दीवाना बना देती हो ,आँखों के वशीकरण काजल से ,
रास्ता बदल लिया ,तुमने भी आख़िरी कदम पे।
मैंने तो न कभी सोचा ,कि ये तुमने क्या किया ,
हर रास्ता पूछता है मुझसे ,चमन का क्या हुआ।
सरपरस्ती तुम्हारी काबिज़ होती ,तो कुछ कहता ,
बुझा -बुझा है चिरागे -दिल ,किसी से क्या कहता।
खुशियों से भरा है सारा आलम ,बहार हर कहीं ,
लगन लगी थी ,चमन के भौरों से कुछ कहता।
किसने कर दिया कुर्क ,मेरी उल्फत की हवेली को ,
अनजान न थे तुम ,अब तुम्हीं से क्या कहता।
भर-भर के पैमाने ,पिलाये तुमने अपनी नज़र से ,
रास्ता बदल लिया तुमने ही ,तुमसे मेरा क्या वास्ता।
कैसे तीरंदाज़ हो ,वार करते हो ,तिरछे तीर से ,
सीधा कर लेते तो ,चोट न लगती दिल पे।
रंग -रंगीली ,छैल -छबीली ,किस बस्ती से आई है ,
तेरे आने से हवा में खुशबू सी सरसराई है।
अलमस्त जवानी ,अल्हड़ कामिनी का बिखरा जलवा है ,
'रतन 'पतंग हमने उड़ाई ,हाथों से फिसल गयी डोरी है ...
--------------राजीव रत्नेश --------------------
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