Friday, September 26, 2025

अलविदाअ मुहब्बत

अलविदाअ- मुहब्बत---!!!

सुनहरे चाँद को,
जुल्फों की घटा ने घेरा है,
ये मेरी तफसील है,
कि तेरी बदनाम गली में,
आज तक मेरा फेरा है/

तेरी नजाकत पर,
तेरे होंठों पर अँगुली रखी थी,
और प्यार से तुझे चूमा था,
बीसों साल बाद तुझे,
अहसासे- दर्द हुआ/

नजबूरी मेरी भी क्या?
कि सिर्फ तुझी को चाहा,
तुम्हारे सिवा,
किसी को न दिल में रखा/
बतौर साहिर--
' मेरे गीत तुम्हारे हैं'
लुधियानवी ने और कुछ पाया न पाया,
पर जख्म मैं गहरा खा गया/

बाप तुम्हारा मरा जाता था,
कि जिन्दगी उसे' चार रोजा' मिली थी,
वो भी उधार माँग के लाया था,
तुम्हें मैंने बुलवाया,
पर तब तक तुम बदल गई थी/

फलसफा तेरा क्या था?
सिर्फ एक अजूबा,
मुझे किसी ने बताया था,
कि तुम अहसान किसी का नहीं रखते,
दिल के बदल जान निसार करते हो

पैमाना मेरा भर के,
मेरे होंठों से जाम लगाया तुमने,
हर हाल में तुम्हें चाहा,
दिल में बसाया हमने/

याद आएगी तेरी हर महफिल में,
दिल ने सदा तुझे ही पुकारा ,
हमेशा साथ- साथ तो बैठी हो,
महसूस करो जज्बाते- दिल हमारा/

बरबाद करके रख दिया तुझे,
अपनों की ही चाहत ने,
पर्दे में रखा छुपा के सबसे,
हमीं ने रखा था बसारत में/

हम तुमसे दूर रह के ही क्या करते,
इसीलिए पास तुझे बुलाया है,
तू मेरे शहर में आई है,
या मैं तेरे शहर में आया हूँ,
नजरे- खास से देखा है तुझे,
और दिल में बसाया है/

अनजान सफर है सँभल कर चलो,
हर कोई मेरी तरह न होगा,
आगे चलने वाला कोई न होगा,
पीछे मुड़कर किसकी राह निहारोगी?

माना शादी तुम्हारे वालदैन ने,
कहीं और कर दी,
दूरी तेरे-मेरे दरम्यान और बढ़ा दी
तुमने अपनी मुहब्बत साँसों में सँभाल ली/
अब कौन तेरा, कौन मैं/

मुझे न चाहिए तेरी मेहरबान,
मेरे शहर में रहो या बाप के शहर में रहो,
डोली उस शहर से उठी है,
सफर किस राह तक है, समझ- बूझ लो/
 अलविदाअ-- मुहब्बत/

            """""""""""""
आए तेरी बारात के साथ,
पर बन न सकी तेरी-मेरी बात/
सिमरन को तेरा बाप बैठा,
जल बीच फँसी मेरी नाव//

           राजीव" रत्नेश"

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