शेर (जाने कहाँ गए वो अहबाब .)
जाने कहाँ गए वो अहबाब, बन गए जो दुश्मन मेरी जान के,
चाँद-सितारों से सदा बात करते, सैर करते थे परिस्तान की,
जमीं पर पाँव न पड़ते थे, आस्मानों में उनका
ठिकाना था,
आधे से ज्यादा उनमें शामिल थे , लोग मेरी ससुराल के//
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