अशआर
अकीदते- खुदा मुझे सिखा के होगा क्या?
दिल में मेरे गजल लिखने का जब उबाल आता है,
नजर तेरी चित्तचोर जवानी का उठान आता है/
अकीदते- खुदा मुझे अब सिखा के होगा क्या?
तुझे ही पूजा था, तेरे बाद ही खुदा का ख्याल आता है//
रहे- गुमरही की शहनाइयाँ
दिल में तेरी ही मुहब्बत अँगड़ाइयाँ लेती है,
रहे- गुमरही की मुझे सुनाई शहनाइयाँ देती हैं/
राह कौन सा अखितयार करती हो, तुम्हीं पे छोड़ा है,
देखूँ तू मुझ पर अब कैसी मेहरबानियाँ करती है//
राजीव " रत्नेश"
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