo
ROM ROM SE KARUNAMAY, ADHARO PE MRIDU HAAS LIYE, VAANI SE JISKI BAHTI NIRJHARI, SAMARPIT "RATAN" K PRAAN USEY !!!