शेर (लब जैसे हो शहदरस के धारे)
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लब गुंच- ए- गुलजार हैं तेरे,
ला रही है बादे- पुरवा तेरी यादें/
तेरे माथ की बिंदिया लुभाती है मुझे,
लब जैसे हों शहदरस के धारे//
राजीव रत्नेश
" मेरी rachnaaye हैं सिर्फ अभिव्यक्ति का maadhyam , 'एक कहानी samjhe बनना फिर जीवन कश्मीर महाभारत ! "
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